"खारवेल" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
<blockquote>'प्रसिद्ध इतिहासकार के.पी. जायसवाल ने मेघवंश राजाओं को चेदीवंश का माना है. ‘भारत अंधकार युगीन इतिहास (सन 150 ई. से 350 ई. तक)’ में वे लिखते हैं, ‘ये लोग मेघ कहलाते थे. ये लोग उड़ीसा तथा कलिंग के उन्हीं चेदियों के वंशज थे, जो खारवेल के वंशधर थे और अपने साम्राज्य काल में ‘महामेघ’ कहलाते थे. [[भारत]] के पूर्व में जैन धर्म फैलाने का श्रेय खारवेल को जाता है. कलिंग राजा जैन धर्म के अनुयायी थे, उनका वैष्णव धर्म से विरोध था. अत: वैष्णव धर्मी राजा अशोक ने उस पर आक्रमण किया इसका दूसरा कारण समुद्री मार्ग पर कब्जा भी था. इसे ‘कलिंग युद्ध’ के नाम से जाना जाता है. युद्ध में एक लाख से अधिक लोग मारे जाने से व्यथित अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया और अहिंसा पर जोर देकर बौद्ध धर्म को अन्य देशों तक फैलाया.' <ref>{{cite web |url=http://www.maheshpanthi.net/uncategorized/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%98%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%A8/|title=मेघवंश: एक सिंहावलोकन|accessmonthday=4सितम्बर |accessyear=2010 |last=|first=|authorlink=maheshpanthi.net|format=एच टी एम एल |publisher=maheshpanthi.net|language=हिन्दी }}</ref></blockquote>
 
<blockquote>'प्रसिद्ध इतिहासकार के.पी. जायसवाल ने मेघवंश राजाओं को चेदीवंश का माना है. ‘भारत अंधकार युगीन इतिहास (सन 150 ई. से 350 ई. तक)’ में वे लिखते हैं, ‘ये लोग मेघ कहलाते थे. ये लोग उड़ीसा तथा कलिंग के उन्हीं चेदियों के वंशज थे, जो खारवेल के वंशधर थे और अपने साम्राज्य काल में ‘महामेघ’ कहलाते थे. [[भारत]] के पूर्व में जैन धर्म फैलाने का श्रेय खारवेल को जाता है. कलिंग राजा जैन धर्म के अनुयायी थे, उनका वैष्णव धर्म से विरोध था. अत: वैष्णव धर्मी राजा अशोक ने उस पर आक्रमण किया इसका दूसरा कारण समुद्री मार्ग पर कब्जा भी था. इसे ‘कलिंग युद्ध’ के नाम से जाना जाता है. युद्ध में एक लाख से अधिक लोग मारे जाने से व्यथित अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया और अहिंसा पर जोर देकर बौद्ध धर्म को अन्य देशों तक फैलाया.' <ref>{{cite web |url=http://www.maheshpanthi.net/uncategorized/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%98%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%A8/|title=मेघवंश: एक सिंहावलोकन|accessmonthday=4सितम्बर |accessyear=2010 |last=|first=|authorlink=maheshpanthi.net|format=एच टी एम एल |publisher=maheshpanthi.net|language=हिन्दी }}</ref></blockquote>
 
==शिलालेख में उल्लेख==
 
==शिलालेख में उल्लेख==
{{mainहाथीगुम्फ़ा शिलालेख}}
+
{{main हाथीगुम्फ़ा शिलालेख}}
 
[[मौर्य वंश]] की शक्ति के शिथिल होने पर जब [[मगध]] साम्राज्य के अनेक सुदूरवर्ती प्रदेश मौर्य सम्राटों की अधीनता से मुक्त होने लगे, तो [[कलिंग]] भी स्वतंत्र हो गया। [[उड़ीसा]] के भुवनेश्वर नामक स्थान से तीन मील दूर उदयगिरि नाम की पहाड़ी है, जिसकी एक गुफ़ा में एक शिलालेख उपलब्ध हुआ है, जो 'हाथीगुम्फ़ा लेख' के नाम से प्रसिद्ध है। इसे कलिंगराज ख़ारवेल ने उत्कीर्ण कराया था। यह लेख [[प्राकृत भाषा]] में है, और प्राचीन भारतीय इतिहास के लिए इसका बहुत अधिक महत्व है। इसके अनुसार कलिंग के स्वतंत्र राज्य के राजा प्राचीन 'ऐल वंश' के चेति या चेदि क्षत्रिय थे। [[चेदि वंश]] में 'महामेधवाहन' नाम का प्रतापी राजा हुआ, जिसने मौर्यों की निर्बलता से लाभ उठाकर कलिंग में अपना स्वतंत्र शासन स्थापित किया। महामेधवाहन की तीसरी पीढ़ी में ख़ारवेल हुआ, जिसका वृत्तान्त हाथीगुम्फ़ा शिलालेख में विशद के रूप से उल्लिखित है। ख़ारवेल [[जैन धर्म]] का अनुयायी था, और सम्भवतः उसके समय में कलिंग की बहुसंख्यक जनता भी वर्धमान महावीर के धर्म को अपना चुकी थी।
 
[[मौर्य वंश]] की शक्ति के शिथिल होने पर जब [[मगध]] साम्राज्य के अनेक सुदूरवर्ती प्रदेश मौर्य सम्राटों की अधीनता से मुक्त होने लगे, तो [[कलिंग]] भी स्वतंत्र हो गया। [[उड़ीसा]] के भुवनेश्वर नामक स्थान से तीन मील दूर उदयगिरि नाम की पहाड़ी है, जिसकी एक गुफ़ा में एक शिलालेख उपलब्ध हुआ है, जो 'हाथीगुम्फ़ा लेख' के नाम से प्रसिद्ध है। इसे कलिंगराज ख़ारवेल ने उत्कीर्ण कराया था। यह लेख [[प्राकृत भाषा]] में है, और प्राचीन भारतीय इतिहास के लिए इसका बहुत अधिक महत्व है। इसके अनुसार कलिंग के स्वतंत्र राज्य के राजा प्राचीन 'ऐल वंश' के चेति या चेदि क्षत्रिय थे। [[चेदि वंश]] में 'महामेधवाहन' नाम का प्रतापी राजा हुआ, जिसने मौर्यों की निर्बलता से लाभ उठाकर कलिंग में अपना स्वतंत्र शासन स्थापित किया। महामेधवाहन की तीसरी पीढ़ी में ख़ारवेल हुआ, जिसका वृत्तान्त हाथीगुम्फ़ा शिलालेख में विशद के रूप से उल्लिखित है। ख़ारवेल [[जैन धर्म]] का अनुयायी था, और सम्भवतः उसके समय में कलिंग की बहुसंख्यक जनता भी वर्धमान महावीर के धर्म को अपना चुकी थी।
  

13:09, 11 अक्टूबर 2010 का अवतरण

राजा खारवेल (काल्पनिक चित्र)

पहली सदी ई.पू. तक कलिंग का जैन राजा 'खारवेल' इस महाद्वीप का सर्वश्रेष्ठ सम्राट बन चुका था और मौर्य शासकों का मगध कलिंग साम्राज्य का एक प्रांत बन चुका था। उड़ीसा में भुवनेश्वर के निकट उदयगिरि की पहाड़ियों में खारवेल के शासनकाल के 'स्मारक प्राप्य प्राचीन स्मारकों' में सबसे प्राचीन हैं। उपलब्ध शिलालेखों में राजा खारवेल को केवल सैन्य कौशल में ही माहिर नहीं बताया गया है बल्कि उसे साहित्य, गणित और सामाजिक विज्ञान का भी ज्ञाता बताया गया है। कला के संरक्षक के रूप में भी उसकी महान ख्याति थी और अपनी राजधानी में नृत्य और नाट्य कला को भी प्रोत्साहन देने का श्रेय उसे मिला।[1]

'प्रसिद्ध इतिहासकार के.पी. जायसवाल ने मेघवंश राजाओं को चेदीवंश का माना है. ‘भारत अंधकार युगीन इतिहास (सन 150 ई. से 350 ई. तक)’ में वे लिखते हैं, ‘ये लोग मेघ कहलाते थे. ये लोग उड़ीसा तथा कलिंग के उन्हीं चेदियों के वंशज थे, जो खारवेल के वंशधर थे और अपने साम्राज्य काल में ‘महामेघ’ कहलाते थे. भारत के पूर्व में जैन धर्म फैलाने का श्रेय खारवेल को जाता है. कलिंग राजा जैन धर्म के अनुयायी थे, उनका वैष्णव धर्म से विरोध था. अत: वैष्णव धर्मी राजा अशोक ने उस पर आक्रमण किया इसका दूसरा कारण समुद्री मार्ग पर कब्जा भी था. इसे ‘कलिंग युद्ध’ के नाम से जाना जाता है. युद्ध में एक लाख से अधिक लोग मारे जाने से व्यथित अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया और अहिंसा पर जोर देकर बौद्ध धर्म को अन्य देशों तक फैलाया.' [2]

शिलालेख में उल्लेख

साँचा:Main हाथीगुम्फ़ा शिलालेख मौर्य वंश की शक्ति के शिथिल होने पर जब मगध साम्राज्य के अनेक सुदूरवर्ती प्रदेश मौर्य सम्राटों की अधीनता से मुक्त होने लगे, तो कलिंग भी स्वतंत्र हो गया। उड़ीसा के भुवनेश्वर नामक स्थान से तीन मील दूर उदयगिरि नाम की पहाड़ी है, जिसकी एक गुफ़ा में एक शिलालेख उपलब्ध हुआ है, जो 'हाथीगुम्फ़ा लेख' के नाम से प्रसिद्ध है। इसे कलिंगराज ख़ारवेल ने उत्कीर्ण कराया था। यह लेख प्राकृत भाषा में है, और प्राचीन भारतीय इतिहास के लिए इसका बहुत अधिक महत्व है। इसके अनुसार कलिंग के स्वतंत्र राज्य के राजा प्राचीन 'ऐल वंश' के चेति या चेदि क्षत्रिय थे। चेदि वंश में 'महामेधवाहन' नाम का प्रतापी राजा हुआ, जिसने मौर्यों की निर्बलता से लाभ उठाकर कलिंग में अपना स्वतंत्र शासन स्थापित किया। महामेधवाहन की तीसरी पीढ़ी में ख़ारवेल हुआ, जिसका वृत्तान्त हाथीगुम्फ़ा शिलालेख में विशद के रूप से उल्लिखित है। ख़ारवेल जैन धर्म का अनुयायी था, और सम्भवतः उसके समय में कलिंग की बहुसंख्यक जनता भी वर्धमान महावीर के धर्म को अपना चुकी थी।

ख़ारवेल की शक्ति के उत्कर्ष और दिग्विजय का यह वृत्तान्त निस्सन्देह बहुत महत्व का है। चेदि क्षत्रियों के शौर्य के कारण कलिंग न केवल मौर्य साम्राज्य की अधीनता से मुक्त होकर स्वतंत्र हो गया था, अपितु उनके अन्यतम राजा ख़ारवेल ने भारत के सुदूर प्रदेशों को जीतकर अपने अधीन भी कर लिया था। ऐसा प्रतीत होता है, कि ख़ारवेल अपने विजित प्रदेशों पर स्थिर रूप से कार्य नहीं कर सका, और उसने किसी स्थायी साम्राज्य की स्थापना नहीं की।

ऐतिहासिक अभी यह निर्णय नहीं कर सके हैं कि ख़ारवेल का समय कौन—सा है। श्री काशीप्रसाद जायसवाल ने सबसे पूर्व हाथीगुम्फ़ा शिलालेख को प्रकाशित कराया था, और उन्होंने उसका जो पाठ पढ़ा था, उसमें ख़ारवेल के समकालीन मगधराज के नाम को बहसतिमित पढ़कर और बृहस्पतिमित्र को पुष्यमित्र का पर्यायवाची मानकर उन्होंने यह प्रतिपादित किया था कि ख़ारवेल शुंगवंशी राजा पुष्यमित्र का समकालीन था। साथ ही, जो यवनराज ख़ारवेल के आक्रमण के भय से मध्यदेश को छोड़कर वापस चला गया था, उसका नाम भी जायसवाल जी ने हाथीगुम्फ़ा शिलालेख में 'दिमित' पढ़ा था। जिसे उन्होंने बैक्ट्रिया के यवन राजा डेमेट्रियस से मिलाया था। पर बाद में अनेक ऐतिहासिकों ने हाथीगुम्फ़ा शिलालेख के इन पाठों से असहमति प्रगट की। उनके अनुसार इस शिलालेख में न बहसतिमित का नाम है, और न ही दिमित का।

जिन दिनों मगध पर पुष्पमित्र राज करता था, उन्हीं दिनों कलिंग में खारवेल नाम का बहुत ही वीर और महत्वाकांक्षी राजा हुआ । खारवेल इतना बहादुर था कि दक्षिण में जिस तमिल देशों के संघ को चन्द्रगुप्त मौर्य भी अपने अधीन नहीं कर सका था, उसे खारवेल ने अपने अधीन कर लिया। खारवेल ने पाटलिपुत्र पर भी चढ़ाई की। खारवेल ने यवनों को भी परास्त किया। ईसा पूर्व दूसरी शताब्‍दी में खारवेल राजा के अधीन कलिंग एक शाक्तिशाली साम्राज्‍य बन गया। खारवेल की मृत्‍यु के बाद उड़ीसा की ख्‍याति लुप्‍त हो गई।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत का इतिहास (हिन्दी) (एच टी एम एल) itihaasam.blogspot.com। अभिगमन तिथि: 4सितम्बर, 2010।
  2. मेघवंश: एक सिंहावलोकन (हिन्दी) (एच टी एम एल) maheshpanthi.net। अभिगमन तिथि: 4सितम्बर, 2010।

बाहरी कड़ियाँ