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कदम्ब कुल का गोत्र मानव्य था और उक्त वंश के लोग अपनी उत्पत्ति हारीति से मानते थे। ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुसार कदम्ब राज्य का संस्थापक मयूर शर्मन नाम का एक ब्राह्मण था जो विद्याध्ययन के लिए [[कांची]] में रहता था और किसी पल्लव राज्यधिकारी द्वारा अपमानित होकर जिसने चौथी शती ईसवी के मध्य (लगभग 345 ई.) प्रतिशोधस्वरूप कर्नाटक में एक छोटा सा राज्य स्थापित किया था। इस राज्य की राजधानी [[वैजयंती]] अथवा बनवासी थी।
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==निरंतर युद्ध का इतिहास==
 
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Disamb2.jpg कदम्ब एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कदम्ब (बहुविकल्पी)

कदम्ब दक्षिण भारत का एक ब्राह्मण राजवंश है। कदम्ब वंश के राज्य की स्थापना चौथी सदी ई. में हुई थी, जब कि मयूर शर्मा नामक व्यक्ति ने पल्लव राज्य के विरुद्ध विद्रोह करके कर्नाटक प्रदेश में अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली थी। इस राज्य की राजधानी बनवासी थी। कदम्ब कुल का गोत्र 'मानव्य' था और उक्त वंश के लोग अपनी उत्पत्ति हारीति से मानते थे। ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुसार कदम्ब राज्य का संस्थापक मयूर शर्मन नाम का एक ब्राह्मण था जो विद्याध्ययन के लिए कांची में रहता था और किसी पल्लव राज्यधिकारी द्वारा अपमानित होकर जिसने चौथी शती ईसवी के मध्य (लगभग 345 ई.) प्रतिशोधस्वरूप कर्नाटक में एक छोटा सा राज्य स्थापित किया था। इस राज्य की राजधानी वैजयंती अथवा बनवासी थी।

निरंतर युद्ध का इतिहास

समुद्रगुप्त की दक्षिण विजय से संत्रस्त पल्लव इस राज्य की स्थापना को रोकने के लिए तत्काल हस्तक्षेप न कर सके। मयूर शर्मन के पुत्र कंग वर्मन ने वाकाटक नरेश विंध्यशक्ति द्वितीय (बासिम शाखा) के आक्रमण का सफलतापूर्वक सामना किया, तो भी उसके राज्य का कुछ क्षेत्र वाकाटकों के अधिकार में चला गया। इस कुल का अन्य शक्तिशाली राजा काकुस्थ वर्मन था जिसने इस वंश के यश तथा राज्यसीमा में पर्याप्त विस्तार किया। छठी शती के आरंभिक दशाब्दों में रवि वर्मन राजा हुआ जिसने अपनी राजधानी बनवासी से हटाकर पालाशिका अथवा हाल्सी[1] में बनाई। रवि वर्मन को पल्लवों तथा गंगवंशियों से निरंतर युद्ध करना पड़ा।

पतन

वातापि के चालुक्यों के उत्कर्ष का कदम्ब राज्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। इनका उत्कर्ष होने पर कदम्बों की शक्ति क्षीण होनी शुरू हुई, और पुलकेशी द्वितीय ने उनकी स्वतंत्र सत्ता का अन्त किया। चालुक्यराज पुलकेशिन प्रथम ने कदम्बों से उत्तरी प्रांत छीन लिए और पुलकेशिन्‌ द्वितीय ने उनको सर्वथा शक्तिहीन कर डाला। उधर कदंब राज्य के दक्षिण में स्थित गंगराज्य के राजा ने भी अवसर देखकर पुराने वैर का बदला लेने के लिए, आक्रमण किया और कदंबों के दक्षिणी प्रांतों पर अधिकार कर लिया। फिर भी कदम्ब वंश का अंत न हुआ और 10वीं शती के अंतिम चरण में राष्ट्रकूटों के पतन के बाद उन्होंने एक बार पुन: सिर उठाया। जब दसवीं सदी के अन्तिम भाग में राष्ट्रकूट साम्राज्य क्षीण हुआ, तो शिलाहारों के समान कदम्ब भी स्वतंत्र हो गए, और उनके अनेक छोटे-छोटे राज्य कर्नाटक में स्वतंत्र रूप से विद्यमान रहे। सामन्त रूप में कदम्ब वंश के राजा चालुक्यों और राष्ट्रकूटों के शासन काल में भी क़ायम रहे। 13वीं शती के अंत तक कदंबों की अनेक छोटी-छोटी शाखाएँ दक्कन और कोंकण में राज करती रहीं। धारवाड़ ज़िले में हंगल और गोआ उनके राज्य के प्रमुख केंद्र थे। इस प्रकार लगभग एक हज़ार वर्ष तक कदम्ब दक्षिण के विभिन्न स्थानों पर गिरते पड़ते शासन करते रहे हालाँकि उनका असाधारण उत्कर्ष कभी भी संभव न हो सका।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बेलगाँव ज़िला
  2. कदम्ब वंश (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 4 सितम्बर, 2011।

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