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इस प्रकार समबुद्धि रूप कर्मयोग का और उसके फलका महत्त्व बतलाकर अब दो [[श्लोक|श्लोकों]] में भगवान् कर्मयोग का स्वरूप बतलाते हुए [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> को कर्मयोग में स्थित होकर कर्म करने के लिये कहते हैं-
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गीता अध्याय-2 श्लोक-46 / Gita Chapter-2 Verse-46

प्रसंग-


इस प्रकार समबुद्धि रूप कर्मयोग का और उसके फलका महत्त्व बतलाकर अब दो श्लोकों में भगवान् कर्मयोग का स्वरूप बतलाते हुए अर्जुन[1] को कर्मयोग में स्थित होकर कर्म करने के लिये कहते हैं-


यावानर्थ उदपाने सर्वत: सम्प्लुतोदके ।
तावान् सर्वेषु वेदेषु ब्राह्राणस्य विजानत: ।।46।।




सब ओर से परिपूर्ण जलाशय के प्राप्त हो जाने पर छोटे जलाशय में मनुष्य का जितना प्रयोजन रहता है, ब्रह्मा[2] को तत्त्व से जानने वाले ब्राह्राण का समस्त वेदों[3] में उतना ही प्रयोजन रह जाता है ।।46।।


A brahma, who has obtained enlightenment , has the same use for all the Vedas as one who stands at the brink of a sheet of water overflowing on all sides has for a small reservoir of water.(46)


सर्वत: = सब ओरसे ; संप्लुतोदके = परिपूर्ण जलाशयके ; (प्राप्ते सति) = प्राप्त होनेपर ; उदपाने = छोटे जलाशयमें ; ब्राह्रणस्य = ब्राह्रणका (भी) ; सर्वेषु = सब ; यावान् = जितना ; अर्थ: = प्रयोजन ; (अस्ति) = रहता है ; विजानत: = अच्छी प्रकार ब्रह्रको जाननेवाले ; वेदेषु = वेदोंमें ; तावान् = उतना ही प्रयोजन रहता है|



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य स्रष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।
  3. वेद हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।

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