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*इस खण्ड में प्रवाहण शिलक के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहता है- 'इस लोक का आश्रय अथवा गति आकाश है; क्योंकि सम्पूर्ण प्राणी और पदार्थ अथवा तत्त्व इसी आकाश से उत्पन्न होते हैं और इसी में लीन हो जाते हैं। अत: आकाश ही इस लोक का आश्रय है। वही श्रेष्ठतम उद्गीथ है और वही अनन्त रूप है। जो विद्वान् इस प्रकार जानकर इसकी उपासना करता है, उसे परम उत्कृष्ट जीवन प्राप्त होता है और परलोक में भी श्रेष्ठतर स्थान प्राप्त होता है।'
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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-9
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय प्रथम
कुल खण्ड 13 (तेरह)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह नौवा खण्ड है।

  • इस खण्ड में प्रवाहण शिलक के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहता है- 'इस लोक का आश्रय अथवा गति आकाश है; क्योंकि सम्पूर्ण प्राणी और पदार्थ अथवा तत्त्व इसी आकाश से उत्पन्न होते हैं और इसी में लीन हो जाते हैं। अत: आकाश ही इस लोक का आश्रय है। वही श्रेष्ठतम उद्गीथ है और वही अनन्त रूप है। जो विद्वान् इस प्रकार जानकर इसकी उपासना करता है, उसे परम उत्कृष्ट जीवन प्राप्त होता है और परलोक में भी श्रेष्ठतर स्थान प्राप्त होता है।'


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7

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