खजूर

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  • खजूर (DATE EDIBLE) - पामी (Palmae) कुल के अंतर्गत फीनिक्स (Phoenix) जाति की कई उपजातियों को प्राय: खजूर नाम दिया जाता है। इनमें फीनिक्स डैक्टिलिफेरा (P.dactylifera) और फीनिक्स सिल्वेस्ट्रिस (Sylvestris) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उत्तरी अफ्रीका तथा दक्षिणी-पश्चिमी एशिया का देश, सिंध, पंजाब, बलूचिस्तान तथा कई अरब देशों में इसकी खेती की जाती है।
  • खजूर के पेड़ पतले व बहुत ऊंचे होते हैं। खजूर के पेड़ नारियल के पेड़ के समान होते हैं। भारतीय खजूर के वृक्ष 30 से 50 फुट ऊंचे होते हैं और इसके तने तंतुओं से बने 3 फुट लम्बे मटमैले होते हैं। इनका तना गिरी हुई पुरानी पत्तियों के कड़े पत्राधारों से ढका रहता है। खजूर के पत्ते नोकदार कटे-कटे से 10 से 15 फुट तक लम्बे, पक्षाकार और पत्रक 6 - 18 इंच तक लंबे तथा 1 इंच तक चौड़े, गुच्छबद्ध तथा नीचे वाले काँटों में परिवर्तित होते हैं। इसके फूल खुशबूदार, छोटे, एकलिंगी, अलग अलग सशाख मंजरियों में निकले हुए रहते हैं, जो आधार पर कड़े पत्रकोशों (Spathes) से ढकी रहती हैं। नर मंजरियाँ सघन, श्वेत और सुगंधित तथा नारी मंजरियाँ एवं उनमें लगनेवाले फल नारंगपीत वर्ण के होते हैं। फल लगभग एक इंच बड़े, मधुर, परंतु अत्यल्प मज्जावाले होते हैं। फल छोटे-छोटे गुच्छों में होते हैं और इसके अन्दर बीज सख्त व दोनों सिरों से गोल होते हैं। इसमें पीले व हल्के लाल रंग के फल लगते हैं। जो पहले हरे, फिर पीले व पकने के बाद लाल हो जाते हैं।
  • इस विदेशी जाति के ताजे पके फल को खजूर, पिंड खजूर, तमर या खुर्मा और पके, सूखे फल को छुहारा, खारिक अथवा डेट (Date) कहते हैं। दूसरी जाति का भारतीय खजूर भारत में अनेक जगह स्वयंजात या लगाया हुआ मिलता है। इसके फल भी पकने पर खाए जाते हैं, परंतु ताड़ी की तरह इससे निकलने वाले खजूरी रस और उससे तैयार किए हुए मद्य तथा गुड़ का प्रचुर उपयोग होता है।
  • खजूर 2 प्रकार के होते हैं - खजूर और पिण्ड खजूर। पिण्ड खजूर का फल खजूर के फल से अधिक गूदेदार व काफी बड़ा होता है। यही फल सूखने पर छुहारा कहलाता है। खजूर एक पौष्टिक मेवा भी है। खजूर के पेड़ के ताजे रस को नीरा और बासी को ताड़ी कहते हैं।
  • खजूर के फल का रस मधुर, गुरु, शीतल तथा क्षत, क्षतक्षय तथा रक्तपित्त को दूर करनेवाला होता है। छुहारा (सूखाफल) पौष्टिक, बाजीकर, उष्णताजनक और वातनाड़ी के लिये बलदायक होता है। खजूरी शीतल, मूत्रजनक और पौष्टिक होती हैं। सड़ाने से इसमें मद्य बनता और अमलत्व उत्पन्न होता है। इससे खींचा हुआ मद्य दीपक, पाचक और उत्तेजक होता है। इसके रस से तैयार गुड़ गन्ने के गुड़ से अधिक पौष्टिक और सारक होता है। पत्तियों का उपयोग चटाई तथा टोकरियाँ बनाने में होता है।
  • आयुर्वेद के अनुसार :-- खजूर स्वादिष्ट, पौष्टिक, मीठा, शीतल, तृप्तिकारक (इच्छा को शांत करने वाला), स्निग्ध, वात, पित्त और कफ को दूर करने वाला होता है। यह टी.बी, रक्त पित्त, सूजन एवं फेफड़ों की सूजन के लिए लाभकारी होता है। यह शरीर एवं नाड़ी को शक्तिशाली बनाता है। सिर दर्द, बेहोशी, कमजोरी, भ्रम, पेट दर्द, शराब के दोषों को दूर करने के लिए इसका प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता है। यह दमा, खांसी, बुखार, मूत्र रोग के लिए भी लाभकारी है।
  • यूनानी चिकित्सकों के अनुसार :-- खजूर गर्म व तर होता है। यह कमजोर लीवर को मजबूत बनाने वाला, थकावट को दूर करने वाला, शरीर को मोटा बनाने वाला, धातुदोष को दूर करने वाला, लकवा और कमर के दर्द को समाप्त करने वाला होता है। यह कामोत्तेजक होता है।
  • रंग : खजूर का रंग काला व लाल होता है।
  • स्वाद : खजूर का स्वाद मीठा और वाकस होता है।
  • प्रकृति : खजूर शीतल और ठंडा होता है।
  • हानिकारक : खजूर का अधिक उपयोग करना खून को जला देता है।
  • दोषों को दूर करने वाला : खजूर के साथ बादाम खाने से खजूर में मौजूद दोष दूर होते हैं।
  • मात्रा : 50 से 70 ग्राम।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ