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13:33, 18 सितम्बर 2011 का अवतरण

दिलीप कुमार
दिलीप कुमार
पूरा नाम मोहम्मद युसूफ़ ख़ान
प्रसिद्ध नाम दिलीप कुमार
अन्य नाम ट्रेजडी किंग, दिलीप साहब
जन्म 11 दिसंबर, 1922
जन्म भूमि पेशावर (अब पाकिस्तान में)
पति/पत्नी सायरा बानो
कर्म भूमि मुंबई
कर्म-क्षेत्र अभिनेता, निर्देशक,
मुख्य फ़िल्में दाग़ (1954), आज़ाद (1956), देवदास (1957), नया दौर (1958), मुग़ल-ए-आज़म (1960), लीडर (1965), राम और श्याम (1968), शक्ति (1983) आदि
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण, दादा साहब फाल्के पुरस्कार, निशान-ए-इम्तियाज[1]
नागरिकता भारतीय

दिलीप कुमार (अंग्रेज़ी: Dilip Kumar) (जन्म- 11 दिसंबर, 1922 पेशावर, पाकिस्तान) हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता और राज्य सभा के पूर्व सदस्य है। दिलीप कुमार का वास्तविक नाम 'मोहम्मद युसुफ़ ख़ान' है। दिलीप कुमार को अपने दौर का बेहतरीन अभिनेता माना जाता है, शोकनीय भूमिका के लिए मशहूर होने के कारण उन्हे 'ट्रेजडी किंग' भी कहा जाता था। दिलीप कुमार को भारतीय फिल्मों में के यादगार अभिनय करने के लिए फ़िल्मों का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार के अलावा पद्म भूषण और पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'निशान-ए-इम्तियाज़' से सम्मानित किया गया है।

जीवन परिचय

जन्म और बचपन

दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसम्बर, 1922 को वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर शहर में हुआ था। उनके बचपन का नाम 'मोहम्मद युसूफ़ ख़ान था। उनके पिता का नाम लाला गुलाम सरवर था जो फल बेचकर अपने परिवार का ख़र्च चलाते थे। विभाजन के दौरान उनका परिवार मुंबई आकर बस गया। उनका शुरुआती जीवन तंगहाली में ही गुजरा। पिता के व्यापार में घाटा होने के कारण वह पुणे की एक कैंटीन में काम करने लगे थे। यहीं देविका रानी की पहली नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने दिलीप कुमार को अभिनेता बना दिया। उन्होंने ही युसूफ़ ख़ान की जगह नया नाम दिलीप कुमार रखा। पच्चीस वर्ष की उम्र में दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे।[2]

विवाह

दिलीप कुमार ने 1966 में प्रसिद्ध अभिनेत्री सायरा बानो से शादी की थी। जिस समय दिलीप कुमार और सायरा बानो की शादी हुई थी उस समय सायरा बानो 22 और दिलीप साहब 44 साल के थे। आज यह जोड़ी बॉलिवुड की सबसे प्रसिद्ध जोड़ियों में से एक है।[2]

फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत

दिलीप कुमार ने फिल्म “ज्वार भाटा” से अपने फिल्मी कॅरियर की शुरूआत की। हालांकि यह फिल्म सफल नहीं रही। उनकी पहली हिट फिल्म “जुगनू” थी। 1947 में रिलीज़ हुई इस फिल्म ने बॉलिवुड में दिलीप कुमार को हिट फिल्मों के स्टार की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। 1949 में फिल्म “अंदाज” में दिलीप कुमार ने पहली बार राजकपूर के साथ काम किया। यह फिल्म एक हिट साबित हुई। दीदार (1951) और देवदास (1955) जैसी फिल्मों में गंभीर भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हें ट्रेजडी किंग कहा जाने लगा। मुग़ले-ए-आज़म (1960) में उन्होंने मुग़ल राजकुमार जहाँगीर की भूमिका निभाई। “राम और श्याम” में दिलीप कुमार द्वारा निभाया गया दोहरी भूमिका (डबल रोल) आज भी लोगों को गुदगुदाने में सफल साबित होता है। 1970, 1980 और 1990 के दशक में उन्होंने कम फिल्मों में काम किया। इस समय की उनकी प्रमुख फिल्में थीं: क्रांति (1981), विधाता (1982), दुनिया (1984), कर्मा (1986), इज्जतदार (1990) और सौदागर (1991)। 1998 में बनी फिल्म “किला” उनकी आखिरी फिल्म थी।[2]

व्यक्तित्व

दिलीप कुमार अपने आप में सेल्फमेडमैन (स्वनिर्मित मनुष्य) की जीती-जागती मिसाल हैं। उनकी 'प्राइवेट लाइफ' हमेशा कौतुहल का विषय रही, जिसमें रोजमर्रा के सुख-दुःख, उतार-चढ़ाव, मिलना-बिछुड़ना, इकरार-तकरार सभी शामिल थे। ईश्वर-भीरू दिलीप कुमार को साहित्य, संगीत और दर्शन की अभिरुचि ने गंभीर और प्रभावशाली हस्ती बना दिया।[3]

अभिनय सम्राट

शहीद, अंदाज, आन, देवदास, नया दौर, मधुमती, यहूदी, पैगाम, मुगल-ए-आजम, गंगा-जमुना, लीडर तथा राम और श्याम जैसी फिल्मों के सलोने नायक दिलीप कुमार स्वतंत्र भारत के पहले दो दशकों में लाखों युवा दर्शकों के दिलों की धड़कन बन गए थे। सभ्य, सुसंस्त, कुलीन इस अभिनेता ने रंगीन और रंगहीन (श्वेत-श्याम) सिनेमा के पर्दे पर अपने आपको कई रूपों में प्रस्तुत किया। असफल प्रेमी के रूप में उन्होंने विशेष ख्याति पाई, लेकिन यह भी सिद्ध किया कि हास्य भूमिकाओं में वे किसी से कम नहीं हैं। वे ट्रेजेडी किंग भी कहलाए और ऑलराउंडर भी। उनकी गिनती अतिसंवेदनशील कलाकारों में की जाती है, लेकिन दिल और दिमाग के सामंजस्य के साथ उन्होंने अपने व्यक्तित्व और जीवन को ढाला। पच्चीस वर्ष की उम्र में दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे। वह आजादी का उदयकाल था। शीघ्र ही राजकपूर और देव आनंद के आगमन से 'दिलीप-राज-देव' की प्रसिद्ध त्रिमूर्ति का निर्माण हुआ। ये नए चेहरे आम सिने दर्शकों को मोहक लगे। इनसे पूर्व के अधिकांश हीरो प्रौढ़ नजर आते थे।[3]

सम्मान के महानायक

आज ज्यादातर लोगों को इस बात पर आश्चर्य होता है कि इस महानायक ने सिर्फ 54 फिल्में क्यों की। लेकिन इसका उत्तर है दिलीप कुमार ने अपनी छवि का सदैव ध्यान रखा और अभिनय स्तर को कभी गिरने नहीं दिया। इसलिए आज तक वे अभिनय के पारसमणि बने हुए हैं जबकि धूम-धड़ाके के साथ कई सुपर स्टार, मेगा स्टार आए और आकर चले गए। दिलीप कुमार ने अभिनय के माध्यम से राष्ट्र की जो सेवा की, उसके लिए भारत सरकार ने उन्हें 1991 में पद्म भूषण की उपाधि से नवाजा था और 1995 में फिल्म का सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान 'दादा साहब फालके अवॉर्ड' भी प्रदान किया। पाकिस्तान सरकार ने भी उन्हें 1997 में 'निशान-ए-इम्तियाज' से नवाजा था, जो पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। 1997 में ही उन्हें भारतीय सिनेमा के बहुमूल्य योगदान देने के लिए एनटी रामाराव अवॉर्ड दिया गया, जबकि 1998 में समाज कल्याण के क्षेत्र में योगदान के लिए रामनाथ गोयनका अवॉर्ड दिया गया।[3]दिलीप कुमार का नाम सबसे ज्यादा पुरस्कार पाने वाले भारतीय अभिनेता के रूप में "गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स" में दर्ज़ है।[4]

फिल्म फेयर पुरस्कार

1953 में फिल्म फेयर पुरस्कारों के श्रीगणेश के साथ दिलीप कुमार को फिल्म 'दाग' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार‍ दिया था। अपने जीवनकाल में दिलीप कुमार कुल आठ बार फिल्म फेयर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पा चुके हैं और यह एक कीर्तिमान है जिसे अभी तक तोड़ा नहीं जा सका। अंतिम बार उन्हें सन् 1982 में फिल्म 'शक्ति' के लिए यह इनाम दिया गया था, जबकि फिल्म फेयर ने ही उन्हें 1993 में राज कपूर की स्मृति में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया। फिल्म फेयर ने जिन छह अन्य फिल्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया वे हैं आजाद (1955), देवदास (1956), नया दौर (1957), कोहिनूर (1960), लीडर (1964) तथा राम और श्याम (1967)।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'निशान-ए-इम्तियाज' पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
  2. 2.0 2.1 2.2 बॉलिवुड के असली महानायक – दिलीप कुमार (हिन्दी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 18 सितंबर, 2011।
  3. 3.0 3.1 3.2 3.3 दिलीप कुमार : एक महानायक की गाथा (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 18 सितंबर, 2011।
  4. Dilip Kumar on TV show?

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