जूनागढ़ रियासत

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

जूनागढ़ सन् 1948 तक एक रियासत था, जिस पर बाबी राजवंश का शासन था। काठियावाड़ के दक्षिण-पश्चिम में स्थित तथा करांची से 300 कि.मी. दूर जूनागढ़ ऐसी रियासतों के मध्य बसा था जो सभी भारतीय अधिराज्य में सम्मिलित हो चुकी थीं और उनकी सीमायें भी जूनागढ़ से मिली थीं। जूनागढ़ की सीमा में ही ऐसी रियासतों की सीमाएं फंसी हुई थीं जो भारतीय संघ में मिल चुकी थीं। उदाहरण स्वरूप जूनागढ़ की रियासतों के भीतर भावनगर, नवागर, गोडल और बड़ौदा की रियासतें थीं तथा कुछ स्थानों पर जूनागढ़ होकर ही पहुंचना सम्भव था। रेलवे, पोस्ट तथा टेलीग्राफ सेवायें जो जूनागढ़ में थीं, भारतीय संघ द्वारा संचालित होती थीं। सन 1941 की जनगणना के अनुसार इस रियासत की जनसंख्या 6,70,719 थी, जिसमें 80 प्रतिशत हिन्दू थे।

जूनागढ़ के शासक नवाब महावत खां को कुत्ते पालने का इतना शौक था कि निर्धन जनता को भूखा रखकर नवाब कुत्तों के लिए विशेष भोजन तथा गोश्त आयात करते थे। कुत्तों की शादी कराने के लिए सरकारी खजाने का प्रयोग होता था तथा सरकारी अवकाश घोषित किया जाता था। अतः रियासत का सब कार्य उनके दीवान सर शहनवाज भुट्टो पर था जो जिन्ना तथा मुस्लिम लीग के प्रभाव में थे। 18 नवाब उनके दीवान द्वारा भारत से चुपचाप भाग जाने के पश्चात् मिले। पत्र व्यवहार से उनकी मानसिकता का पता चलता है। दीवान के अनुसार- "जूनागढ़ काशी (बनारस) के बाद हिन्दुओं का सबसे प्रसिद्ध स्थान है। सोमनाथ का मन्दिर भी वहाँ है, जिसे महमूद गजनवी ने लूट लिया था।" जिन्ना को लिखे गये अपने पत्र में दीवान ने कहा था- "अकेला जूनागढ़ हिन्दू शासकों तथा ब्रिटिश भारत के कांग्रेसी प्रान्तों से घिरा है। वास्तव में हम समुद्र द्वारा पाकिस्तान से जुड़े हैं। यद्यपि जूनागढ़ में मुस्लिम संख्या 20 प्रतिशत और गैर मुस्लिम 80 प्रतिशत हैं, काठियावाड़ के सात लाख मुसलमान जूनागढ़ के कारण जीवित हैं। मैं समझता हूँ कि कोई भी बलिदान इतना महत्वपूर्ण नहीं होगा जितना की शासक के सामान को बचाना तथा इस्लाम और काठियावाड़ के मुसलमानों की रक्षा करना।"[1]

जूनागढ़ की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भारत के राज्य विभाग ने प्रवेश लिखित पूर्ति हेतु भेजा। 13 अगस्त 1947 को सर शहनवाज भुट्टो ने उत्तर दिया कि वह विचाराधीन है। परन्तु 15 अगस्त को गुप्त रूप से जूनागढ़ पाकिस्तान में शामिल करने के लिए आन्तरिक रूप से बाध्य करने लगा। वास्तव में यह नवाब और जिन्ना का एक षड़यंत्र था तथा भारत सरकार को जान-बूझकर अन्धकार में रखा गया। जूनागढ़ के इस निर्णय की काठियावाड़ की अन्य रियासतों में तीव्र प्रतिक्रिया हुई। नवाब नगर के जाम साहब ने अपने वक्तव्यों में इसकी भर्त्सना की तथा काठियावाड़ की अखण्डता पर बल दिया। भावनगर, मोरवी, गोंडल, पोरबन्दर तथा वनकानकर के शासकों ने जूनागढ़ के नवाब की आलोचना की परन्तु नवाब का तर्क था- "भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम में एक शासक के लिए विलय सम्बन्धी निर्णय के पूर्व जनता से परामर्श लेने का प्रावधान नहीं है।"

नवाब ने भौगोलिक बाध्यता के तर्क का खण्डन किया तथा समुद्र द्वारा पाकिस्तान से सम्पर्क बनाये रखने की चर्चा की। जाम साहब दिल्ली आये और उन्होंने सरदार पटेल तथा राज्य विभाग को जनता की भावनाओं, जूनागढ़ में हिन्दुओं पर अत्याचार तथा हिन्दुओं के वहाँ पलायन से अवगत कराया। जाम साहब का सुझाव था कि यदि शीघ्र कार्रवाई न की गयी तो काठियावाड़ क्षेत्र में शांति और व्यवस्था बनाये रखना कठिन हो जायेगा। 17 सितम्बर 1947 को केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने तय किया कि काठियाबाढ़ में शांति व व्यवस्था बनाये रखने के लिए भारतीय सेनायें जूनागढ़ को चारों ओर से घेर लें पर जूनागढ़ में प्रवेश न करे। इस बीच बम्बई में जूनागढ़ राज्य के लिए एक छह सदस्यीय अस्थाई सरकार गठित हो गई, जिसके प्रधानमंत्री सामलदास गाँधी थे। काठियावाड़ की अनेक रियासतों ने इस अस्थायी सरकार को मान्यता दे दी। 28 सितम्बर को अस्थायी सरकार ने अपना मोर्चा बम्बई से हटाकर राजकोट में स्थापित कर लिया।[1]

इधर जूनागढ़ में बाबरियाबाढ़ में सेना भेजकर हस्तक्षेप किया तथा 51 ग्रामों के मलगिरासियों को पाकिस्तान में सम्मिलित होने के लिए बाध्य किया। मंगरोल के शेख जो पहले भारतीय संघ में सम्मिलित हो चुके थे, उन्हें बाध्य किया गया कि तार द्वारा भारत को सूचित करें कि उन्होनें संघ से समझौता भंग कर दिया है। जूनागढ़ के दीवान ने एक तार भेजकर भारत सरकार को सूचित किया कि बाबरियाबाढ़ तथा मंगरोल जूनागढ़ के अभिन्न भाग हैं और उनका भारत संघ में प्रवेश अवैधानिक था। दीवान ने बाबरियाबाढ़ से अपनी सेनाओं को वापस बुलाने से इन्कार कर दिया। सरदार पटेल ने जूनागढ़ तथा बाबरियाबाढ़ में सेना भेजने तथा उसे वापस न करने की कार्रवाई को आक्रामक की संज्ञा दी तथा उसके विरूद्ध शक्ति के प्रयोग करने का परामर्श दिया। 27 सितम्बर 1947 को एक बैठक में सरदार पटेल ने अपने उपरोक्त मत पर विशेष बल दिया। इस बैठक में माउण्टबैटन, जवाहरलाल नेहरू, मोहनलाल सक्सेना व एन. गोपालास्वामी आयंगर उपस्थित थे। जूनागढ़ में स्थिति तेज़ीसे बिगड़ रही थी। हजारों की संख्या में हिन्दू भाग रहे थे। मन्त्रिमण्डल के निर्णयानुसार भारत सरकार ने अपनी सेनायें कमाण्डर गुरदयाल सिंह के नेतृत्व में जूनागढ़ के समीप भेज दी। संचार व्यवस्था को विच्छेद कर दिया गया तथा आर्थिक नाकेबन्दी कर दी गयी, 25 अक्टूबर 1947 तक अस्थायी सरकार की सेना की चार टुकड़ियों ने अमरपुर गाँव पर अधिकार कर लिया। दूसरे दिन अमरपुर के समीप के 23 गाँवों पर अस्थाई सरकार का अधिकार हो गया। स्थिति को नियन्त्रण से बाहर देखते हुए नवाब अपने परिवार, कुत्तों तथा पारिवारिक गहने आदि लेकर अपने व्यक्तिगत हवाई जहाज से कराची भाग गया।

13 नवम्बर, 1947 को सरदार पटेल जूनागढ़ गये, जहाँ उनका भव्य स्वागत किया गया। अपने भाषण में सरदार पटेल ने उन परिस्थितियों की चर्चा की जिनके कारण भारत सरकार को जूनागढ़ में सैनिक कार्रवाई करनी पड़ी। काठियावाड़ के हिन्दुओं और मुसलमानों को परामर्श देते हुए उन्होंने स्पष्ट कहा कि जो लोग अब भी दो राष्ट्र के सिद्धान्तों को मानते हैं और वाह्य शक्ति की ओर सहायता के लिए देखते हैं, उनके लिए काठियावाड़ में कोई स्थान नहीं है। जो लोग भारत के प्रति निष्ठा नहीं रखते या पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति रखते हैं, उन्हें नवाब का रास्ता अपनाना चाहिए। उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए। जो अनुभव करते हैं कि भारत की अपेक्षा वे पाकिस्तान के अधिक निकट हैं। सरदार पटेल ने पाकिस्तान को चेतावनी दी कि वह भारत के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे।[1]

प्रारम्भ में सरदार पटेल जूनागढ़ में जनमत संग्रह के पक्ष में न थे, परन्तु वी. पी. मेनन से विचार-विमर्श के उपरान्त सहमत हो गये। 20 फ़रवरी 1948 को जूनागढ़ में जनमत संग्रह हुआ, जिसमें भारत के पक्ष में 1,19,719 मत तथा पाकिस्तान के पक्ष में 91 मत पड़े। इसी प्रकार मंगरोल, मानवदार, भातवा बड़ा व छोटा सरदार गढ़ तथा बाबरियाबाढ़ में जनमत संग्रह से भारत के पक्ष में 31,395 तथा पाकिस्तान के पक्ष में केवल 29 मत पड़े। 24 फ़रवरी 1949 को यह रियासते सौराष्ट्र संघ के अधीन हो गयीं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 सरदार पटेल और जूनागढ़ का भारत संघ में विलय (हिन्दी) mahashakti.org.in। अभिगमन तिथि: 30 अगस्त, 2018।

संबंधित लेख