कमला थिर न रहिम कहि -रहीम
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कमला थिर न ‘रहिम’ कहि, यह जानत सब कोय ।
पुरूष पुरातन की वधू, क्यों न चंचला होय ॥
- अर्थ
लक्ष्मी कहीं स्थिर नहीं रहती। मूढ़ जन ही देखते हैं कि वह उनके घर में स्थिर होकर बेठ गइ है। लक्ष्मी प्रभु की पत्नी है, नारायण की अर्धांगिनी है। उस मूर्ख की फजीहत कैसे नहीं होगी, जो लक्ष्मी को अपनी कहकर या अपनी मानकर चलेगा।
रहीम के दोहे |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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