कोहिनूर हीरा

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कोहिनूर हीरा (Koh-i-noor Diamond)

कोहिनूर हीरा (Koh-i-noor Diamond)

दुनिया के सभी हीरों का राजा है कोहिनूर हीरा। कोहिनूर के जन्‍म की प्रमाणित जानकारी न‍हीं है पर कोहिनूर का पहला उल्‍लेख 3000 वर्ष पहले मिला था। इसका नाता श्री कृष्‍ण काल से बताया जाता है। प्राचीन संस्कृत पुराणों के अनुसार स्‍वयंतक मणि ही बाद में कोहिनूर कहलायी। हिन्दू कथाओं के अनुसार[, भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं यह मणि, जाम्बवंत से ली थी, जिसकी पुत्री जामवंती ने बाद में श्री कृष्ण से विवाह भी किया था। जब जाम्वंत सो रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने यह मणि चुरा ली थी।

एक अन्य कथा अनुसार, ये मणि सूर्य से कर्ण को फिर अर्जुन और युधिष्ठिर को मिली। फिर अशोक, हर्ष और चन्‍द्रगुप्‍त के हाथ यह मणि लगी। सन् 1306 में यह मणि सबसे पहले मालवा के महाराजा रामदेव के पास देखी गयी। मालवा के महाराजा को पराजित करके सुल्‍तान अलाउदीन खिलजी ने मणि पर कब्‍जा कर लिया। बाबर से पीढी दर पीढी यह बेमिसाल हीरा अंतिम मुगल बादशाह औरंगजेब को मिला।

’ज्‍वेल्‍स आफ बिट्रेन’ का मानना है कि सन् 1655 के आसपास कोहिनूर का जन्‍म हिन्‍दुस्‍तान के गोलकुण्‍डा जिले की कोहिनूर खान से हुआ, जो आंध्र प्रदेश में, विश्व की सवसे प्राचीन खानों में से एक हैं। सन 1730 तक यह विश्व का एकमात्र हीरा उत्पादक क्षेत्र ज्ञात था। इसके बाद ब्राजील में हीरों की खोज हुई। शब्द गोलकुण्डा हीरा, अत्यधिक श्वेत वर्ण, स्पष्टता व उच्च कोटि की पारदर्शिता हे लिये प्रयोग की जाती रही है। यह अत्यधिक दुर्लभ, अतः कीमती होते हैं। तब हीरे का वजन था 787 कैरेट। इसे बतौर तोहफा खान मालिकों ने शाहजहां को दिया। सन् 1739 तक हीरा शाहजहां के पास र‍हा।

14वीं शताब्दी से पहले का इसका कोई विवरण ज्ञात नहीं है। यद्यपि बाबर के साथ भी इसका नाम जुड़ता है, पर निश्चित प्रमाण यह है कि यह औरंगज़ेब के पास था।

सन् 1739 में मुगलो से इसे ईरानी शासक नादिर शाह ने लूट लिया। उसने आगरा व दिल्ली में भयंकर लूटपाट की। वह मयूर सिंहासन सहित कोहिनूर व अगाध सम्पत्ति फारस लूट कर ले गया। इसकी चकाचौधं चमक देखकर ही नादिर शाह के मुख से अचानक निकल पड़ा, कोह-इ-नूर, जिससे इसको अपना वर्तमान नाम मिला। 1739 से पूर्व, इस नाम का कोई भी सन्दर्भ ज्ञात नहीं है। कोहिनूर का मूल्यांकन, नादिर शाह की एक कथा से मिलता है। उसकी रानी ने कहा था, कि यदि कोई शक्तिशाली मानव, पाँच पत्थरों को चारों दिशाओं, व ऊपर की ओर, पूरी शक्ति सहित फेंके, तो उनके बीच का खाली स्थान, यदि सुवर्ण व रत्नों मात्र से ही भरा जाये, उनके बराबर इसकी कीमत होगी।

सन् 1813 ई. से कोहिनूर को रखने वाले आखिरी हिन्‍दुस्‍तानी शेर-ए-पंजाब रणजीत सिंह थे। सन् 1849 मे महाराजा रणजीतसिंह की मृत्यु के बाद और पंजाब की सत्‍ता हथियाने के बाद कोहिनूर अंग्रेजों के हाथ लग गया। फिर सन् 1850 में ईस्‍ट इण्डिया कम्‍पनी ने कोहिनूर को लंदन ले जाकर तत्कालीन महारानी विक्टोरिया को भेंट कर दिया। इंग्‍लैण्‍ड पंहुचते-पंहुचते कोहिनूर का वजन केवल 186.06 कैरेट (37.2 ग्राम) रह गया। महारानी विक्‍टोरिया के जौहरी प्रिंस एलवेट ने कोहिनूर की पुन: कटाई की और पॉलिश करवाई। सन् 1852 से आज तक कोहिनूर को वजन 106.6 कैरेट (21.6 ग्राम) ही रह गया है। सन् 1911 में कोहिनूर महारानी मैरी के सरताज में जड़ा गया। और आज भी उसी ताज में है। इसे लंदन स्थित ‘टावर आफ लंदन’ संग्राहलय में नुमाइश के लिये रखा गया है।

फिलहाल इसे भारत वापस लाने को कोशिशें जारी की गयी हैं। आजादी के फौरन बाद, भारत ने कई बार कोहिनूर पर अपना मालिकाना हक जताया है। महाराजा दिलीप सिंह की बेटी कैथरीन की सन् 1942 मे मृत्‍यु हो गयी थी, जो कोहिनूर के भारतीय दावे के संबध में ठोस दलीलें दे सकती थी।

लंदन टॉवर, ब्रिटेन की राजधानी लंदन के केंद्र में टेम्स नदी के किनारे बना एक भव्य क़िला है जिसे सन् 1078 में विलियम द कॉंकरर ने बनवाया था। इसके लिए पत्थर फ़्रांस से मंगाए गए थे। इस परिसर में और भी कई इमारतें हैं। यह शाही महल तो था ही, साथ ही यहां राजसी बंदियों के लिए कारागार भी था और कई को यहां मृत्यु दंड भी दिया गया। हैनरी अष्टम ने अपनी रानी ऐन बोलिन का 1536 में यहीं सर क़लम कराया था और कहते हैं कि अब भी वो अपना सिर बगल में लिए क़िले में घूमती दिखाई दे जाती हैं। हां, इस क़िले की एक विशेषता और है कि यहां हमेशा से काले कौवे रहते आए हैं और यह किम्वदन्ती है कि जिस दिन ये कौवे टावर ऑफ़ लंडन छोड़ कर चले जाएंगे बस तभी राजशाही समाप्त हो जाएगी। राजपरिवार इस क़िले में नहीं रहता है लेकिन शाही जवाहरात इसमें सुरक्षित हैं जिनमें कोहिनूर हीरा भी शामिल है।


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