जागेश्वर

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जागेश्वर अल्मोड़ा ज़िला, उत्तराखंड का ऐतिहासिक स्थान है। यह स्थान अल्मोड़ा से प्राय: 19 मील (लगभग 30.4 कि.मी.) की दूरी पर स्थित है। यहाँ इस प्रदेश के कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनमें महामृत्यंजय, कैलासपति, डिंडेश्वर, पुष्टिदेवी, भैरवनाथ आदि शिव के अनेक रूपों तथा विविध भावों की मूर्तियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। जागेश्वर तथा दीपेश्वर महादेव के मंदिर यहाँ के प्राचीन स्मारक हैं। कुछ लोगों के मत में नागेश ज्योतिर्लिंग का स्थान यही है।।[1]

जागेश्वर महादेव मंदिर

जागेश्वर महादेव मंदिर, जागेश्वर के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसे तरुण जागेश्वर अथवा बाल जागेश्वर भी कहा जाता है। नंदी और स्कंदी की सशस्त्र मूर्तियों और दो द्वारपाल या गार्ड मंदिर के प्रवेश द्वार पर देखे जा सकता है। परिसर में मुख्य मंदिर के पश्चिम की तरफ स्थित है और बाल जागेश्वर या हिंदू भगवान शिव के बच्चे के रूप को समर्पित है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव यहाँ ध्यान करने के लिए आये थे। ये जानने के बाद गांव की महिलाएं उनकी एक झलक पाने के लिए एकत्र हुई और जब गाँव के पुरुष सदस्यों को यह पता चला, वे उग्र हो गये और तपस्वी जिसने महिलाओं को मोहित किया था उसे खोजने के लिए आये। इस अराजक स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव ने एक बच्चे का रूप लिया और तब से, यहाँ भगवान शिव की पूजा बाल जागेश्वर के रूप में की जाती है। मंदिर में शिवलिंग दो भागों में है, जहां आधा बड़ा हिस्सा भगवान शिव का प्रतीक है वहीं एक छोटा हिसा उनकी पत्नी देवी पार्वती का प्रतिनिधित्व करता है।[2]

शिवलिंग पूजा की शुरुआत का गवाह

जागेश्वर महादेव का मंदिर दुनिया में शिवलिंग पूजा की शुरुआत होने का गवाह माना जाता है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले के मुख्यालय से क़रीब 40 किलोमीटर दूर देवदार के वृक्षों के घने जंगलों के बीच पहाड़ी पर स्थित जागेश्वर महादेव के मंदिर परिसर में पार्वती, हनुमान, मृत्युंजय महादेव, भैरव, केदारनाथ, दुर्गा सहित कुल 124 मंदिर स्थित हैं जिनमें आज भी विधिवत् पूजा होती है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को देश के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक बताया है और बाकायदा इसकी घोषणा करता एक शिलापट्ट भी लगाया है। एक सचाई यह भी है कि इसी मंदिर से ही भगवान शिव की लिंग पूजा के रूप में शुरूआत हुई थी। यहां की पूजा के बाद ही पूरी दुनिया में शिवलिंग की पूजा की जाने लगी और कई स्वयं निर्मित शिवलिंगों को बाद में ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाने लगा। ऐसी मान्यता है कि यहां स्थापित शिवलिंग स्वयं निर्मित यानी अपने आप उत्पन्न हुआ है और इसकी कब से पूजा की जा रही है इसकी ठीक ठीक से जानकारी नहीं है लेकिन यहां भव्य मंदिरों का निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया है। घने जंगलों के बीच विशाल परिसर में पुष्टि देवी (पार्वती), नवदुर्गा, कालिका, नीलकंठेश्वर, सूर्य, नवग्रह सहित 124 मंदिर बने हैं।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 362 |
  2. जागेश्वर महादेव मंदिर, जागेश्वर (हिन्दी) हिन्दी नेटिव प्लेनेट। अभिगमन तिथि: 30 अप्रॅल, 2015।
  3. शिवलिंग पूजा की शुरूआत का गवाह है जागेश्वर मंदिर (हिन्दी) आजतक। अभिगमन तिथि: 30 अप्रॅल, 2015।

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