गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति

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गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति का मूल उद्देश्य विभिन्न सामाजिक-शैक्षणिक कार्यक्रमों के माध्यम से महात्मा गाँधी के जीवन ध्येय एवं विचारों का प्रचार-प्रसार करना है। राजघाट पर 'गाँधी दर्शन' और 5 तीस जनवरी मार्ग पर स्थित 'गाँधी स्मृति' का समायोजन करके सितम्बर, 1984 में 'गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति' का गठन एक स्वायत्त निकाय के रूप में किया गया था। समिति भारत सरकार के संस्कृति विभाग, पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय के रचनात्मक परामर्श एवं वित्तिय समर्थन से कार्य कर रही है। भारत के प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष हैं और इसकीं गतिविधियों का मार्ग निर्देशन करने के लिए वरिष्ठ गाँधीवादियों और विभिन्न सरकारी विभागों का एक निकाय कार्यरत है।[1]

परिसर

  1. गाँधी स्मृति
  2. अंतरराष्ट्रीय गाँधी अध्ययन और अनुसंधान केन्द्र
  3. कार्यक्रम (व्यवहार्य)

गाँधी स्मृति

'गाँधी स्मृति' 5 तीस जनवरी मार्ग, नई दिल्ली में पुराने बिड़ला भवन में स्थित है। यह वह पावन स्थल है, जहाँ पर 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गाँधी की इह लोक लीला समाप्त हुई। इस भवन में महात्मा गाँधी 9 सितम्बर, 1947 से 30 जनवरी, 1948 तक रहे थे। इस प्रकार पावन हुए इस भवन में गाँधीजी के जीवन के अंतिम 144 दिनों की अनेक स्मृतियाँ संग्रहित हैं। पुराने बिड़ला भवन का भारत सरकार द्वारा 1971 में अधिग्रहण किया गया और इसे राष्ट्रपिता के राष्ट्रीय स्मारक के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। 15 अगस्त, 1973 को इसे जनसामान्य के लिए खोल दिया गया। यहाँ संग्रहित वस्तुंओं में वह कक्ष है, जिसमें महात्मा गाँधी ने निवास किया था तथा वह प्रार्थना स्थल भी है, जहाँ वह प्रत्येक दिन संध्या काल में जन सभा को संबोधित करते थे। इसी स्थल पर गाँधीजी को गोलियों का शिकार बनाया गया। यह भवन तथा यहाँ का परिदृश्य उसी रूप में संरक्षित है, जैसा यह तत्कालीन समय में था।[1]

स्मारक में संग्रहित पहलू
  • महात्मा गाँधी की याद और उनके पावन आदर्शों को प्रदर्शित करने वाले दृश्यात्मक पहलू।
  • गाँधीजी को एक महात्मा बनाने वाले जीवन-मूल्यों की ओर गहनता से ध्यानाकर्षण कराने वाले शैक्षणिक पहलू।
  • कुछ अनुभूत आवश्यकताओं को दिग्दर्शित करने वाली गतिविधियों को प्रस्तुत करने के लिए सेवाकार्य का पहलू।

संग्रहालय में महात्मा गाँधी द्वारा यहाँ बिताए गए वर्षों के संबंध में फोटोग्राफ, मूर्तियाँ, चित्र, भित्तिचित्र, शिलालेख तथा स्मृति चिह्न संग्रहित है। गाँधीजी की कुछ निजी वस्तुएँ भी यहाँ सावधानीपूर्वक संरक्षित हैं। नई सहस्राब्दि की परिरेखाओं को ध्यान में रखते हुए अधुनातन प्रौद्योगिकी के द्वारा महात्मा गाँधी के जीवन और संदेष को जीवन्त रूप से प्रस्तुत करने वाली मल्टीमीडिया प्रदर्शनी प्रमुख आकर्षण हैं। भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 'गाँधी स्मृति और दर्शन समिति' को राष्ट्र को समर्पित किया था। निर्धन तथा असहाय लोगों के लिए गाँधीजी की सार्वभौमिक चिंता को प्रदर्शित करने वाली पृथ्वी की गोलाकृति से उभरती हुई मानवाकार से बड़ी महात्मा गाँधी की मूर्ति, जिसके बगल में हाथों में कबूतर पकडे हुए एक बालक और एक बालिका है, मुख्य द्वार पर आगन्तुकों का स्वागत करती है। यह विख्यात मूर्तिकार श्रीराम सुतार की कृति हैं। प्रस्तर मूर्ति के आधार मात्र में अंकित है मेरा जीवन ही मेरा संदेष है। जिस स्थल पर राष्ट्रपिता को गोलियों का शिकार बनाया गया था, वहाँ एक बलिदान स्तंभ स्थित है, जो भारत के लम्बे 'स्वाधीनता संग्राम' के दौरान अनुभूत सभी पीड़ाओं और बलिदानों के प्रतीक के रूप में महात्मा गाँधी के आत्म बलिदान की यादगार है।

अंतरराष्ट्रीय गाँधी अध्ययन और अनुसंधान केन्द्र

यह राजघाट पर महात्मा गाँधी की समाधि के निकट स्थित है। छत्तीस एकड़ में फैला यह परिसर 1969 में महात्मा गाँधी की शताब्दी के अवसर पर अस्तित्व में आया था। इस अवसर की यादगार के रूप में एक 'अंतरराष्ट्रीय गाँधी दर्शन प्रर्दशनी' भी स्थापित की गई थी। परिसर में फैले हुए छह विशाल मण्डपों में विभाजित यह प्रर्दशनी महात्मा गाँधी के शाश्वत संदेश "मेरा जीवन ही मेरा संदेश है"' को जीवन्त करती हैं। इसके संस्थापको ने कल्पना की थी कि कालान्तर में यहाँ अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक शैक्षणिक केन्द्र विकसित होगा। वर्तमान में इस केन्द्र में महात्मा गाँधी के विषय में एक विस्तृत प्रर्दशनी, सम्मेलन कक्ष, प्रमुख राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बैठकों के लिए आवासीय सुविधाएँ, एक पुस्तकालय, बाल-कोनाए फोटो एकक और प्रकाशन प्रभाग अवस्थित है। समिति एक त्रैमासिक समाचार पत्रिका 'गाँधी दर्पण', 'अनाशक्ति दर्शन एक पत्रिका' तथा 'दि यमुना' शीर्षक का बच्चों के एक समाचार पत्र का प्रकाशन करती है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 आत्मपरिचय-गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 11 अक्टूबर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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