कुमायूँनी बोली

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कुमायूँनी बोली का प्रमुख क्षेत्र कुमायूँ होने के कारण इसे 'कुमायूँनी' कहते हैं।

  • 'कुमायूँ' शब्द की व्युत्पत्ति कई प्रकार से दी गई है।
  • अधिक मान्य मत के अनुसार इसका सम्बन्ध संस्कृत शब्द 'कूर्माचल' से है।
  • ग्रियर्सन के भाषा - सर्वेक्षण के अनुसार 'कुमायूँनी' बोलने वालों की संख्या लगभग 4,36,788 थी।
  • यह कुमायूँ कमिश्नरी के नैनीताल (उत्तरी भाग), अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चमोली तथा उत्तरकाशी ज़िलों में बोली जाती है।*भाषा और बोलियों की दृष्टि से यह गढ़वाली, तिब्बती, नेपाली तथा पश्चिमी हिन्दी से घिरी है।
  • 'कुमायूँनी' की उपबोलियाँ तथा स्थानीय रूप, बहुत विकसित हो गये हैं जिनमें प्रधान खसपरजिया, कुमयाँ या कुमैताँ, फल्दकोटिया, पछाई, चौगरखिया, गंगोला, दानपुरिया, सीराली, सोरियाली, अस्कोटी, जोहारी, रउचोभैंसी तथा भोटिआ हैं।
  • 'कुमायूँनी' पर 'राजस्थानी' का इतना अधिक प्रभाव है कि यह उसका एक रूप- सा ज्ञात होती है।
  • 'कुमायूँनी' में पुराना साहित्य तो नहीं है, किंतु इधर लगभग डेढ़ सौ वर्षों से साहित्य- रचना हुई है।
  • यहाँ के पुराने साहित्यिकों में गुमानी पंत, कृष्णदत्त पांडे, सिवदत्त सत्ती आदि प्रधान हैं।
  • इसकी लिपि नागरी है।


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