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*[http://kabira.freeservers.com/jallianwallabagh.html जलियाँवाला बाग/ Jallianwala Bagh massacre]
 
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14:34, 14 सितम्बर 2010 का अवतरण

जलियांवाला बाग़, अमृतसर
Jallianwalah Bagh, Amritsar

जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड आज भी ब्रिटिश शासन के जनरल डायर की कहानी कहता नजर आता है, जब उसने सैकड़ों निर्दोष देशभक्तों को अंधाधुंध गोलीबारी कर मार डाला था। 13 अप्रैल 1919 की वह तारीख आज भी विश्व के बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है।

जलियांवाला बाग़ में सभा

पंजाब के अमृतसर नगर में जलियांवाला बाग़ नामक स्थान पर अंग्रेज़ों की सेनाओं ने भारतीय प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चलाकर बड़ी संख्या में उनकी हत्या कर दी। यह घटना 13 अप्रैल 1919 को हुई । इस घटना के बाद महात्मा गांधी ने 1920-22 के असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। उस दिन वैशाखी का त्योहार था । 1919 में भारत की ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट का शांतिपूर्वक विरोध करने पर जननेता पहले ही गिरफ्तार कर लिए थे । इस गिरफ्तारी की निंदा करने और पहले हुए गोली कांड की भर्त्सना करने के लिए जलियांवाला बाग़ में शांतिपूर्वक एक सभा आयोजित की गयी थी । 13 अप्रैल 1919 को तीसरे पहर दस हज़ार से भी ज़्यादा निहत्थे स्त्री, पुरुष और बच्चे जनसभा करने पर प्रतिबंध होने के बावजूद अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में विरोध सभा के लिए एकत्र हुए ।

घटनाक्रम

वह रविवार का दिन था और आसपास के गांवों के अनेक किसान हिंदुओं तथा सिक्खों का उत्सव ‘बैसाखी’ बनाने अमृतसर आए थे । यह बाग़ चारों ओर से घिरा हुआ था। अंदर जाने का केवल एक ही रास्ता था। जनरल आर. ई. एच. डायर ने अपने सिपाहियों को बाग़ के एकमात्र तंग प्रवेशमार्ग पर तैनात किया था । बाग़ साथ- साथ सटी ईंटों की इमारतों के पिछवाड़े की दीवारों से तीन तरफ से घिरा था । डायर ने बिना किसी चेतावनी के 50 सैनिकों को गोलियां चलाने का आदेश दिया और चीख़ते, आतंकित भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों की भीड़ पर 10-15 मिनट में 1650 गोलियां दाग़ दी गई । जिनमें से कुछ लोग अपनी जान बचाने की कोशिश करने में लगे लोगों की भगदड़ में कुचल कर मर गए ।

शहीदों के आँकड़े

सरकारी अनुमानों के अनुसार, लगभग 400 लोग मारे गए और 1200 के लगभग घायल हुए, जिन्हें कोई चिकित्सा सुविधा नहीं दी गई । अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है। जलियांवाला बाग़ में 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश शासन के अभिलेख में इस घटना में 200 लोगों के घायल, 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार की गयी है जिसमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग किशोर लड़के और एक 6 सप्ताह का बच्चा भी था। अनाधिकारिक आँकड़ों में कहा जाता है कि 1000 से अधिक लोग मारे गए थे और लगभग 2000 से भी अधिक घायल हो गये थे।

जनरल डायर का तर्क

जनरल डायर ने अपनी कार्यवाही को सही ठहराने के लिए तर्क दिये और कहा कि ‘नैतिक और दूरगामी प्रभाव’ के लिए यह ज़रूरी था। इसलिए उन्होंने गोली चलवाई। डायर ने स्वीकार कर कहा कि अगर और कारतूस होते, तो फ़ायरिंग ज़ारी रहती । निहत्थे नर-नारी, बालक-वृद्धों पर अंग्रेज़ी सेना तब तक गोली चलाती रही जब तक कि उनके पास गोलियां समाप्त नहीं हो गईं । कांग्रेस की जांच कमेटी के अनुमान के अनुसार एक हज़ार से अधिक व्यक्ति वहीं मारे गए थे। सैकड़ों व्यक्ति ज़िंदा कुँए में कूद गये थे । गोलियां भारतीय सिपाहियों से चलवाई गयीं थीं और उनके पीछे संगीनें तानें गोरे सिपाई खड़े थे । इस हत्याकांड की सब जगह निंदा हुई । किन्तु ‘ब्रिटिश हाउस आफ लाडर्स’ में जनरल डायर की प्रशंसा की गई ।

जांच आयोग का गठन

पंजाब प्रांत के गवर्नर माइकेल ओ. डायर ने अमृतसर में हुए नरसंहार का समर्थन किया, उसे सही बताया और 15 अप्रैल को पूरे प्रांत में मार्शल लॉ लागू कर दिया, लेकिन वाइसरॉय चेम्सफ़ोर्ड ने इस कार्यवाही को ग़लत फ़ैसला बताया और विदेश मंत्री एड्-विन मॉन्टेग्यू ने नरसंहार का पता चलने पर लॉर्ड हंटर की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपनी अलग जांच समिति गठित की । यद्यपि बाद में डायर को पद से हटा दिया गया, लेकिन ब्रिटेन में वह बहुतों के लिए विशेषकर कंज़रवेटिव पार्टी के लिए, वह नायक बनकर लौटे। उन्होंने डायर को रत्नजड़ित तलवार भेंट की, जिस पर लिखा था, ‘पंजाब का रक्षक’ और चंदा करके उसे दो हज़ार पौंड का इनाम दिया गया ।

रॉलेट एक्ट की प्रतिक्रिया

गोली के निशान, जलियांवाला बाग़, अमृतसर
Bullet Marks, Jallianwalah Bagh, Amritsar

स्वतंत्रता संग्राम पर कई पुस्तकें लिख चुके 'प्रोफेसर चमन लाल' का कथन है कि ब्रिटिश शासन आज़ादी की लड़ाई में हिन्दुओं और मुसलमानों की एकता को देखकर घबरा गया था। उन्होंने दोनों समुदायों में धर्म के आधार पर नफ़रत की दीवार खड़ी करने की कोशिशें कीं, लेकिन वे सफल नहीं हो पा रहे थे।

ब्रिटिश शासन ने जब रॉलेट एक्ट लागू किया तो पूरे देश में आज़ादी की लहर आई। पंजाब में इसका ज़्यादा असर था। रॉलेट एक्ट के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को शांतिपूर्ण तरीक़े से अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक जनसभा रखी गई, जिसे विफल करने के लिए ब्रिटिश शासन हिंसा पर उतर आया।

हड़ताल और ब्रिटिश शासन

प्रो.चमन लाल के अनुसार छह अप्रैल को पूरे पंजाब में हड़ताल रही और 10 अप्रैल 1919 को हिन्दू और मुसलमानों ने मिलकर बहुत बड़े स्तर पर रामनवमी के त्योहार का आयोजन किया। हिन्दू मुस्लिम एकता से पंजाब का तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडवायर घबरा गया। ब्रिटिश शासन ने 13 अप्रैल की जनसभा को विफल करने के लिए साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग किया। लोगों को ड़राने के लिए इस सभा से कुछ दिन पहले ही 22 देशभक्तों को मौत के घाट उतार दिया गया था।

10 अप्रैल 1919 को ब्रिटिश शासन ने दो बड़े नेताओं डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को वार्ता के लिए बुलवाया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें कालापानी की सजा दे दी गई। 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर उप कमिश्नर से इन दोनों नेताओं को रिहा करने की माँग की गई किन्तु ब्रिटिशों ने शांति से विरोध कर रही जनता पर गोलियाँ चलवा दीं जिससे तनाव और बढ़ गया। उस दिन बैंकों, सरकारी भवनों, टाउन हॉल, रेलवे स्टेशनों पर आगज़नी हुई। इस हिंसा में 5 यूरोपीय नागरिकों की हत्या हो गई। इसके बाद ब्रिटिश सिपाही भारतीय जनता पर गोलियाँ चलाते रहे जिससे लगभग 8 से 20 भारतीयों की मृत्यु हो गयी। अगले दो दिन अमृतसर शांत रहा किन्तु पंजाब के कई क्षेत्रों में हिंसा फैल गई। इसे दबाने के लिए ब्रिटिश शासन ने पंजाब में मार्शल लॉ लागू कर दिया।

गाँधी जी की गिरफ्तारी

ब्रिटिश शासन ने जलियाँवाला बाग की जनसभा में भाग लेने जा रहे महात्मा गाँधी को भी 10 अप्रैल को पलवल रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया। अपने नेताओं की गिरफ्तारी से लोग भड़क गये और 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन हज़ारों की संख्या में जलियाँवाला बाग पहुँचे। हिन्दू, सिख और मुसलमानों की एकता से अपने शासन को ख़तरे में देखकर ब्रिटिश शासन ने भारतीयों को सबक सिखाने के लिए यह सब किया। जलियाँवाला बाग में गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं जो ब्रिटिश शासन के अत्याचार की कहानी कहते हैं।

जनसंहार की प्रतिक्रियाएं

गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इस हत्याकाण्ड के मुखर विरोध किया और विरोध स्वरूप अपनी 'नाइटहुड' की उपाधि को वापस कर दिया था। आजादी का सपना ऐसी भयावह घटना के बाद भी पस्त नहीं हुआ। इस घटना के बाद आजादी हासिल करने की इच्छा और जोर से उफन पड़ी। यद्यपि उन दिनों संचार के साधन कम थे, फिर भी यह समाचार पूरे देश में आग की तरह फैल गया। 'आजादी का सपना' पंजाब ही नहीं, पूरे देश के बच्चे-बच्चे के सिर पर चढ़ कर बोलने लगा। उस दौरान हज़ारों भारतीयों ने जलियांवाला बाग़ की मिट्टी से माथे पर तिलक लगाकर देश को आजाद कराने का दृढ़ संकल्प लिया। इस घटना से पंजाब पूरी तरह से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित हो गया और इसी संहार की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप गांधी जी ने 1920 में असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया।

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के समय उधम सिंह जलियांवाला बाग़ में थे। उधम सिंह को भी गोली लगी थी। उन्होंने इसका बदला लेने के लिए 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में बम विस्फोट किया। इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर को गोली से मार डाला। ऊधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को फाँसी दे दी गयी। गांधी जी और जवाहरलाल नेहरू ने ऊधम सिंह द्वारा की गई इस हत्या की निंदा की थी।

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड का 12 वर्ष की उम्र के भगत सिंह के बाल मन पर गहरा असर डाला और इसकी सूचना प्राप्त होते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जालियांवाला बाग़ पहुंच गए थे।

स्मारक

आज़ादी के बाद अमेरिकी डिज़ाइनर बेंजामिन पोक ने जलियाँवाला बाग स्मारक का डिज़ाइन तैयार किया, जिसका उद्घाटन 13 अप्रैल 1961 को किया गया।

बाहरी कड़ियाँ


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