दारा सिंह

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दारा सिंह
दारा सिंह
पूरा नाम दारा सिंह रंधावा
प्रसिद्ध नाम दारा सिंह
अन्य नाम रुस्तम-ए-हिंद
जन्म 19 नवंबर 1928
जन्म भूमि धरमूचक (धर्मूचक्क) गांव, अमृतसर पंजाब
मृत्यु 12 जुलाई, 2012 (उम्र- 84)
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
अभिभावक सूरत सिंह रंधावा और बलवन्त कौर
पति/पत्नी सुरजीत कौर
संतान तीन बेटियां और तीन बेटे
कर्म-क्षेत्र पहलवान, अभिनेता
मुख्य फ़िल्में 'वतन से दूर', 'रुस्तम-ए-बगदाद', 'शेर दिल', 'सिकंदर-ए-आज़म', 'राका', 'मेरा नाम जोकर', 'धरम करम' और 'मर्द' आदि।
पुरस्कार-उपाधि 1966 में 'रुस्तम-ए-पंजाब' और 1978 में 'रुस्तम-ए-हिंद'।
प्रसिद्धि दारा सिंह ने रामानंद सागर द्वारा निर्मित धारावाहिक 'रामायण' में हनुमान की भूमिका निभाकर हिन्दुस्तान के घर-घर में प्रसिद्धि पाई थी।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी दारा सिंह 2003 से 2009 तक राज्यसभा के सांसद रहे। उन्होंने क़रीब 36 साल तक अखाड़े में पसीना बहाया और लगभग कुल लड़ी गईं 500 कुश्तियों में से एक भी नहीं हारे, जिसकी बदौलत उनका नाम ऑब्जरवर न्यूजलेटर हॉल ऑफ फेम में दर्ज हुआ।

दारा सिंह (अंग्रेज़ी: Dara Singh, जन्म: 19 नवम्बर, 1928, अमृतसर; मृत्यु: 12 जुलाई, 2012, मुम्बई) अपने ज़माने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान और प्रसिद्ध अभिनेता थे। दारा सिंह 2003-2009 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। उन्होंने खेल और मनोरंजन की दुनिया में समान रूप से नाम कमाया और अपने काम का लोहा मनवाया। यही वजह थी कि उन्हें अभिनेता और पहलवान दोनों तौर पर जाना जाता था। उन्होंने 1959 में पूर्व विश्व चैम्पियन जॉर्ज गार्डीयांका को पराजित करके कॉमनवेल्थ की विश्व चैम्पियनशिप जीती थी। बाद में वे अमरीका के विश्व चैम्पियन लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैम्पियन बने।

आरम्भिक जीवन

अखाड़े से फ़िल्मी दुनिया तक का सफ़र दारा सिंह के लिए काफ़ी चुनौती भरा रहा। बचपन से ही पहलवानी के दीवाने रहे दारा सिंह का पूरा नाम 'दारा सिंह रंधावा' था। हालांकि चाहने वालों के बीच वे दारा सिंह के नाम से ही जाने गए। 'सूरत सिंह रंधावा' और 'बलवंत कौर' के बेटे दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर, 1928 को पंजाब के अमृतसर के धरमूचक (धर्मूचक्क या धर्मूचाक या धर्मचुक) गांव के जाट-सिक्ख परिवार में हुआ था। उस समय देश में अंग्रेज़ों का शासन था। दारा सिंह के पिता जी बाहर रहते थे। दादा जी चाहते कि बड़ा होने के कारण दारा स्कूल न जाकर खेतों में काम करे और छोटा भाई पढ़ाई करे। इसी बात को लेकर लंबे समय तक झगड़ा चलता रहा।

पहलवानी का शौक

दारा सिंह को बचपन से ही पहलवानी का शौक़ था। अपनी किशोर अवस्था में दारा सिंह दूध व मक्खन के साथ 100 बादाम रोज खाकर कई घंटे कसरत व व्यायाम में गुजारा करते थे। कम उम्र में ही दारा सिंह के घरवालों ने उनकी शादी कर दी। नतीजतन महज 17 साल की नाबालिग उम्र में ही एक बच्चे के पिता बन गए, लेकिन जब उन्होंने कुश्ती की दुनिया में नाम कमाया तो उन्होंने अपनी पसन्द से दूसरी शादी सुरजीत कौर से की। दारा सिंह के परिवार में तीन पुत्रियाँ और तीन पुत्र हैं।

कुश्ती में कैरियर

दारा सिंह अपने ज़माने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान रहे। साठ के दशक में पूरे भारत में उनकी फ्री स्टाइल कुश्तियों का बोलबाला रहा। दारा सिंह को पहलवानी का शौक़ बचपन से ही था। बचपन अपने फार्म पर काम करते-करते गुजर गया, जिसके बाद ऊंचे क़द मजबूत काठी को देखते हुए उन्हें कुश्ती लड़ने की प्रेरणा मिलती रही। दारा सिंह ने अपने घर से ही कुश्ती की शुरूआत की। दारा सिंह और उनके छोटे भाई सरदारा सिंह ने मिलकर पहलवानी शुरू कर दी और धीरे-धीरे गांव के दंगलों से लेकर शहरों में कुश्तियां जीतकर अपने गांव का नाम रोशन करना शुरू कर दिया और भारत में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में जुट गए। दारा सिंह ने अखाड़े में पहलवानी सीखी। उस दौर में दारा सिंह को राजा महाराजाओं की ओर कुश्ती लड़ने का न्यौता मिला करता था। हाटों और मेलों में भी कुश्ती की और कई पहलवानों को पटखनी दी।

राष्ट्रीय चैंपियन

दारा सिंह

भारत की आज़ादी के दौरान 1947 में दारा सिंह सिंगापुर पहुंचे। वहां रहते हुए उन्होंने 'भारतीय स्टाइल' की कुश्ती में मलेशियाई चैंपियन त्रिलोक सिंह को पराजित कर कुआलालंपुर में मलेशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप जीती। उसके बाद उनका विजयी रथ अन्य देशों की ओर चल पड़ा और एक पेशेवर पहलवान के रूप में सभी देशों में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़कर वे 1952 में भारत लौट आए। क़रीब पांच साल तक फ्री स्टाइल रेसलिंग में दुनिया भर (पूर्वी एशियाई देशों) के पहलवानों को चित्त करने के बाद दारा सिंह भारत आकर सन 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन (राष्ट्रीय चैंपियन) बने। दारा सिंह ने उन सभी देशों का एक-एक करके दौरा किया जहां फ्रीस्टाइल कुश्तियां लड़ी जाती थीं।

विश्व चैंपियन

दारा सिंह अपने परिवार के साथ

इसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा किया और विश्व चैंपियन किंग कॉन्ग को भी धूल चटा दी। दारा सिंह की लोकप्रियता से भन्नाए कनाडा के विश्व चैंपियन जार्ज गार्डीयांका और न्यूजीलैंड के जॉन डिसिल्वा ने 1959 में कोलकाता में कॉमनवेल्थ कुश्ती चैंपियनशिप में उन्हें खुली चुनौती दे डाली। नतीजा वही रहा। यहां भी दारा सिंह ने दोनों पहलवानों को हराकर विश्व चैंपियनशिप का ख़िताब हासिल किया। कॉमनवेल्थ चैपियनशिप के बाद दारा सिंह का मिशन था पूरी दुनिया को अपना दम-खम दिखाना। भारत के इस पहलवान ने दुनिया के लगभग हर देश के पहलवान को चित किया। आख़िरकार अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को 29 मई 1968 को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन बन गए। कुश्ती का शहंशाह बनने के इस सफर में दारा सिंह ने पाकिस्तान के माज़िद अकरा, शाने अली और तारिक अली, जापान के रिकोडोजैन, यूरोपियन चैंपियन बिल रॉबिनसन, इंग्लैंड के चैपियन पैट्रॉक समेत कई पहलवानों का गुरूर मिट्टी में मिला दिया। 1983 में कुश्ती से रिटायरमेंट लेने वाले दारा सिंह ने 500 से ज़्यादा पहलवानों को हराया और ख़ास बात ये कि ज़्यादातर पहलवानों को दारा सिंह ने उन्हीं के घर में जाकर चित किया। उनकी कुश्ती कला को सलाम करने के लिए 1966 में दारा सिंह को रुस्तम-ए-पंजाब और 1978 में रुस्तम-ए-हिंद के ख़िताब से नवाज़ा गया।

दारा सिंह ने क़रीब 36 साल तक अखाड़े में पसीना बहाया और अब तक लड़ी कुल 500 कुश्तियों में से दारा सिंह एक भी नहीं हारे, जिसकी बदौलत उनका नाम ऑब्जरवर न्यूजलेटर हॉल ऑफ फेम में दर्ज है। दारा सिंह की कुश्ती के दीवानों में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू समेत कई दूसरे प्रधानमंत्री भी शामिल थे। सही मायने में दारा सिंह कुश्ती के दंगल के वो शेर थे, जिनकी दहाड़ सुनकर बड़े-बड़े पहलवानों ने दुम दबाकर अखाड़ा छोड़ दिया।

फ़िल्मी करियर

दारा सिंह विभिन्न भूमिकाओं में

लगभग 60 साल तक दारा सिंह ने हिंदुस्तान के दिल पर राज किया है। आज की पीढ़ी को शायद अंदाज़ा भी ना हो कि अखाड़े से अदाकारी के मैदान में उतरे दारा सिंह बॉलीवुड के पहले ही मैन माने जाते हैं। वो टारजन सीरीज़ की फ़िल्मों के हीरो रहे हैं। दारा सिंह अपनी मजबूत क़द काठी की वजह से फ़िल्मों में आए। फ़िल्म अभिनेत्री मुमताज़ का कैरियर संवारने में भी सबसे बड़ा सहारा दारा सिंह का साथ ही साबित हुआ। बॉलीवुड में बॉडी दिखाकर स्टारडम पाने का रास्ता ना खुलता, अगर दारा सिंह ना होते। जी हां, बॉलीवुड में आज हर सुपरस्टार पर शर्ट खोलकर मसल्स दिखाने की जो धुन सवार है, उसका चलन शुरू हुआ था दारा सिंह के जरिए। जिस वक़्त पूरी दुनिया में दारा सिंह की पहलवानी का सिक्का चल रहा था, तब 6 फीट 2 इंच लंबे इस गबरू जट्ट पर बॉलीवुड इस कदर फ़िदा हुआ कि पहलवान दारा सिंह बन गए अभिनेता दारा सिंह। दारा सिंह ने अपने समय की मशहूर अदाकारा मुमताज़ के साथ हिंदी की स्टंट फ़िल्मों में प्रवेश किया और कई फ़िल्मों में अभिनेता बने। दारा सिंह ने मुमताज़ के साथ 16 फ़िल्मों में काम किया। यही नहीं कई फ़िल्मों में वह निर्देशक व निर्माता भी बने। दारा सिंह ने कई हिंदी फ़िल्मों का निर्माण किया और उसमें खुद हीरो रहे।

पहली फ़िल्म

दारा सिंह की पहली फ़िल्म 'संगदिल' 1952 में रिलीज़ हुई, जिसमें दिलीप कुमार और मधुबाला मुख्य भूमिकाओं में थे। 1955 में वो फ़िल्म 'पहली झलक' में पहलवान बनकर आए, जिसमें मुख्य किरदार किशोर कुमार और वैजयंती माला ने निभाया था। कुश्ती और फ़िल्मों में एक साथ मौजूदगी दर्ज़ कराते रहे दारा सिंह की बतौर हीरो पहली फ़िल्म थी 'जग्गा डाकू', जिसके बाद वो बॉलीवुड के पहले एक्शन हीरो के तौर पर छा गए।

मुख्य फ़िल्में

दारा सिंह की असल पहचान बनी 1962 में आई फ़िल्म ‘किंग कॉन्ग’ से। इस फ़िल्म ने उन्हें शोहरत के आसमान पर पहुंचा दिया। ये फ़िल्म कुश्ती पर ही आधारित थी। किंग कांग के बाद 'रुस्तम-ए-रोम', 'रुस्तम-ए-बग़दाद', 'रुस्तम-ए-हिंद' आदि फ़िल्में कीं। सभी फ़िल्में सफल रहीं। मशहूर फ़िल्म आनंद में भी उनकी छोटी-सी किंतु यादगार भूमिका थी। उन्होंने कई फ़िल्मों में अलग-अलग किरदार निभाए हैं। वर्ष 2002 में 'शरारत', 2001 में 'फर्ज', 2000 में 'दुल्हन हम ले जाएंगे', 'कल हो ना हो', 1999 में 'ज़ुल्मी', 1999 में 'दिल्लगी' और इस तरह से अन्य कई फ़िल्में।

मुमताज़ से जुगलबंदी

अपने 60 साल लंबे फ़िल्मी कैरियर में दारा सिंह ने 100 से ज्यादा फ़िल्मों में काम किया, जिनमें सबसे ज्यादा 16 फ़िल्में अभिनेत्री मुमताज़ के साथ की। मुमताज़ के साथ दारा सिंह की जोड़ी बनी 1963 में फ़िल्म 'फौलाद' से। शोख-चुलबुली मुमताज़ और ही मैन दारा सिंह की जोड़ी का जादू क़रीब पांच साल तक सिल्वर स्क्रीन पर छाया रहा। दारा सिंह और मुमताज़ ने 'वीर भीमसेन', 'हरक्यूलिस', 'आंधी और तूफान', 'राका', 'रुस्तम-ए-हिंद', 'सैमसन', 'सिकंदर-ए-आज़म', 'टारज़न कम्स टु डेल्ही', 'टारज़न एंड किंगकांग', 'बॉक्सर', 'जवां मर्द' और 'डाकू मंगल सिंह' समेत क़रीब डेढ़ दर्ज़न फ़िल्मों में साथ काम किया।

फ़िल्म निर्माता-निर्देशक

युवावस्था में दारा सिंह

कुश्ती के बाद दारा सिंह को सबसे ज़्यादा प्यार फ़िल्मों से ही रहा। उन्होंने मोहाली के पास 'दारा स्टूडियो' बनाया और ढे़र सारी फ़िल्में भी। उन्होंने पहली फ़िल्म बनाई अपनी मातृभाषा पंजाबी में 'नानक दुखिया सब संसार'। भक्ति भावना वाली यह फ़िल्म जबर्दस्त हिट रही। इसके बाद 'ध्यानी भगत', 'सवा लाख से एक लडाऊं' व 'भगत धन्ना जट्ट' आदि फ़िल्मों का निर्माण भी उन्होंने किया। दारा सिंह ने हिंदी और पंजाबी में 8 फ़िल्में निर्मित कीं, 8 फ़िल्मों का निर्देशन किया और 7 फ़िल्मों की कहानी भी खुद ही लिखी। सौ से ज़्यादा फ़िल्मों में अदाकारी कर चुके दारा सिंह की आख़िरी यादगार फ़िल्म थी 2007 में इम्तियाज अली की फ़िल्म 'जब वी मेट', जिसमें उन्होंने करीना कपूर के दादाजी का किरदार निभाया। वो आख़िरी दम तक फ़िल्मों में जुड़ा रहना चाहते थे, लेकिन बढ़ती उम्र और बिगड़ती सेहत साथ नहीं दे रही थी, लिहाज़ा दारा सिंह ने 2011 में लाइट-कैमरा और एक्शन को अलविदा कह दिया।

धारावाहिक रामायण में हनुमान

कोई एक किरदार कैसे किसी की मुकम्मल पहचान बदल देता है, इसकी मिसाल हैं दारा सिंह। सीरियल रामायण में हनुमान के किरदार ने उन्हें घर-घर में ऐसी पहचान दी कि अब किसी को याद भी नहीं कि दारा सिंह अपने ज़माने के 'वर्ल्ड चैंपियन पहलवान' थे। ये वो किरदार है, जिसने पहलवान से अभिनेता बने दारा सिंह की पूरी पहचान बदल दी। 1986 में रामानंद सागर के सीरियल रामायण में दारा सिंह हनुमान के रोल में ऐसे रच-बस गए कि इसके बाद कभी किसी ने किसी दूसरे कलाकार को हनुमान बनाने के बारे में सोचा ही नहीं। रामायण सीरियल के बाद आए दूसरे पौराणिक धारावाहिक महाभारत में भी हनुमान के रूप में दारा सिंह ही नज़र आए। 1989 में जब 'लव कुश' की पौराणिक कथा छोटे परदे पर उतारी गई, तो उसमें भी हनुमान का रोल दारा सिंह ने ही किया। 1997 में आई फ़िल्म 'लव कुश' में भी हनुमान बने दारा सिंह।

विभिन्न धार्मिक चरित्र

1964 में फ़िल्म 'वीर भीमसेन' में दारा सिंह ने भीम का रोल निभाया। अगले साल आई फ़िल्म 'महाभारत' में भी दारा सिंह ही भीम बने। 1968 में फ़िल्म 'बलराम श्रीकृष्ण' में दारा सिंह कृष्ण के बड़े भाई बलराम की भूमिका में नज़र आए। 1971 में फ़िल्म 'तुलसी विवाह' में दारा सिंह पहली बार भगवान शिव के रोल में सामने आए। भगवान शिव की भूमिका उन्होंने 'हरि दर्शन' और 'हर-हर महादेव' में भी निभाई। दारा सिंह को पहली बार हनुमान बनाया निर्माता-निर्देशक चंद्रकांत ने। 1976 में रिलीज़ हुई फ़िल्म 'बजरंग बली' में दारा सिंह हनुमान की भूमिका में थे। इस फ़िल्म में तब तक चॉकलेटी हीरो विश्वजीत राम के रोल में थे, जबकि लक्ष्मण की भूमिका शशि कपूर ने निभाई और रावण बने थे प्रेमनाथ। 'बजरंग बली' रिलीज़ होने के बारह साल साल बाद जब रामायण सीरियल शुरू हुआ, तो रामानंद सागर के जेहन में हनुमान के रोल को लेकर कोई दुविधा नहीं थी। वो पूरी तरह इस बात से सहमत थे कि हनुमान की भूमिका के लिए दारा सिंह से बेहतर कोई हो ही नहीं सकता।

सम्मान और उपाधि

  • 1966 में दारा सिंह को रुस्तम-ए-पंजाब का ख़िताब से नवाजा गया।
  • 1978 में दारा सिंह को रुस्तम-ए-हिंद के ख़िताब से नवाजा गया।

निधन

दारा सिंह का 84 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से 12 जुलाई 2012 को निधन हुआ। इस प्रकार एक सफल पहलवान, एक सफल अभिनेता, निर्देशक और निर्माता के तौर पर दारा सिंह ने अपने जीवन में बहुत कुछ पाया और साथ ही देश का गौरव बढ़ाया।

समाचार

12 जुलाई, 2012 गुरुवार

विश्व प्रसिद्ध पहलवान और अभिनेता दारा सिंह का निधन

कुश्ती के क्षेत्र और अभिनय जगत् में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले दारा सिंह का 12 जुलाई, 2012 को निधन हो गया है। 84 साल के दारा सिंह ने गुरुवार सुबह 7.30 बजे अंतिम सांस ली। उनके पुत्र बिंदू दारा सिंह ने यह दुखद खबर दी। दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हुआ। दारा सिंह को दिल का दौरा पड़ने के बाद 7 जुलाई को कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बताया गया कि दिल का दौरा पड़ने पर दिमाग में ऑक्सीजन की सप्लाई बंद होने से उनकी तबीयत बिगड़ी। इस तरह की स्थिति में सुधार की उम्मीद बहुत कम रहती है। उनकी हालत इतनी नाज़ुक हो गई कि उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। बाद में उनकी किडनी ने भी काम करना बंद कर दिया।

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