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− | *जब [[ब्रह्मा]] सृष्टि करने के विचार में चिंतनरत थे उस समय उनके [[कान]] से दस कन्याएँ | + | *[[वराह पुराण]] के अनुसार इनकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है - |
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*इसके अनुसार उन कन्याओं ने एक एक दिशा की ओर प्रस्थान किया। | *इसके अनुसार उन कन्याओं ने एक एक दिशा की ओर प्रस्थान किया। | ||
− | *इसके | + | *इसके पश्चात ब्रह्मा ने आठ दिग्पालों की सृष्टि की और अपनी कन्याओं को बुलाकर प्रत्येक लोकपाल को एक एक कन्या प्रदान कर दी। |
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− | *इन दिग्पालों के नाम पुराणों में दिशाओं के क्रम से निम्नांकित है | + | *इन दिग्पालों के नाम [[पुराण|पुराणों]] में दिशाओं के क्रम से निम्नांकित है- |
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- पुराणों के अनुसार दिक्पाल दस दिशाओं का पालन करने वाले देवगण माने जाते हैं।
- इनकी संख्या 10 मानी गई है।
- वराह पुराण के अनुसार इनकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है -
- जब ब्रह्मा सृष्टि करने के विचार में चिंतनरत थे, उस समय उनके कान से दस कन्याएँ उत्पन्न हुईं, जिनमें मुख्य 6 और 4 गौण थीं।
- पूर्वा
- आग्नेयी
- दक्षिणा
- नैऋती
- पश्चिमा
- वायवी
- उत्तर
- ऐशानी
- ऊद्ध्व
- अधस्
- उन कन्याओं ने ब्रह्मा का नमन कर उनसे रहने का स्थान और उपयुक्त पतियों की याचना की।
- ब्रह्मा ने कहा- 'तुम लोगों का जिस ओर जाने की इच्छा हो जा सकती हो। शीघ्र ही तुम लोगों को अनुरूप पति भी दूँगा।'
- इसके अनुसार उन कन्याओं ने एक एक दिशा की ओर प्रस्थान किया।
- इसके पश्चात ब्रह्मा ने आठ दिग्पालों की सृष्टि की और अपनी कन्याओं को बुलाकर प्रत्येक लोकपाल को एक एक कन्या प्रदान कर दी।
- इसके बाद वे सभी लोकपाल उन कन्याओं के साथ अपनी दिशाओं में चले गए।
- इन दिग्पालों के नाम पुराणों में दिशाओं के क्रम से निम्नांकित है-
- पूर्व के इंद्र
- दक्षिणपूर्व के अग्नि
- दक्षिण के यम
- दक्षिण पश्चिम के सूर्य
- पश्चिम के वरुण
- पश्चिमोत्तर के वायु
- उत्तर के कुबेर
- उत्तरपूर्व के सोम।
- शेष दो दिशाओं अर्थात ऊर्ध्व या आकाश की ओर वे स्वयं चले गए और नीचे की ओर उन्होंने शेष या अनंत को प्रतिष्ठित किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ