क्रिया

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  • जिस शब्द अथवा शब्द-समूह के द्वारा किसी कार्य के होने अथवा किये जाने का बोध हो उसे क्रिया कहते हैं। जैसे-
  1. सीता 'नाच रही है'।
  2. बच्चा दूध 'पी रहा है'।
  3. सुरेश कॉलेज 'जा रहा है'।
  4. मीरा 'बुद्धिमान है'।
  5. शिवा जी बहुत 'वीर' थे।

इनमें ‘नाच रही है’, ‘पी रहा है’, ‘जा रहा है’ शब्दों से कार्य-व्यापार का बोध हो रहा हैं। इन सभी शब्दों से किसी कार्य के करने अथवा होने का बोध हो रहा है। अतः ये क्रियाएँ हैं।

धातु

क्रिया का मूल रूप धातु कहलाता है। जैसे - लिख, पढ़, जा, खा, गा, रो, आदि। इन्हीं धातुओं से लिखता, पढ़ता, आदि क्रियाएँ बनती हैं।

क्रिया के भेद

क्रिया के दो भेद हैं-

  1. अकर्मक क्रिया।
  2. सकर्मक क्रिया।
  3. द्विकर्मक क्रिया

अकर्मक क्रिया

जिन क्रियाओं का असर कर्ता पर ही पड़ता है वे अकर्मक क्रिया कहलाती हैं। ऐसी अकर्मक क्रियाओं को कर्म की आवश्यकता नहीं होती। अकर्मक क्रियाओं के उदाहरण हैं-

  1. राकेश रोता है।
  2. साँप रेंगता है।
  3. बस चलती है।

कुछ अकर्मक क्रियाएँ

  • लजाना,
  • होना,
  • बढ़ना,
  • सोना,
  • खेलना,
  • अकड़ना,
  • डरना,
  • बैठना,
  • हँसना,
  • उगना,
  • जीना,
  • दौड़ना,
  • रोना,
  • ठहरना,
  • चमकना,
  • डोलना,
  • मरना,
  • घटना,
  • फाँदना,
  • जागना,
  • बरसना,
  • उछलना,
  • कूदना आदि।

सकर्मक क्रिया

जिन क्रियाओं का असर कर्ता पर नहीं कर्म पर पड़ता है, वह सकर्मक क्रिया कहलाती हैं। इन क्रियाओं में कर्म का होना आवश्यक होता हैं, उदाहरण -

  1. मैं लेख लिखता हूँ।
  2. सुरेश मिठाई खाता है।
  3. मीरा फल लाती है।
  4. भँवरा फूलों का रस पीता है।

द्विकर्मक क्रिया

जिन क्रियाओं के दो कर्म होते हैं, उन्हें द्विकर्मक क्रिया कहते हैं। उदाहरण-

  1. मैंने राम को पुस्तक दी।
  2. श्याम ने राधा को रुपये दिए।
  • ऊपर के वाक्यों में ‘देना’ क्रिया के दो कर्म हैं। अतः देना द्विकर्मक क्रिया हैं।

प्रयोग की दृष्टि से क्रिया के भेद

  • प्रयोग की दृष्टि से क्रिया के निम्नलिखित पाँच भेद हैं-

सामान्य क्रिया

जहाँ केवल एक क्रिया का प्रयोग किया जाता है वहाँ सामान्य क्रिया होती है। जैसे-

  1. आप आए।
  2. वह नहाया आदि।

संयुक्त क्रिया

जहाँ दो अथवा अधिक क्रियाओं का साथ-साथ प्रयोग किया जाता है, वे संयुक्त क्रिया कहलाती हैं। जैसे-

  1. मीरा महाभारत पढ़ने लगी।
  2. वह खा चुका।

नाम धातु क्रिया

संज्ञा, सर्वनाम अथवा विशेषण शब्दों से बने क्रियापद को नामधातु क्रिया कहते हैं। जैसे - हथियाना, शरमाना, अपनाना, लजाना, झुठलाना आदि।

प्रेरणार्थक क्रिया

जिस क्रिया से ज्ञान हो कि कर्ता स्वयं कार्य को न करके किसी अन्य को कार्य करने की प्रेरणा देता है वह प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है। इन क्रियाओं के दो कर्ता होते हैं-

  1. प्रेरक कर्ता - प्रेरणा प्रदान करने वाला।
  2. प्रेरित कर्ता - प्रेरणा लेने वाला।

जैसे -

  • श्याम राधा से पत्र लिखवाता है। इसमें वास्तव में पत्र तो राधा लिखती है, किन्तु उसको लिखने की प्रेरणा श्याम देता है। अतः ‘लिखवाना’ क्रिया प्रेरणार्थक क्रिया है। इस वाक्य में श्याम प्रेरक कर्ता है और राधा प्रेरित कर्ता।

पूर्वकालिक क्रिया

किसी क्रिया से पूर्व यदि कोई दूसरी क्रिया प्रयुक्त होती है तो वह पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है।

  • जैसे- मैं अभी सोकर उठा हूँ। इसमें ‘उठा हूँ’ क्रिया से पूर्व ‘सोकर’ क्रिया का प्रयोग हुआ है। अतः ‘सोकर’ पूर्वकालिक क्रिया है।

विशेष- पूर्वकालिक क्रिया या तो क्रिया के सामान्य रूप में प्रयुक्त होती है अथवा धातु के अंत में ‘कर’ अथवा ‘करके’ लगा देने से पूर्वकालिक क्रिया बन जाती है। जैसे-

  1. राकेश दूध पीते ही सो गया।
  2. लड़कियाँ पुस्तकें पढ़कर जाएँगी।

अपूर्ण क्रिया

कई बार वाक्य में क्रिया के होते हुए भी उसका अर्थ स्पष्ट नहीं होता, ऐसी क्रियाएँ अपूर्ण क्रिया कहलाती हैं। जैसे -

  1. महात्मा गाँधी थे।
  2. तुम हो। ये क्रियाएँ अपूर्ण क्रियाएँ है।
  • इन्हीं वाक्यों को इस प्रकार पूर्ण किया जा सकता है-
  1. महात्मा गांधी राष्ट्रपिता थे।
  2. तुम बुद्धिमान हो।
  • इन वाक्यों में क्रमशः ‘राष्ट्रपिता’ और ‘बुद्धिमान’ शब्दों के प्रयोग से स्पष्टता आ गई। ये सभी शब्द ‘पूरक’ हैं।
  • अपूर्ण क्रिया के अर्थ को पूरा करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है उन्हें पूरक कहते हैं।

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