"ज़िन्दाँ रानी" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (श्रेणी:नया पन्ना (को हटा दिया गया हैं।))
 
(6 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 17 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*ज़िन्दाँ रानी [[पंजाब]] के महाराज [[रणजीत सिंह]] की पाँचवी रानी तथा उनके सबसे छोटे बेटे [[दलीप सिंह]] की माँ थीं।
+
{{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व
*1843 ई. में जब दलीप सिंह गद्दी पर बैठा तो वह नाबालिग था, अतएव ज़िन्दाँ रानी उसकी संरक्षिका बनी। परन्तु वह इस पद भार को सम्भाल नहीं सकी और 1845 ई. में प्रथम सिखयुद्ध छिड़ गया।
+
|चित्र=Rani_jindan.jpg
*जब 1846 ई. में [[लाहौर]] की संधि के द्वारा प्रथम सिखयुद्ध समाप्त हुआ तो ज़िन्दाँ रानी दलीप सिंह की संरक्षिका बनी रही। परन्तु उसकी गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार उसे संदेह की दृष्टि से देखने लगी और 1848 ई. में षड्यंत्र रचने के अभियोग में उसे लाहौर से हटा दिया गया। द्वितीय सिखयुद्ध (1849 ई.) जिन कारणों से छिड़ा, उनमें एक कारण यह भी था। इस युद्ध में भी सिखों की हार हुई।
+
|चित्र का नाम=महारानी ज़िन्दाँ
*युद्ध की समाप्ति पर दलीप सिंह को गद्दी से उतार दिया गया और रानी ज़िन्दा के साथ [[इंग्लैंण्ड]] भेज दिया गया। जहाँ रानी की मृत्यु हो गई।
+
|पूरा नाम=महारानी ज़िन्दाँ
+
|अन्य नाम=ज़िन्द कौर
{{प्रचार}}
+
|जन्म=1817 ई.
{{लेख प्रगति
+
|जन्म भूमि=
|आधार=
+
|मृत्यु= [[1 अगस्त]], 1863 ई. 
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
+
|मृत्यु स्थान= [[लंदन]]  
|माध्यमिक=
+
|अभिभावक=पिता- सरदार मन्ना सिंह औलख जाट
|पूर्णता=
+
|पति/पत्नी=[[रणजीत सिंह]]
|शोध=
+
|संतान= पुत्र- [[दलीप सिंह]]
 +
|गुरु=
 +
|कर्म भूमि=[[पंजाब]]
 +
|कर्म-क्षेत्र=
 +
|मुख्य रचनाएँ=
 +
|विषय=
 +
|खोज=
 +
|भाषा=
 +
|शिक्षा=
 +
|विद्यालय=
 +
|पुरस्कार-उपाधि=
 +
|प्रसिद्धि=
 +
|विशेष योगदान=
 +
|नागरिकता=भारतीय
 +
|संबंधित लेख=
 +
|शीर्षक 1=
 +
|पाठ 1=
 +
|शीर्षक 2=
 +
|पाठ 2=
 +
|शीर्षक 3=
 +
|पाठ 3=
 +
|शीर्षक 4=
 +
|पाठ 4=
 +
|शीर्षक 5=
 +
|पाठ 5=
 +
|अन्य जानकारी=
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन=
 
}}
 
}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
+
'''ज़िन्दाँ रानी''' पिंड चॉढ ([[सियालकोट]], तसील जफरवाल) निवासी सरदार मन्ना सिंह औलख जाट की [[पुत्री]] थी। ज़िन्दाँ रानी [[पंजाब]] के महाराज [[रणजीत सिंह]] की पाँचवी रानी तथा उनके सबसे छोटे बेटे [[दलीप सिंह]] की [[माँ]] थीं।
 +
==ऐतिहासिक परिचय==
 +
1843 ई. में जब दलीप सिंह गद्दी पर बैठा तो वह नाबालिग था, अतएव ज़िन्दाँ रानी उसकी संरक्षिका बनी। परन्तु वह इस पद भार को सम्भाल नहीं सकी और 1845 ई. में प्रथम सिखयुद्ध छिड़ गया। जब 1846 ई. में [[लाहौर]] की संधि के द्वारा प्रथम सिखयुद्ध समाप्त हुआ तो ज़िन्दाँ रानी दलीप सिंह की संरक्षिका बनी रही। परन्तु उसकी गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार उसे संदेह की दृष्टि से देखने लगी और 1848 ई. में षड्यंत्र रचने के अभियोग में उसे लाहौर से हटा दिया गया। द्वितीय सिखयुद्ध (1849 ई.) जिन कारणों से छिड़ा, उनमें एक कारण यह भी था। इस युद्ध में भी सिखों की हार हुई। युद्ध की समाप्ति पर दलीप सिंह को गद्दी से उतार दिया गया। [[लाहौर]] का राजप्रबंध अंग्रेज़ी सरकार के हाथ आने पर कुछ ग़लतफहमी के कारण इस महारानी को सरकार ने लाहौर ले जाकर पहले शेखूपुरा में नज़रबंद रखा, फिर [[19 अगस्त]] 1849 को [[चुनार]] ([[उत्तर प्रदेश]], [[मिर्जापुर ज़िला|ज़िला मिर्जापुर]]) के खुंटे में क़ैद किया। यहाँ से यह फ़कीरी वेश में क़ैद से निकल कर [[नेपाल]] चली गई और वहाँ सम्मान सहित रही। 1861 में महारानी जिन्दकौर अपने बेटों के दर्शन के लिए [[इंग्लैंड]] गयीं थीं। वहाँ [[1 अगस्त]] 1863 को [[लंदन]] में इनका देहांत हुआ था तब ये 46 [[वर्ष]] की उम्र की थीं। इनकी शव का दाह हिंदुस्तान के [[बम्बई]] अहाते के [[नासिक]] नगर में किया गया था।
 +
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
*पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-170
 
*पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-170
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{औपनिवेशिक काल}}
+
{{भारतीय वीरांगनाएँ}}{{भारत की रानियाँ और महारानियाँ}}
[[Category:औपनिवेशिक काल]]
+
[[Category:औपनिवेशिक काल]][[Category:अंग्रेज़ी शासन]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:वीरांगनाएँ]][[Category:भारतीय वीरांगनाएँ]][[Category:भारत की रानियाँ और महारानियाँ]]
[[Category:अंग्रेज़ी शासन]]
 
[[Category:इतिहास कोश]]
 
 
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__

06:51, 10 मई 2020 के समय का अवतरण

ज़िन्दाँ रानी
महारानी ज़िन्दाँ
पूरा नाम महारानी ज़िन्दाँ
अन्य नाम ज़िन्द कौर
जन्म 1817 ई.
मृत्यु 1 अगस्त, 1863 ई.
मृत्यु स्थान लंदन
अभिभावक पिता- सरदार मन्ना सिंह औलख जाट
पति/पत्नी रणजीत सिंह
संतान पुत्र- दलीप सिंह
कर्म भूमि पंजाब
नागरिकता भारतीय

ज़िन्दाँ रानी पिंड चॉढ (सियालकोट, तसील जफरवाल) निवासी सरदार मन्ना सिंह औलख जाट की पुत्री थी। ज़िन्दाँ रानी पंजाब के महाराज रणजीत सिंह की पाँचवी रानी तथा उनके सबसे छोटे बेटे दलीप सिंह की माँ थीं।

ऐतिहासिक परिचय

1843 ई. में जब दलीप सिंह गद्दी पर बैठा तो वह नाबालिग था, अतएव ज़िन्दाँ रानी उसकी संरक्षिका बनी। परन्तु वह इस पद भार को सम्भाल नहीं सकी और 1845 ई. में प्रथम सिखयुद्ध छिड़ गया। जब 1846 ई. में लाहौर की संधि के द्वारा प्रथम सिखयुद्ध समाप्त हुआ तो ज़िन्दाँ रानी दलीप सिंह की संरक्षिका बनी रही। परन्तु उसकी गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार उसे संदेह की दृष्टि से देखने लगी और 1848 ई. में षड्यंत्र रचने के अभियोग में उसे लाहौर से हटा दिया गया। द्वितीय सिखयुद्ध (1849 ई.) जिन कारणों से छिड़ा, उनमें एक कारण यह भी था। इस युद्ध में भी सिखों की हार हुई। युद्ध की समाप्ति पर दलीप सिंह को गद्दी से उतार दिया गया। लाहौर का राजप्रबंध अंग्रेज़ी सरकार के हाथ आने पर कुछ ग़लतफहमी के कारण इस महारानी को सरकार ने लाहौर ले जाकर पहले शेखूपुरा में नज़रबंद रखा, फिर 19 अगस्त 1849 को चुनार (उत्तर प्रदेश, ज़िला मिर्जापुर) के खुंटे में क़ैद किया। यहाँ से यह फ़कीरी वेश में क़ैद से निकल कर नेपाल चली गई और वहाँ सम्मान सहित रही। 1861 में महारानी जिन्दकौर अपने बेटों के दर्शन के लिए इंग्लैंड गयीं थीं। वहाँ 1 अगस्त 1863 को लंदन में इनका देहांत हुआ था तब ये 46 वर्ष की उम्र की थीं। इनकी शव का दाह हिंदुस्तान के बम्बई अहाते के नासिक नगर में किया गया था।

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-170

संबंधित लेख