जमाल

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
  • जमाल भारतीय काव्यपरंपरा से पूर्णत: परिचित कोई सहृदय मुसलमान कवि थे, जिनका रचनाकाल लगभग संवत 1627 अनुमानित किया गया है।
  • इनके नीति और श्रृंगार के दोहे राजपूताने की तरफ बहुत जनप्रिय हैं।
  • भावों की व्यंजना बहुत ही मार्मिक, पर सीधे सादे सरल ढंग से की गई है।
  • जमाल का कोई ग्रंथ तो नहीं मिलता, पर कुछ संग्रहीत दोहे अवश्य मिलते हैं।
  • सहृदयता के अतिरिक्त इनमें 'शब्दक्रीड़ा' की निपुणता भी थी, इससे इन्होंने कुछ पहेलियाँ भी अपने दोहों में रखी हैं -

पूनम चाँद, कुसूँभ रँग नदी तीर द्रुम डाल।
रेत भीत, भुस लीपणो ए थिर नहीं जमाल
रंग ज चोल मजीठ का संत वचन प्रतिपाल।
पाहण रेख रु करम गत ए किमि मिटैं जमाल
जमला ऐसी प्रीति कर जैसी केस कराय।
कै काला, कै ऊजला जब तब सिर स्यूँ जाय
मनसा तो गाहक भए नैना भए दलाल।
धानी बसत बेचै नहीं किस बिधा बनै जमाल
बालपणे धौला भया तरुणपणे भया लाल।
वृद्ध पणे काला भया कारण कोण जमाल
कामिण जावक रँग रच्यो दमकत मुकता कोर।
इम हंसा मोती तजे इम चुग लिए चकोर



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख