तृतीय तमिल संगम

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तमिल भाषा में लिखे गये प्राचीन साहित्य को ही संगम साहित्य कहा जाता है। 'संगम' शब्द का अर्थ है- संघ, परिषद्, गोष्ठी अथवा संस्थान। वास्तव में संगम, तमिल कवियों, विद्वानों, आचार्यों, ज्योतिषियों एवं बुद्धिजीवियों की एक परिषद थी। सर्वप्रथम इन परिषदों का आयोजन पाण्ड्य राजाओं के राजकीय संरक्षण में किया गया। संगम का महत्त्वपूर्ण कार्य होता था, उन कवियों व लेखकों की रचनाओं का अवलोकन करना, जो अपनी रचाओं को प्रकाशित करवाना चाहते थे।

अनुश्रुति

परिषद अथवा संगम की संस्तुति के उपरान्त ही किसी कवि या लेखक की रचना प्रकाशित हो पाती थी। प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि तीन परिषदों का आयोजन पाण्ड्य शासकों के संरक्षण में किया गया। तमिल अनुश्रुतियों के अनुसार भी तीन परिषदों (संगम) का आयोजन हुआ था-

  1. प्रथम संगम
  2. द्वितीय संगम
  3. तृतीय संगम

तीसरा संगम

तीसरा संगम मदुरै में आयोजित हुआ। नकीर्र ने इसकी अध्यक्षता की। तीसरे संगम में रचित साहित्य 8 संग्रह ग्रन्थों में संकलित है। इन्हें ऐत्तुतोगई कहते हैं। आठ ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं[1]-

  1. नणिण्नै - इसमें लगभग 400 पद्य मिलते हैं, जिनकी रचना 175 कवियों ने मिलकर की थी।
  2. कुरुन्थोकै - इसमें लगभग 402 छोटे गीत मिलते हैं। ये प्रेम प्रधान गीत तमिल सामन्त 'पूरिक्कों' के संरक्षण में संग्रहीत किये गये।
  3. एन्कुरूनूर - 'किलार' द्वारा संग्रहीत 500 लघु गीतों वाले इस संग्रह में प्रेम के सभी लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं।
  4. पदित्रपल्ल - 8 कविताओं के इस संग्रह में चेर शासकों की प्रशंसा की गयी है।
  5. परिपादल - 24 कविताओं के इस संग्रह में देवताओं की प्रशंसा की गयी है।
  6. कलिथौके - इसमें प्रणय विषय पर आधारित 150 कविताओं का संग्रह किया गया है।
  7. अहनानूरू - प्रणय विषय पर आधारित 400 कविताओं का यह संग्रह मदुरा निवासी 'रुद्रशर्मा द्वारा' संग्रहीत किया गया।
  8. पुरनानूरु - 400 गीतों के इस संग्रह में राजाओं की प्रशंसा की गयी है। हालाँकि 'तृतीय संगम' के अधिकांश ग्रंथ नष्ट हो गये हैं, अपितु अवशिष्ट तमिल साहित्य इसी संगम से सम्बन्धित है, जो ग्रंथों और महाकाव्यों के रूप में मिलते हैं। यद्यपि महाकाव्यों को 'संगम युग' के बाद रखा जाता है। संगम साहित्य के अधिकांश ग्रंथ, 'साउथ इंडिया, शैव सिद्धान्त पब्लिशिंग सोसाइटी, तिलेवेल्ली' द्वारा प्रकाशित किये गये हैं।

पत्तुपात्तु (दशगीत)

दस गीतों के संग्रह वाला यह ग्रंथ संगम का दूसरा संग्रह ग्रंथ है। इसकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. तिरुमुरुकात्रुप्पदै- इसकी रचना 'नक्कीरर' ने की। इसमें संगमकालीन देवता 'मुरुगन' एवं उसके पर्वतीय स्थलों की प्रशंसा की गयी है।
  2. नेडुनल्वादै - 'नक्कीरर' की दस रचना में विरह का स्वाभाविक चित्र प्रस्तुत किया गया है। 'नक्कीरर' की तुलना अंग्रेज़ी लेखक 'जॉनसान' से की जाती है।
  3. पेरुम्पानात्रुप्पदै - 500 गीतों वाले इस संग्रह की रचना 'रुद्रक कन्नार' ने की। इस संग्रह से कांची के शासक 'तोण्डैमान इलण्डिरैयन' के विषय में ऐतिहासिक जानकारी मिलती है।
  4. 'पत्तिनपाल्लै - प्रणव विषय पर आधारित इस संग्रह की रचना 'रुद्रक कन्नार' ने की। ऐसा माना जाता है कि चोल नरेश करिकाल ने 'रुद्रक कन्नार' की रचनाओं से प्रभावित होकर उसे बहुत-सा धन उपहार में दिया। 'कन्नार' की इस रचना में चोल बन्दरगाह 'कावेरीपट्नम' के विषय में जानकारी मिलती है।
  5. पोरुनरात्रप्पदै - 'कन्नियार' द्वारा रचित इस कविता संग्रह में चोल नरेश करिकाल की प्रशंसा की गयी है।
  6. मदुरैकांची - 'मागुदि मरुथानर' द्वारा रचित इस संग्रह में पाण्ड्य नरेश 'तलैयालंगानम् नेडुन्जेलियन' की प्रशंसा की गयी है।
  7. सिरुपानत्रप्पदै - इस संग्रह से चेर, चोल एवं पाण्ड्य राजाओं, उनकीराजधानियों एवं उस समय की सामाजिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है। इसके रचनाकार 'नथ्थनार' थे।
  8. मुल्लैप्पात्तु - 'नप्पुथनार' कृत इस संग्रह में एक रानी के पति-विरह का वर्णन किया गया है।
  9. कुरिन्विप्पात्तु - 'कपिलर' द्वारा रचित इस संग्रह में ग्रामीण जीवन की झाँकी प्रस्तुत की गयी है।
  10. मलैपदुकदाम - 'कौशिकनार' द्वारा रचित 600 गीतों वाले इस संग्रह में प्रकृति चित्रण एवं नृत्यकला पर प्रकाश डाला गया है।

पदिनेकिकणक्कु (लघु उपदेश गीत)

तीसरे संगम के इस तीसरे बड़े संग्रह में नीति एवं उपदेशपरक लघु गीत संग्रहीत हैं।

महाकाव्य रचना

इन सभी संग्रहों के अतिरिक्त तृतीय संगम में बड़े महाकाव्य भी रचे गये, जो निम्नलिखित हैं -

शिलप्पादिकारम

यह 'तमिल साहित्य' का प्रथम महाकाव्य है, जिसका शाब्दिक अर्थ है - ‘नूपुर की कहानी’। इस महाकाव्य की रचना चेर शासक 'सेन गुट्टुवन' के भाई 'इलांगो आदिगल' ने लगभग ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी में की थी। इस महाकाव्य की सम्पूर्ण कथा नुपूर के चारों ओर घूमती है। इस महाकाव्य के नायक और नायिका 'कोवलन' और 'कण्णगी' हैं।

मणिमेखलै

इस महाकाव्य की रचना मदुरा के एक बौद्ध व्यापारी 'सीतलै सत्तनार' ने की। 'मणिमेखलै' की रचना 'शिलप्पादिकारम' के बाद की गयी। ऐसी मान्यता है कि जहाँ पर 'शिलप्पादिकारम' की कहानी ख़त्म होती है, वहीं से 'मणिमेखलै' की कहानी प्रारम्भ होती है। 'सत्तनार' कृत इस महाकाव्य की नायिका ‘मणिमेखलै’, 'शिलप्पादिकारम' के नायक 'कोवलन्' की दूसरी पत्नी 'माधवी वेश्या' की पुत्री थी।

जीवक चिन्तामणि

'जीवक चिंतामणि' जैन मुनि एवं महाकवि 'तिरुतक्कदेवर' की अमर कृति है। इस ग्रंथ को तमिल साहित्य के 5 प्रसिद्ध ग्रंथों में गिना जाता है। 13 खण्डों में विभाजित इस ग्रंथ में कुल क़रीब 3,145 पद हैं। ‘जीवक चिन्तामणि’ महाकाव्य में कवि ने जीवक नामक राजकुमार का जीवनवृत्त प्रस्तुत किया है। इस काव्य का नायक आठ विवाह करता है। वह जीवन के समस्त सुख और दुःख को भोग लेने के उपरान्त राज्य और परिवार का त्याग कर सन्न्यास ग्रहण कर लेता है।

उपर्युक्त तीन महाकाव्यों के अतिरिक्त संगमकालीन दो अन्य महाकाव्य ‘वलयपत्ति’ एवं ‘कुडलकेशि’ माने जाते हैं, किन्तु इनकी विषय वस्तु के संदर्भ में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संगम साहित्य (हिंदी) vivacepanorama.com। अभिगमन तिथि: 24 मई, 2017।

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