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|कर्म-क्षेत्र=[[अभिनेता]], गायक  
 
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|मुख्य फ़िल्में=[[देवदास (1936)|देवदास]], पुराण भगत (1933), सूरदास (1942), तानसेन (1943) आदि।  
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|मुख्य फ़िल्में=[[देवदास (1936)|देवदास]], पुराण भगत ([[1933]]), सूरदास ([[1942]]), तानसेन ([[1943]]) आदि।  
 
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|प्रसिद्धि=गायक  व अभिनेता
 
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'''कुन्दन लाल सहगल''' अथवा '''के. एल. सहगल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kundan Lal Saigal'', जन्म- [[11 अप्रॅल]], [[1904]]; मृत्यु- [[18 जनवरी]], [[1947]]) हिन्दी फ़िल्मों में वैसे तो एक बेमिसाल गायक के रूप में विख्यात हैं लेकिन [[देवदास (1936)]] जैसी चंद फ़िल्मों में अभिनय के कारण उनके प्रशंसक उन्हें एक उम्दा अभिनेता भी करार देते हैं। कुन्दन लाल सहगल [[हिंदी सिनेमा]] के पहले सुपरस्टार कहे जा सकते हैं। 1930 और 40 के दशक की संगीतमयी फ़िल्मों की ओर दर्शक उनके भावप्रवण अभिनय और दिलकश गायकी के कारण खिंचे चले आते थे।  
कुन्दन लाल सहगल अथवा के. एल. सहगल ([[अंग्रेज़ी]]: Kundan Lal Saigal) (जन्म- [[11 अप्रॅल]], 1904 - मृत्यु- [[18 जनवरी]], 1947) हिन्दी फ़िल्मों में वैसे तो एक बेमिसाल गायक के रूप में विख्यात हैं लेकिन [[देवदास (1936)]] जैसी चंद फ़िल्मों में अभिनय के कारण उनके प्रशंसक उन्हें एक उम्दा अभिनेता भी करार देते हैं। कुन्दन लाल सहगल हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार कहे जा सकते हैं। 1930 और 40 के दशक की संगीतमयी फ़िल्मों की ओर दर्शक उनके भावप्रवण अभिनय और दिलकश गायकी के कारण खिंचे चले आते थे।  
 
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
====जन्म====
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कुंदन लाल सहगल अपने चहेतों के बीच के. एल. सहगल के नाम से मशहूर थे। उनका जन्म 11 अप्रैल 1904 को जम्मू के नवाशहर में हुआ था। उनके पिता अमरचंद सहगल जम्मू शहर में न्यायालय के तहसीलदार थे। बचपन से ही सहगल का रुझान गीत-संगीत की ओर था। उनकी माँ केसरीबाई कौर धार्मिक क्रिया-कलापों के साथ-साथ संगीत में भी काफ़ी रुचि रखती थीं।<ref name="j18">{{cite web |url=http://josh18.in.com/showstory.php?id=6690 |title=के.एल.सहगल की आवाज़ का जादू आज भी बरकरार |accessmonthday=5 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=जोश 18 |language=हिन्दी }}</ref>
कुंदन लाल सहगल अपने चहेतों के बीच के.एल सहगल के नाम से मशहूर थे। उनका जन्म 11 अप्रैल 1904 को जम्मू के नवाशहर में हुआ था। उनके पिता अमरचंद सहगल जम्मू शहर में न्यायालय के तहसीलदार थे। बचपन से ही सहगल का रुझान गीत-संगीत की ओर था। उनकी मां केसरीबाई कौर धार्मिक क्रिया-कलापों के साथ-साथ संगीत में भी काफ़ी रूचि रखती थीं।<ref name="j18">{{cite web |url=http://josh18.in.com/showstory.php?id=6690 |title=के.एल.सहगल की आवाज़ का जादू आज भी बरकरार |accessmonthday=5 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=जोश 18 |language=हिन्दी }}</ref>
 
 
====शिक्षा====
 
====शिक्षा====
 
सहगल ने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन सबसे पहले उन्होंने [[संगीत]] के गुर एक सूफ़ी संत सलमान युसूफ से सीखे थे। सहगल की प्रारंभिक शिक्षा बहुत ही साधारण तरीके से हुई थी। उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ी थी और जीवन यापन के लिए उन्होंने रेलवे में टाईमकीपर की मामूली नौकरी भी की थी। बाद में उन्होंने रेमिंगटन नामक टाइपराइटिंग मशीन की कंपनी में सेल्समैन की नौकरी भी की।<ref name="j18"/>कहते हैं कि वे एक बार उस्ताद फैयाज ख़ाँ के पास तालीम हासिल करने की गरज से गए, तो उस्ताद ने उनसे कुछ गाने के लिए कहा। उन्होंने राग दरबारी में खयाल गाया, जिसे सुनकर उस्ताद ने गद्‌गद्‌ भाव से कहा कि बेटे मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है कि जिसे सीखकर तुम और बड़े गायक बन सको।<ref name="JPB">{{cite web |url=http://www.jankipul.com/2009/12/kundanlal-sehgal.html |title=संगीत का कुंदन |accessmonthday=5 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जानकी पुल (ब्लॉग)|language=हिन्दी }}</ref>  
 
सहगल ने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन सबसे पहले उन्होंने [[संगीत]] के गुर एक सूफ़ी संत सलमान युसूफ से सीखे थे। सहगल की प्रारंभिक शिक्षा बहुत ही साधारण तरीके से हुई थी। उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ी थी और जीवन यापन के लिए उन्होंने रेलवे में टाईमकीपर की मामूली नौकरी भी की थी। बाद में उन्होंने रेमिंगटन नामक टाइपराइटिंग मशीन की कंपनी में सेल्समैन की नौकरी भी की।<ref name="j18"/>कहते हैं कि वे एक बार उस्ताद फैयाज ख़ाँ के पास तालीम हासिल करने की गरज से गए, तो उस्ताद ने उनसे कुछ गाने के लिए कहा। उन्होंने राग दरबारी में खयाल गाया, जिसे सुनकर उस्ताद ने गद्‌गद्‌ भाव से कहा कि बेटे मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है कि जिसे सीखकर तुम और बड़े गायक बन सको।<ref name="JPB">{{cite web |url=http://www.jankipul.com/2009/12/kundanlal-sehgal.html |title=संगीत का कुंदन |accessmonthday=5 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जानकी पुल (ब्लॉग)|language=हिन्दी }}</ref>  
 
====पहली फ़िल्म====
 
====पहली फ़िल्म====
वर्ष 1930 में [[कोलकाता]] के न्यू थियेटर के [[बी.एन. सरकार]] ने उन्हें 200 रूपए मासिक पर अपने यहां काम करने का मौक़ा दिया। यहां उनकी मुलाकात संगीतकार आर.सी.बोराल से हुई, जो सहगल की प्रतिभा से काफ़ी प्रभावित हुए। शुरुआती दौर में बतौर अभिनेता वर्ष 1932 में प्रदर्शित एक [[उर्दू]] फ़िल्म ‘मोहब्बत के आंसू’ में उन्हें काम करने का मौक़ा मिला। वर्ष 1932 में ही बतौर कलाकार उनकी दो और फ़िल्में ‘सुबह का सितारा’ और ‘जिंदा लाश’ भी प्रदर्शित हुई, लेकिन इन फ़िल्मों से उन्हें कोई ख़ास पहचान नहीं मिली।<ref name="j18"/>
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वर्ष 1930 में [[कोलकाता]] के न्यू थियेटर के [[बी. एन. सरकार]] ने उन्हें 200 रूपए मासिक पर अपने यहां काम करने का मौक़ा दिया। यहां उनकी मुलाकात संगीतकार आर.सी.बोराल से हुई, जो सहगल की प्रतिभा से काफ़ी प्रभावित हुए। शुरुआती दौर में बतौर अभिनेता वर्ष 1932 में प्रदर्शित एक [[उर्दू]] फ़िल्म ‘मोहब्बत के आंसू’ में उन्हें काम करने का मौक़ा मिला। वर्ष 1932 में ही बतौर कलाकार उनकी दो और फ़िल्में ‘सुबह का सितारा’ और ‘जिंदा लाश’ भी प्रदर्शित हुई, लेकिन इन फ़िल्मों से उन्हें कोई ख़ास पहचान नहीं मिली।<ref name="j18"/>
 
 
 
====बतौर गायक====
 
====बतौर गायक====
 
वर्ष 1933 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘पुराण भगत’ की कामयाबी के बाद बतौर गायक सहगल कुछ हद तक फ़िल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। वर्ष 1933 में ही प्रदर्शित फ़िल्म ‘यहूदी की लड़की’, ‘चंडीदास’ और ‘रूपलेखा’ जैसी फ़िल्मों की कामयाबी से उन्होंने दर्शकों का ध्यान अपनी गायकी और अदाकारी की ओर आकर्षित किया।<ref name="j18"/>
 
वर्ष 1933 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘पुराण भगत’ की कामयाबी के बाद बतौर गायक सहगल कुछ हद तक फ़िल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। वर्ष 1933 में ही प्रदर्शित फ़िल्म ‘यहूदी की लड़की’, ‘चंडीदास’ और ‘रूपलेखा’ जैसी फ़िल्मों की कामयाबी से उन्होंने दर्शकों का ध्यान अपनी गायकी और अदाकारी की ओर आकर्षित किया।<ref name="j18"/>
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{{Main|देवदास (1936)}}
 
{{Main|देवदास (1936)}}
 
वर्ष 1935 में [[शरत चंद्र चट्टोपाध्याय]] के उपन्यास पर आधारित पी.सी.बरूआ निर्देशित फ़िल्म ‘देवदास’ की कामयाबी के बाद बतौर गायक-अभिनेता सहगल शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे। कई बंगाली फ़िल्मों के साथ-साथ न्यू थियेटर के लिए उन्होंने 1937 में ‘प्रेंसिडेंट’, 1938 में ‘साथी’ और ‘स्ट्रीट सिंगर’ तथा वर्ष 1940 में ‘ज़िंदगी’ जैसी कामयाब फ़िल्मों को अपनी गायिकी और अदाकारी से सजाया। वर्ष 1941 में सहगल मुंबई के रणजीत स्टूडियो से जुड़ गए। वर्ष 1942 में प्रदर्शित उनकी ‘सूरदास’ और 1943 में ‘तानसेन’ ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता का नया इतिहास रचा। वर्ष 1944 में उन्होंने न्यू थियेटर की ही निर्मित फ़िल्म ‘मेरी बहन’ में भी काम किया।<ref name="j18"/>
 
वर्ष 1935 में [[शरत चंद्र चट्टोपाध्याय]] के उपन्यास पर आधारित पी.सी.बरूआ निर्देशित फ़िल्म ‘देवदास’ की कामयाबी के बाद बतौर गायक-अभिनेता सहगल शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे। कई बंगाली फ़िल्मों के साथ-साथ न्यू थियेटर के लिए उन्होंने 1937 में ‘प्रेंसिडेंट’, 1938 में ‘साथी’ और ‘स्ट्रीट सिंगर’ तथा वर्ष 1940 में ‘ज़िंदगी’ जैसी कामयाब फ़िल्मों को अपनी गायिकी और अदाकारी से सजाया। वर्ष 1941 में सहगल मुंबई के रणजीत स्टूडियो से जुड़ गए। वर्ष 1942 में प्रदर्शित उनकी ‘सूरदास’ और 1943 में ‘तानसेन’ ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता का नया इतिहास रचा। वर्ष 1944 में उन्होंने न्यू थियेटर की ही निर्मित फ़िल्म ‘मेरी बहन’ में भी काम किया।<ref name="j18"/>
 
 
====मृत्यु====
 
====मृत्यु====
 
अपने दो दशक के सिने करियर में सहगल ने 36 फ़िल्मों में अभिनय भी किया। हिंदी फ़िल्मों के अलावा उन्होंने [[उर्दू]], [[बांग्ला भाषा|बंगाली]] और [[तमिल भाषा|तमिल]] फ़िल्मों में भी अभिनय किया। सहगल ने अपने संपूर्ण सिने करियर के दौरान लगभग 185 गीत गाए, जिनमें 142 फ़िल्मी और 43 गैर-फ़िल्मी गीत शामिल हैं। अपनी दिलकश आवाज़ से सिने प्रेमियों के दिल पर राज करने वाले के.एल.सहगल [[18 जनवरी]], 1947 को केवल 43 वर्ष की उम्र में इस संसार को अलविदा कह गए।<ref name="j18"/>
 
अपने दो दशक के सिने करियर में सहगल ने 36 फ़िल्मों में अभिनय भी किया। हिंदी फ़िल्मों के अलावा उन्होंने [[उर्दू]], [[बांग्ला भाषा|बंगाली]] और [[तमिल भाषा|तमिल]] फ़िल्मों में भी अभिनय किया। सहगल ने अपने संपूर्ण सिने करियर के दौरान लगभग 185 गीत गाए, जिनमें 142 फ़िल्मी और 43 गैर-फ़िल्मी गीत शामिल हैं। अपनी दिलकश आवाज़ से सिने प्रेमियों के दिल पर राज करने वाले के.एल.सहगल [[18 जनवरी]], 1947 को केवल 43 वर्ष की उम्र में इस संसार को अलविदा कह गए।<ref name="j18"/>
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सहगल की आवाज़ की लोकप्रियता का यह आलम था कि कभी [[भारत]] में सर्वाधिक लोकप्रिय रहा रेडियो सीलोन कई साल तक हर सुबह सात बज कर 57 मिनट पर इस गायक का गीत बजाता था। सहगल की आवाज़ लोगों की दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बन गई थी। सहगल [[रवीन्द्र संगीत]] गाने का सम्मान पाने वाले पहले गैर बांग्ला गायक और भारतीय सिनेमा के पहले सुपर स्टार थे। यह वह समय था जब भारतीय फ़िल्म उद्योग [[मुंबई]] में नहीं बल्कि [[कलकत्ता]] में केंद्रित था।<ref>{{cite web |url=http://dainiktribuneonline.com/2011/01/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AA/ |title=भारतीय सिनेमा के पहले सुपर स्टार थे कुंदनलाल सहगल |accessmonthday=5 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी.|publisher=दैनिक ट्रिब्यून |language=हिन्दी }}</ref>  
 
सहगल की आवाज़ की लोकप्रियता का यह आलम था कि कभी [[भारत]] में सर्वाधिक लोकप्रिय रहा रेडियो सीलोन कई साल तक हर सुबह सात बज कर 57 मिनट पर इस गायक का गीत बजाता था। सहगल की आवाज़ लोगों की दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बन गई थी। सहगल [[रवीन्द्र संगीत]] गाने का सम्मान पाने वाले पहले गैर बांग्ला गायक और भारतीय सिनेमा के पहले सुपर स्टार थे। यह वह समय था जब भारतीय फ़िल्म उद्योग [[मुंबई]] में नहीं बल्कि [[कलकत्ता]] में केंद्रित था।<ref>{{cite web |url=http://dainiktribuneonline.com/2011/01/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AA/ |title=भारतीय सिनेमा के पहले सुपर स्टार थे कुंदनलाल सहगल |accessmonthday=5 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी.|publisher=दैनिक ट्रिब्यून |language=हिन्दी }}</ref>  
 
उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस जमाने में उनकी शैली में गाना अपने आपमें सफलता की कुंजी मानी जाती थी। [[मुकेश]] और [[किशोर कुमार]] ने अपने कैरियर के आरंभ में सहगल की शैली में गायन किया भी था। कुंदन के बारे में कहा जाता है कि पीढ़ी दर पीढी इस्तेमाल करने के बाद भी उसकी आभा कम नहीं पडती। सहगल सचमुच संगीत के कुंदन थे।<ref name="JPB"/>   
 
उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस जमाने में उनकी शैली में गाना अपने आपमें सफलता की कुंजी मानी जाती थी। [[मुकेश]] और [[किशोर कुमार]] ने अपने कैरियर के आरंभ में सहगल की शैली में गायन किया भी था। कुंदन के बारे में कहा जाता है कि पीढ़ी दर पीढी इस्तेमाल करने के बाद भी उसकी आभा कम नहीं पडती। सहगल सचमुच संगीत के कुंदन थे।<ref name="JPB"/>   
 
 
==सहगल की आवाज़==
 
==सहगल की आवाज़==
<blockquote><span style="color: #7560c1">पाकिस्तानी शायर अफ़ज़ाल अहमद सैयद से शब्द उधार लें, तो कह सकते हैं, जैसे [[काग़ज़]] मरा‍कशियों ने ईजाद किया था, हुरूफ़ फिनिशियों ने, सुर गंधर्वों ने, उसी तरह सिनेमा का संगीत सहगल ने ईजाद किया। दुनिया में कई रहस्य हैं चुनौती देते। चुनौती सहगल भी दे गए हैं। फ़क़ीरों-सा बैराग, साधुओं-सी उदारता, मौनियों-सी आवाज़, हज़ार भाषाओं का इल्म रखने वाली आंखें, रात के पिछले पहर गूंजने वाली सिसकी जैसी ख़ामोशी, और पुराने वक़्तों के रिकॉर्ड की तरह पूरे माहौल में हाहाकार मचाती एक सरसराहट... बता दो एक बार, ये सब क्या है? वह कौन-सी गंगोत्री है, जहां से निकल कर आती है सहगल की आवाज़?</span></blockquote> पता कर लो, कहां से आता है सहगल का दर्द, जो सीने में हूक, आंखों में नमी और कंठ में कांटे दे जाता है? क्यों एक रुलाहट आंखों पर दस्तक देती है और बिना कुछ कहे तकती हुई-सी लौट जाती है? यह सुबह या दुपहरी की नहीं, सांझ के झुटपुटे की आवाज़ है, जिसका असर रात के साथ गहरा होता जाता है। अगर आप दिल से कमज़ोर हैं, आधी रात को सहगल मत सुनिए। उन्हें सुनना भाषा में तमीज़ को जीना है। आंख में आंसू का सम्मान करना है। दुख जो दिल के क़गार पर रहता है, उसे बीचो-बीच लाकर महल में जगह देनी है। दुख को जियो, तो जीने का शऊर आ जाता है।<ref name="VV">{{cite web |url=http://geetchaturvedi.blogspot.com/2008/04/blog-post_04.html |title=आज महान गायक कुंदनलाल सहगल का जन्‍मदिन है... |accessmonthday=5 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल|publisher=वैतागवाड़ी|language=हिन्दी }}</ref>   
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<blockquote><span style="color: #7560c1">पाकिस्तानी शायर अफ़ज़ाल अहमद सैयद से शब्द उधार लें, तो कह सकते हैं, जैसे काग़ज़ मरा‍कशियों ने ईजाद किया था, हुरूफ़ फिनिशियों ने, सुर गंधर्वों ने, उसी तरह सिनेमा का संगीत सहगल ने ईजाद किया। दुनिया में कई रहस्य हैं चुनौती देते। चुनौती सहगल भी दे गए हैं। फ़क़ीरों-सा बैराग, साधुओं-सी उदारता, मौनियों-सी आवाज़, हज़ार भाषाओं का इल्म रखने वाली आँखें, रात के पिछले पहर गूंजने वाली सिसकी जैसी ख़ामोशी, और पुराने वक़्तों के रिकॉर्ड की तरह पूरे माहौल में हाहाकार मचाती एक सरसराहट... बता दो एक बार, ये सब क्या है? वह कौन-सी गंगोत्री है, जहां से निकल कर आती है सहगल की आवाज़?</span></blockquote>पता कर लो, कहां से आता है सहगल का दर्द, जो सीने में हूक, आंखों में नमी और कंठ में कांटे दे जाता है? क्यों एक रुलाहट आंखों पर दस्तक देती है और बिना कुछ कहे तकती हुई-सी लौट जाती है? यह सुबह या दुपहरी की नहीं, सांझ के झुटपुटे की आवाज़ है, जिसका असर रात के साथ गहरा होता जाता है। अगर आप दिल से कमज़ोर हैं, आधी रात को सहगल मत सुनिए। उन्हें सुनना भाषा में तमीज़ को जीना है। आंख में आंसू का सम्मान करना है। दु:ख जो दिल के क़गार पर रहता है, उसे बीचो-बीच लाकर महल में जगह देनी है। दु:ख को जियो, तो जीने का शऊर आ जाता है।<ref name="VV">{{cite web |url=http://geetchaturvedi.blogspot.com/2008/04/blog-post_04.html |title=आज महान् गायक कुंदनलाल सहगल का जन्‍मदिन है... |accessmonthday=5 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल|publisher=वैतागवाड़ी|language=हिन्दी }}</ref>   
 
==रोचक तथ्य==
 
==रोचक तथ्य==
[[चित्र:Kundan-Lal-Saigal-Stamp.jpg|कुंदनलाल सहगल के सम्मान में भारत सरकार द्वारा जारी [[डाक टिकट]]|thumb|250px]]
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[[चित्र:Kundan-Lal-Saigal-Stamp.jpg|कुंदनलाल सहगल के सम्मान में भारत सरकार द्वारा जारी [[डाक टिकट]]|thumb|left|250px]]
*सहगल की उदारता के कई कि़स्से मिलते हैं। कहते हैं कि न्यू थिएटर्स के ऑफिस से उनकी सैलरी सीधे उनके घर पहुंचाई जाती थी, क्योंकि अगर उनके हाथ में पैसे होते, तो आधा वह शराब में उड़ा देते, बाक़ी ज़रूरतमंदों में बांट देते। एक बार उन्होंने पुणे में एक विधवा को हीरे की अंगूठी दे दी थी।
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*सहगल की उदारता के कई क़िस्से मिलते हैं। कहते हैं कि न्यू थिएटर्स के ऑफिस से उनकी सैलरी सीधे उनके घर पहुंचाई जाती थी, क्योंकि अगर उनके हाथ में पैसे होते, तो आधा वह शराब में उड़ा देते, बाक़ी ज़रूरतमंदों में बांट देते। एक बार उन्होंने पुणे में एक विधवा को हीरे की अंगूठी दे दी थी।
* सहगल बिना शराब पिए नहीं गाते थे। 'शाहजहां' के दौरान [[नौशाद]] ने उनसे बिना शराब पिए गवाया, और उसके बाद सहगल की जि़द पर वही गाना शराब पिलाकर गवाया। बिना पिए वह ज़्यादा अच्छा गा रहे थे। उन्होंने नौशाद से कहा, 'आप मेरी ज़िंदगी में पहले क्यों नहीं आए? अब तो बहुत देर हो गई।
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* सहगल बिना शराब पिए नहीं गाते थे। 'शाहजहां' के दौरान [[नौशाद]] ने उनसे बिना शराब पिए गवाया, और उसके बाद सहगल की ज़िद पर वही गाना शराब पिलाकर गवाया। बिना पिए वह ज़्यादा अच्छा गा रहे थे। उन्होंने नौशाद से कहा, 'आप मेरी ज़िंदगी में पहले क्यों नहीं आए? अब तो बहुत देर हो गई।
 
* सहगल को खाना बनाने का बहुत शौक़ था। मुग़लई मीट डिश वह बहुत चाव से बनाते थे और स्टूडियो में ले जाकर साथियों को भी खिलाते थे। यही नहीं, आवाज़ की चिंता किए बग़ैर वह अचार, पकोड़ा और तैलीय चीज़ें भी ख़ूब खाते थे। सिगरेट के भी ज़बर्दस्त शौक़ीन थे।
 
* सहगल को खाना बनाने का बहुत शौक़ था। मुग़लई मीट डिश वह बहुत चाव से बनाते थे और स्टूडियो में ले जाकर साथियों को भी खिलाते थे। यही नहीं, आवाज़ की चिंता किए बग़ैर वह अचार, पकोड़ा और तैलीय चीज़ें भी ख़ूब खाते थे। सिगरेट के भी ज़बर्दस्त शौक़ीन थे।
 
* सहगल ने [[ग़ालिब]] की क़रीब बीस ग़ज़लों को अपनी आवाज़ का सोज़ दिया। ग़ालिब से इसी मुहब्बत के कारण उन्होंने एक बार उनके मज़ार की मरम्मत करवाई थी।
 
* सहगल ने [[ग़ालिब]] की क़रीब बीस ग़ज़लों को अपनी आवाज़ का सोज़ दिया। ग़ालिब से इसी मुहब्बत के कारण उन्होंने एक बार उनके मज़ार की मरम्मत करवाई थी।
* सहगल पहले गायक थे, जिन्होंने गानों पर रॉयल्टी शुरू की। उस वक़्त प्रचार और प्रसार की दिक़क़्तों के बावजूद [[श्रीलंका]], [[ईरान]], [[इराक़]], [[इंडोनेशिया]], [[अफ़ग़ानिस्तान]] और [[फिजी]] में सुने जाते थे। आज भी 18 जनवरी को कई देशों में सहगल की याद में संगीत जलसे होते हैं।
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* सहगल पहले गायक थे, जिन्होंने गानों पर रॉयल्टी शुरू की। उस वक़्त प्रचार और प्रसार की दिक्कतों के बावजूद [[श्रीलंका]], [[ईरान]], इराक़, इंडोनेशिया, [[अफ़ग़ानिस्तान]] और फिजी में सुने जाते थे। आज भी 18 जनवरी को कई देशों में सहगल की याद में संगीत जलसे होते हैं।
*वह विग लगाकर एक्टिंग करते थे। अभिनेत्री [[कानन देवी]] ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, 'साथी की शूटिंग के दौरान हवा के झोंके से उनकी विग उड़ गई और उनका गंजा सिर दिखने लगा। लेकिन सहगल अपनी धुन में मगन शॉट देते रहे। इस पर दर्शक हंस पड़े। सहगल झेंपने की जगह लोगों के ठहाकों में शामिल हो गए।
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*वह विग लगाकर [[अभिनय]] करते थे। अभिनेत्री [[कानन देवी]] ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, 'साथी की शूटिंग के दौरान हवा के झोंके से उनकी विग उड़ गई और उनका गंजा सिर दिखने लगा। लेकिन सहगल अपनी धुन में मगन शॉट देते रहे। इस पर दर्शक हंस पड़े। सहगल झेंपने की जगह लोगों के ठहाकों में शामिल हो गए।
* सहगल की क़द्र [[भारत]] से ज़्यादा पाकिस्तान में नज़र आती है। वहाँ ज़िला स्तर पर सहगल यादगार कमेटियां बनी हैं। सहगल की बरसी पर आम प्रशंसा बाक़ायदा लंगर लगाते हैं।
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* सहगल की क़द्र [[भारत]] से ज़्यादा [[पाकिस्तान]] में नज़र आती है। वहाँ ज़िला स्तर पर सहगल यादगार कमेटियां बनी हैं। सहगल की बरसी पर आमजन प्रशंसा में बाक़ायदा लंगर लगाते हैं।
*[[भारत रत्न]] सम्मानित [[लता मंगेशकर]] सहगल की बड़ी भक्त हैं। वह चाहती थीं कि सहगल की कोई निशानी उनके पास हो। वह उनकी स्केल चेंजर हारमोनियम अपने पास रखना चाहती थीं, पर सहगल की बेटी ने उसे अपने पास रखते हुए सहगल की रतन जड़ी अंगूठी लता को दी। लता के पास आज भी वह निशानी है। कहते हैं कि कमउम्र में लता ने सहगल की एक फ़िल्म देखने के बाद उनसे शादी करने का ख्‍याल ज़ाहिर किया था।<ref name="VV"/>
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[[भारत]] के प्रसिद्ध गायक और अभिनेता के.एल. सहगल के 114वें जन्मदिन ([[11 अप्रॅल]], [[2018]]) पर गूगल ने उन्हें अपने डूडल के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की। गूगल ने डूडल के जरिए के.एल. सहगल को अपने खास अंदाज़में याद किया। गूडल ने सहगल के कैरिकेचर के जरिए उन्हें माइक के सामने गाते हुए दिखाया है। कुंदन लाल सहगल भारतीय हिन्दी सिनेमा के पहले सुपरस्टार माने जाते हैं।
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कुन्दन लाल सहगल
कुन्दन लाल सहगल
पूरा नाम कुन्दन लाल सहगल
प्रसिद्ध नाम के.एल. सहगल
जन्म 11 अप्रॅल, 1904
जन्म भूमि जम्मू, जम्मू और कश्मीर
मृत्यु 18 जनवरी, 1947
मृत्यु स्थान जालंधर, पंजाब
अभिभावक अमरचंद सहगल, केसरीबाई कौर
पति/पत्नी आशा रानी
संतान मदन मोहन (पुत्र), नीना और बीना (पुत्री)
कर्म भूमि मुम्बई, महाराष्ट्र
कर्म-क्षेत्र अभिनेता, गायक
मुख्य फ़िल्में देवदास, पुराण भगत (1933), सूरदास (1942), तानसेन (1943) आदि।
प्रसिद्धि गायक व अभिनेता
नागरिकता भारतीय
लोकप्रियता सहगल की आवाज़ की लोकप्रियता का यह आलम था कि कभी भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय रहा रेडियो सीलोन कई साल तक हर सुबह सात बज कर 57 मिनट पर इस गायक का गीत बजाता था।
अन्य जानकारी भारत रत्न सम्मानित लता मंगेशकर सहगल की बड़ी भक्त हैं। वह चाहती थीं कि सहगल की कोई निशानी उनके पास हो। सहगल की बेटी ने रतन जड़ी अंगूठी लता को दी। लता के पास आज भी वह निशानी है।

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कुन्दन लाल सहगल अथवा के. एल. सहगल (अंग्रेज़ी: Kundan Lal Saigal, जन्म- 11 अप्रॅल, 1904; मृत्यु- 18 जनवरी, 1947) हिन्दी फ़िल्मों में वैसे तो एक बेमिसाल गायक के रूप में विख्यात हैं लेकिन देवदास (1936) जैसी चंद फ़िल्मों में अभिनय के कारण उनके प्रशंसक उन्हें एक उम्दा अभिनेता भी करार देते हैं। कुन्दन लाल सहगल हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार कहे जा सकते हैं। 1930 और 40 के दशक की संगीतमयी फ़िल्मों की ओर दर्शक उनके भावप्रवण अभिनय और दिलकश गायकी के कारण खिंचे चले आते थे।

जीवन परिचय

कुंदन लाल सहगल अपने चहेतों के बीच के. एल. सहगल के नाम से मशहूर थे। उनका जन्म 11 अप्रैल 1904 को जम्मू के नवाशहर में हुआ था। उनके पिता अमरचंद सहगल जम्मू शहर में न्यायालय के तहसीलदार थे। बचपन से ही सहगल का रुझान गीत-संगीत की ओर था। उनकी माँ केसरीबाई कौर धार्मिक क्रिया-कलापों के साथ-साथ संगीत में भी काफ़ी रुचि रखती थीं।[1]

शिक्षा

सहगल ने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन सबसे पहले उन्होंने संगीत के गुर एक सूफ़ी संत सलमान युसूफ से सीखे थे। सहगल की प्रारंभिक शिक्षा बहुत ही साधारण तरीके से हुई थी। उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ी थी और जीवन यापन के लिए उन्होंने रेलवे में टाईमकीपर की मामूली नौकरी भी की थी। बाद में उन्होंने रेमिंगटन नामक टाइपराइटिंग मशीन की कंपनी में सेल्समैन की नौकरी भी की।[1]कहते हैं कि वे एक बार उस्ताद फैयाज ख़ाँ के पास तालीम हासिल करने की गरज से गए, तो उस्ताद ने उनसे कुछ गाने के लिए कहा। उन्होंने राग दरबारी में खयाल गाया, जिसे सुनकर उस्ताद ने गद्‌गद्‌ भाव से कहा कि बेटे मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है कि जिसे सीखकर तुम और बड़े गायक बन सको।[2]

पहली फ़िल्म

वर्ष 1930 में कोलकाता के न्यू थियेटर के बी. एन. सरकार ने उन्हें 200 रूपए मासिक पर अपने यहां काम करने का मौक़ा दिया। यहां उनकी मुलाकात संगीतकार आर.सी.बोराल से हुई, जो सहगल की प्रतिभा से काफ़ी प्रभावित हुए। शुरुआती दौर में बतौर अभिनेता वर्ष 1932 में प्रदर्शित एक उर्दू फ़िल्म ‘मोहब्बत के आंसू’ में उन्हें काम करने का मौक़ा मिला। वर्ष 1932 में ही बतौर कलाकार उनकी दो और फ़िल्में ‘सुबह का सितारा’ और ‘जिंदा लाश’ भी प्रदर्शित हुई, लेकिन इन फ़िल्मों से उन्हें कोई ख़ास पहचान नहीं मिली।[1]

बतौर गायक

वर्ष 1933 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘पुराण भगत’ की कामयाबी के बाद बतौर गायक सहगल कुछ हद तक फ़िल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। वर्ष 1933 में ही प्रदर्शित फ़िल्म ‘यहूदी की लड़की’, ‘चंडीदास’ और ‘रूपलेखा’ जैसी फ़िल्मों की कामयाबी से उन्होंने दर्शकों का ध्यान अपनी गायकी और अदाकारी की ओर आकर्षित किया।[1]

देवदास की कामयाबी

कुंदनलाल सहगल और जमुना बरुआ (फ़िल्म- देवदास)

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वर्ष 1935 में शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित पी.सी.बरूआ निर्देशित फ़िल्म ‘देवदास’ की कामयाबी के बाद बतौर गायक-अभिनेता सहगल शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे। कई बंगाली फ़िल्मों के साथ-साथ न्यू थियेटर के लिए उन्होंने 1937 में ‘प्रेंसिडेंट’, 1938 में ‘साथी’ और ‘स्ट्रीट सिंगर’ तथा वर्ष 1940 में ‘ज़िंदगी’ जैसी कामयाब फ़िल्मों को अपनी गायिकी और अदाकारी से सजाया। वर्ष 1941 में सहगल मुंबई के रणजीत स्टूडियो से जुड़ गए। वर्ष 1942 में प्रदर्शित उनकी ‘सूरदास’ और 1943 में ‘तानसेन’ ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता का नया इतिहास रचा। वर्ष 1944 में उन्होंने न्यू थियेटर की ही निर्मित फ़िल्म ‘मेरी बहन’ में भी काम किया।[1]

मृत्यु

अपने दो दशक के सिने करियर में सहगल ने 36 फ़िल्मों में अभिनय भी किया। हिंदी फ़िल्मों के अलावा उन्होंने उर्दू, बंगाली और तमिल फ़िल्मों में भी अभिनय किया। सहगल ने अपने संपूर्ण सिने करियर के दौरान लगभग 185 गीत गाए, जिनमें 142 फ़िल्मी और 43 गैर-फ़िल्मी गीत शामिल हैं। अपनी दिलकश आवाज़ से सिने प्रेमियों के दिल पर राज करने वाले के.एल.सहगल 18 जनवरी, 1947 को केवल 43 वर्ष की उम्र में इस संसार को अलविदा कह गए।[1]

लोकप्रियता

सहगल की आवाज़ की लोकप्रियता का यह आलम था कि कभी भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय रहा रेडियो सीलोन कई साल तक हर सुबह सात बज कर 57 मिनट पर इस गायक का गीत बजाता था। सहगल की आवाज़ लोगों की दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बन गई थी। सहगल रवीन्द्र संगीत गाने का सम्मान पाने वाले पहले गैर बांग्ला गायक और भारतीय सिनेमा के पहले सुपर स्टार थे। यह वह समय था जब भारतीय फ़िल्म उद्योग मुंबई में नहीं बल्कि कलकत्ता में केंद्रित था।[3] उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस जमाने में उनकी शैली में गाना अपने आपमें सफलता की कुंजी मानी जाती थी। मुकेश और किशोर कुमार ने अपने कैरियर के आरंभ में सहगल की शैली में गायन किया भी था। कुंदन के बारे में कहा जाता है कि पीढ़ी दर पीढी इस्तेमाल करने के बाद भी उसकी आभा कम नहीं पडती। सहगल सचमुच संगीत के कुंदन थे।[2]

सहगल की आवाज़

पाकिस्तानी शायर अफ़ज़ाल अहमद सैयद से शब्द उधार लें, तो कह सकते हैं, जैसे काग़ज़ मरा‍कशियों ने ईजाद किया था, हुरूफ़ फिनिशियों ने, सुर गंधर्वों ने, उसी तरह सिनेमा का संगीत सहगल ने ईजाद किया। दुनिया में कई रहस्य हैं चुनौती देते। चुनौती सहगल भी दे गए हैं। फ़क़ीरों-सा बैराग, साधुओं-सी उदारता, मौनियों-सी आवाज़, हज़ार भाषाओं का इल्म रखने वाली आँखें, रात के पिछले पहर गूंजने वाली सिसकी जैसी ख़ामोशी, और पुराने वक़्तों के रिकॉर्ड की तरह पूरे माहौल में हाहाकार मचाती एक सरसराहट... बता दो एक बार, ये सब क्या है? वह कौन-सी गंगोत्री है, जहां से निकल कर आती है सहगल की आवाज़?

पता कर लो, कहां से आता है सहगल का दर्द, जो सीने में हूक, आंखों में नमी और कंठ में कांटे दे जाता है? क्यों एक रुलाहट आंखों पर दस्तक देती है और बिना कुछ कहे तकती हुई-सी लौट जाती है? यह सुबह या दुपहरी की नहीं, सांझ के झुटपुटे की आवाज़ है, जिसका असर रात के साथ गहरा होता जाता है। अगर आप दिल से कमज़ोर हैं, आधी रात को सहगल मत सुनिए। उन्हें सुनना भाषा में तमीज़ को जीना है। आंख में आंसू का सम्मान करना है। दु:ख जो दिल के क़गार पर रहता है, उसे बीचो-बीच लाकर महल में जगह देनी है। दु:ख को जियो, तो जीने का शऊर आ जाता है।[4]

रोचक तथ्य

कुंदनलाल सहगल के सम्मान में भारत सरकार द्वारा जारी डाक टिकट
  • सहगल की उदारता के कई क़िस्से मिलते हैं। कहते हैं कि न्यू थिएटर्स के ऑफिस से उनकी सैलरी सीधे उनके घर पहुंचाई जाती थी, क्योंकि अगर उनके हाथ में पैसे होते, तो आधा वह शराब में उड़ा देते, बाक़ी ज़रूरतमंदों में बांट देते। एक बार उन्होंने पुणे में एक विधवा को हीरे की अंगूठी दे दी थी।
  • सहगल बिना शराब पिए नहीं गाते थे। 'शाहजहां' के दौरान नौशाद ने उनसे बिना शराब पिए गवाया, और उसके बाद सहगल की ज़िद पर वही गाना शराब पिलाकर गवाया। बिना पिए वह ज़्यादा अच्छा गा रहे थे। उन्होंने नौशाद से कहा, 'आप मेरी ज़िंदगी में पहले क्यों नहीं आए? अब तो बहुत देर हो गई।
  • सहगल को खाना बनाने का बहुत शौक़ था। मुग़लई मीट डिश वह बहुत चाव से बनाते थे और स्टूडियो में ले जाकर साथियों को भी खिलाते थे। यही नहीं, आवाज़ की चिंता किए बग़ैर वह अचार, पकोड़ा और तैलीय चीज़ें भी ख़ूब खाते थे। सिगरेट के भी ज़बर्दस्त शौक़ीन थे।
  • सहगल ने ग़ालिब की क़रीब बीस ग़ज़लों को अपनी आवाज़ का सोज़ दिया। ग़ालिब से इसी मुहब्बत के कारण उन्होंने एक बार उनके मज़ार की मरम्मत करवाई थी।
  • सहगल पहले गायक थे, जिन्होंने गानों पर रॉयल्टी शुरू की। उस वक़्त प्रचार और प्रसार की दिक्कतों के बावजूद श्रीलंका, ईरान, इराक़, इंडोनेशिया, अफ़ग़ानिस्तान और फिजी में सुने जाते थे। आज भी 18 जनवरी को कई देशों में सहगल की याद में संगीत जलसे होते हैं।
  • वह विग लगाकर अभिनय करते थे। अभिनेत्री कानन देवी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, 'साथी की शूटिंग के दौरान हवा के झोंके से उनकी विग उड़ गई और उनका गंजा सिर दिखने लगा। लेकिन सहगल अपनी धुन में मगन शॉट देते रहे। इस पर दर्शक हंस पड़े। सहगल झेंपने की जगह लोगों के ठहाकों में शामिल हो गए।
  • सहगल की क़द्र भारत से ज़्यादा पाकिस्तान में नज़र आती है। वहाँ ज़िला स्तर पर सहगल यादगार कमेटियां बनी हैं। सहगल की बरसी पर आमजन प्रशंसा में बाक़ायदा लंगर लगाते हैं।
  • भारत रत्न सम्मानित लता मंगेशकर सहगल की बड़ी भक्त हैं। वह चाहती थीं कि सहगल की कोई निशानी उनके पास हो। वह उनकी स्केल चेंजर हारमोनियम अपने पास रखना चाहती थीं, पर सहगल की बेटी ने उसे अपने पास रखते हुए सहगल की रतन जड़ी अंगूठी लता को दी। लता के पास आज भी वह निशानी है। कहते हैं कि कम उम्र में लता ने सहगल की एक फ़िल्म देखने के बाद उनसे शादी करने का ख्‍याल ज़ाहिर किया था।[4]
कुन्दन लाल सहगल पर जारी गूगल-डूडल

गूगल डूडल

भारत के प्रसिद्ध गायक और अभिनेता के.एल. सहगल के 114वें जन्मदिन (11 अप्रॅल, 2018) पर गूगल ने उन्हें अपने डूडल के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की। गूगल ने डूडल के जरिए के.एल. सहगल को अपने खास अंदाज़में याद किया। गूडल ने सहगल के कैरिकेचर के जरिए उन्हें माइक के सामने गाते हुए दिखाया है। कुंदन लाल सहगल भारतीय हिन्दी सिनेमा के पहले सुपरस्टार माने जाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 1.5 के.एल.सहगल की आवाज़ का जादू आज भी बरकरार (हिन्दी) (पी.एच.पी) जोश 18। अभिगमन तिथि: 5 सितंबर, 2011।
  2. 2.0 2.1 संगीत का कुंदन (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जानकी पुल (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 5 सितंबर, 2011।
  3. भारतीय सिनेमा के पहले सुपर स्टार थे कुंदनलाल सहगल (हिन्दी) (पी.एच.पी.) दैनिक ट्रिब्यून। अभिगमन तिथि: 5 सितंबर, 2011।
  4. 4.0 4.1 आज महान् गायक कुंदनलाल सहगल का जन्‍मदिन है... (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वैतागवाड़ी। अभिगमन तिथि: 5 सितंबर, 2011।

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