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'''गवर्नर-जनरल''', ब्रिटिश [[भारत]] का सर्वोच्च अधिकारी। 1773 ई. के [[रेगुलेटिंग एक्ट]] के अंतर्गत इस पद की सृष्टि की गई। सर्वप्रथम [[वारेन हेस्टिंग्स]] इस पद पर नियुक्त हुआ। वह 1774 से 1786 ई. तक इस पद पर रहा। इस पद का पूरा नाम '''बंगाल फ़ोर्ट विलियम का गवर्नर-जनरल''' था, जो 1834 ई. तक रहा। 1833 ई. के चार्टर एक्ट के अनुसार इस पद का नाम '''भारत का गवर्नर-जनरल''' हो गया। 1858 ई. में जब भारत का शासन कम्पनी के हाथ से ब्रिटेन की महारानी के हाथ में आ गया, तब गवर्नर-जनरल को '''वाइसराय (राज प्रतिनिधि)''' भी कहा जाने लगा। जब तक भारत पर ब्रिटिश शासन रहा तब तक भारत में कोई भारतीय गवर्नर-जनरल या वाइसराय नहीं हुआ।
 
'''गवर्नर-जनरल''', ब्रिटिश [[भारत]] का सर्वोच्च अधिकारी। 1773 ई. के [[रेगुलेटिंग एक्ट]] के अंतर्गत इस पद की सृष्टि की गई। सर्वप्रथम [[वारेन हेस्टिंग्स]] इस पद पर नियुक्त हुआ। वह 1774 से 1786 ई. तक इस पद पर रहा। इस पद का पूरा नाम '''बंगाल फ़ोर्ट विलियम का गवर्नर-जनरल''' था, जो 1834 ई. तक रहा। 1833 ई. के चार्टर एक्ट के अनुसार इस पद का नाम '''भारत का गवर्नर-जनरल''' हो गया। 1858 ई. में जब भारत का शासन कम्पनी के हाथ से ब्रिटेन की महारानी के हाथ में आ गया, तब गवर्नर-जनरल को '''वाइसराय (राज प्रतिनिधि)''' भी कहा जाने लगा। जब तक भारत पर ब्रिटिश शासन रहा तब तक भारत में कोई भारतीय गवर्नर-जनरल या वाइसराय नहीं हुआ।
  
1773 ई. के रेगुलेटिंग एक्ट में गवर्नर-जनरल के अधिकारों और कर्तव्यों का विवरण दिया हुआ है। बाद में पिट के इंडिया एक्ट (1784) तथा पूरक एक्ट (1786) के अनुसार इस अधिकारों और कर्तव्यों को बढ़ाया गया। गवर्नर-जनरल अपनी कौंसिल (परिषद्) की सलाह एवं सहायता से शासन करता था, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर वह परिषद की राय की उपेक्षा भी कर सकता था। इस व्यवस्था से गवर्नर-जनरल व्यवहारत: भारत का भाग्य-विधाता होता था। केवल सुदुर स्थित ब्रिटेन की संसद और भारतमंत्री ही उस पर नियंत्रण रख सकते थे।
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'''1773 ई. के रेगुलेटिंग एक्ट''' में गवर्नर-जनरल के अधिकारों और कर्तव्यों का विवरण दिया हुआ है। बाद में पिट के इंडिया एक्ट (1784) तथा पूरक एक्ट (1786) के अनुसार इस अधिकारों और कर्तव्यों को बढ़ाया गया। गवर्नर-जनरल अपनी कौंसिल (परिषद्) की सलाह एवं सहायता से शासन करता था, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर वह परिषद की राय की उपेक्षा भी कर सकता था। इस व्यवस्था से गवर्नर-जनरल व्यवहारत: भारत का भाग्य-विधाता होता था। केवल सुदुर स्थित ब्रिटेन की संसद और भारतमंत्री ही उस पर नियंत्रण रख सकते थे।
  
[[भारत]] के स्वाधीन होने पर श्री [[राजगोपालाचार्य]] गवर्नर-जनरल के पद पर 25 जनवरी, 1950 तक रहे। उसके बाद 26 जनवरी, 1950 को भारत के गणतंत्र बन जाने पर गवर्नर-जनरल का पद समाप्त कर दिया गया। [[लार्ड विलियम बैंटिक]] [[बंगाल]] में फ़ोर्ट विलियम का अन्तिम गवर्नर-जनरल था। वहीं फिर 1833 ई. के [[चार्टर एक्ट]] के अनुसार भारत का प्रथम गवर्नर-जनरल बना। [[लार्ड कैनिंग]] 1858 के भारतीय शासन विधान के अनुसार प्रथम वाइसराय था तथा [[लार्ड लिनलिथगो]] अन्तिम वाइसराय। [[लार्ड माउण्टबेटन]] सम्राट का अन्तिम प्रतिनिधि था।  
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'''[[भारत]] के स्वाधीन''' होने पर श्री [[राजगोपालाचार्य]] गवर्नर-जनरल के पद पर 25 जनवरी, 1950 तक रहे। उसके बाद 26 जनवरी, 1950 को भारत के गणतंत्र बन जाने पर गवर्नर-जनरल का पद समाप्त कर दिया गया। [[लार्ड विलियम बैंटिक]] [[बंगाल]] में फ़ोर्ट विलियम का अन्तिम गवर्नर-जनरल था। वहीं फिर 1833 ई. के [[चार्टर एक्ट]] के अनुसार भारत का प्रथम गवर्नर-जनरल बना। [[लार्ड कैनिंग]] 1858 के भारतीय शासन विधान के अनुसार प्रथम वाइसराय था तथा [[लार्ड लिनलिथगो]] अन्तिम वाइसराय। [[लार्ड माउण्टबेटन]] सम्राट का अन्तिम प्रतिनिधि था।  
  
 
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अंग्रेज़ गवर्नर जनरलों की सूची
गवर्नर जनरल कार्यकाल
वारेन हेस्टिंग्स

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लार्ड कार्नवालिस -
सर जॉन शोर0 -
लार्ड वेलेजली -
लार्ड कार्नवालिस (द्वितीय) -
लार्ड मिण्टो (प्रथम) -
लार्ड एमर्हस्ट -
लार्ड एलगिन (प्रथम) -
लार्ड लारेंस -
लार्ड मेयो -
लार्ड लिटन (प्रथम) -
लार्ड रिपन -
लार्ड डफ़रिन -
लार्ड नार्थब्रुक -
लार्ड लेंसडाउन -
लार्ड एलगिन (द्वितीय) -
लार्ड कर्जन -
लार्ड मिण्टो (द्वितीय) -
लार्ड हार्डिंग (द्वितीय) -
लार्ड चेम्सफ़ोर्ड -
लार्ड रीडिंग -
लार्ड इरविन -
लार्ड विलिंगटन -
लार्ड लिनलिथगो -
लार्ड बाबेल -
लार्ड विलियम बैंटिक 1833-35 ई.
सर चार्ल्स मैटकाफ (स्थानांपन्न) 1835-36 ई.
आकलैण्ड 1836-42 ई.
लार्ड एलनबरो 1842-44 ई.
विलियम विलबर फोर्स बर्ड 1844 ई.
लार्ड हार्डिंग 1844-48 ई.
लार्ड डलहौज़ी 1848-56 ई.
लार्ड कैनिंग 1856-58 ई.
लार्ड माउण्टबेटन -

गवर्नर-जनरल, ब्रिटिश भारत का सर्वोच्च अधिकारी। 1773 ई. के रेगुलेटिंग एक्ट के अंतर्गत इस पद की सृष्टि की गई। सर्वप्रथम वारेन हेस्टिंग्स इस पद पर नियुक्त हुआ। वह 1774 से 1786 ई. तक इस पद पर रहा। इस पद का पूरा नाम बंगाल फ़ोर्ट विलियम का गवर्नर-जनरल था, जो 1834 ई. तक रहा। 1833 ई. के चार्टर एक्ट के अनुसार इस पद का नाम भारत का गवर्नर-जनरल हो गया। 1858 ई. में जब भारत का शासन कम्पनी के हाथ से ब्रिटेन की महारानी के हाथ में आ गया, तब गवर्नर-जनरल को वाइसराय (राज प्रतिनिधि) भी कहा जाने लगा। जब तक भारत पर ब्रिटिश शासन रहा तब तक भारत में कोई भारतीय गवर्नर-जनरल या वाइसराय नहीं हुआ।

1773 ई. के रेगुलेटिंग एक्ट में गवर्नर-जनरल के अधिकारों और कर्तव्यों का विवरण दिया हुआ है। बाद में पिट के इंडिया एक्ट (1784) तथा पूरक एक्ट (1786) के अनुसार इस अधिकारों और कर्तव्यों को बढ़ाया गया। गवर्नर-जनरल अपनी कौंसिल (परिषद्) की सलाह एवं सहायता से शासन करता था, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर वह परिषद की राय की उपेक्षा भी कर सकता था। इस व्यवस्था से गवर्नर-जनरल व्यवहारत: भारत का भाग्य-विधाता होता था। केवल सुदुर स्थित ब्रिटेन की संसद और भारतमंत्री ही उस पर नियंत्रण रख सकते थे।

भारत के स्वाधीन होने पर श्री राजगोपालाचार्य गवर्नर-जनरल के पद पर 25 जनवरी, 1950 तक रहे। उसके बाद 26 जनवरी, 1950 को भारत के गणतंत्र बन जाने पर गवर्नर-जनरल का पद समाप्त कर दिया गया। लार्ड विलियम बैंटिक बंगाल में फ़ोर्ट विलियम का अन्तिम गवर्नर-जनरल था। वहीं फिर 1833 ई. के चार्टर एक्ट के अनुसार भारत का प्रथम गवर्नर-जनरल बना। लार्ड कैनिंग 1858 के भारतीय शासन विधान के अनुसार प्रथम वाइसराय था तथा लार्ड लिनलिथगो अन्तिम वाइसराय। लार्ड माउण्टबेटन सम्राट का अन्तिम प्रतिनिधि था।


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