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[[वर्ष]] [[1959]] में पढ़ाई समाप्त कर देवेन वर्मा [[मुम्बई]] आ गए। फ़िल्मी कॅरियर आरंभ करने में उन्हें ज्यादा परेशान नहीं हुई। 'दादा मुनि' [[अशोक कुमार]] के वे दामाद थे। 'बीआर फ़िल्म्स' और 'यशराज फ़िल्म्स' में लगातार उन्हें काम मिला, क्योंकि इस बैनर से दादा मुनि के अंतरंग सम्बन्ध थे। देवेन वर्मा की फिल्मों में प्रवेश [[1961]] में [[बी. आर. चोपड़ा]] के बैनर तले फिल्म 'धर्मपुत्र' से हुआ। इसका निर्देशन [[यश चोपड़ा]] ने किया था। इस फिल्म में उनका छोटा-सा रोल था, जिस पर किसी ने अधिक ध्यान नहीं गया। [[1964]] में आई फिल्म 'सुहागन' में उनके अभिनय पर निर्माताओं की नजरें इनायत हुईं। 'देवर' फिल्म में उनका निगेटिव रोल था, तो दूसरी फिल्म 'मोहब्बत जिंदगी है' में उन्होंने हास्य भूमिका निभाई। दोनों फ़िल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता पाई।
 
[[वर्ष]] [[1959]] में पढ़ाई समाप्त कर देवेन वर्मा [[मुम्बई]] आ गए। फ़िल्मी कॅरियर आरंभ करने में उन्हें ज्यादा परेशान नहीं हुई। 'दादा मुनि' [[अशोक कुमार]] के वे दामाद थे। 'बीआर फ़िल्म्स' और 'यशराज फ़िल्म्स' में लगातार उन्हें काम मिला, क्योंकि इस बैनर से दादा मुनि के अंतरंग सम्बन्ध थे। देवेन वर्मा की फिल्मों में प्रवेश [[1961]] में [[बी. आर. चोपड़ा]] के बैनर तले फिल्म 'धर्मपुत्र' से हुआ। इसका निर्देशन [[यश चोपड़ा]] ने किया था। इस फिल्म में उनका छोटा-सा रोल था, जिस पर किसी ने अधिक ध्यान नहीं गया। [[1964]] में आई फिल्म 'सुहागन' में उनके अभिनय पर निर्माताओं की नजरें इनायत हुईं। 'देवर' फिल्म में उनका निगेटिव रोल था, तो दूसरी फिल्म 'मोहब्बत जिंदगी है' में उन्होंने हास्य भूमिका निभाई। दोनों फ़िल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता पाई।
  
यह समय देवेन वर्मा के लिए निर्णायक था। उन्हें कॉमेडी या खलनायकी में से किसी एक को चुनना था। उन्होंने कॉमेडी की ओर अपनी दिलचस्पी दिखाई। देवेन वर्मा के अभिनय की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि वे बड़ी आसानी से किरदार को अपने अंदर उतार लेते थे। वह फ़िल्मी जीवन में सिर्फ अभिनय करने ही नहीं आए थे। उन्हें निर्माता-निर्देशक बनकर अपनी अतिरिक्ति ऊर्जा को भी दर्शाना था।<ref>{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/bollywood-focus/deven-varma-114120200015_1.html|title= देवेन वर्मा के खट्टे-मीठे अंगूर|accessmonthday= 02 दिसम्बर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेब दुनिया |language= हिन्दी}}</ref>
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यह समय देवेन वर्मा के लिए निर्णायक था। उन्हें कॉमेडी या खलनायकी में से किसी एक को चुनना था। उन्होंने कॉमेडी की ओर अपनी दिलचस्पी दिखाई। देवेन वर्मा के अभिनय की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि वे बड़ी आसानी से किरदार को अपने अंदर उतार लेते थे। वह फ़िल्मी जीवन में सिर्फ अभिनय करने ही नहीं आए थे। उन्हें निर्माता-निर्देशक बनकर अपनी अतिरिक्ति ऊर्जा को भी दर्शाना था।<ref name="aa">{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/bollywood-focus/deven-varma-114120200015_1.html|title= देवेन वर्मा के खट्टे-मीठे अंगूर|accessmonthday= 02 दिसम्बर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेब दुनिया |language= हिन्दी}}</ref>
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==यादगार भूमिकाएँ==
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फिल्म 'चोरी मेरा काम' ([[1975]]) में देवेन वर्मा परवीन भाई पब्लिशर के रूप में परदे पर आते हैं। एक किताब के प्रकाशित होते ही सबका ध्यान उनकी ओर आकर्षित होता है। इसी रोल को कुछ साल बाद 'चोर के घर चोर' ([[1978]]) फिल्म में और आगे ले जाया गया, जैसा इन दिनों सीक्वेल फ़िल्मों में किया जा रहा है। उनके कॅरियर की यादगार फ़िल्में थीं- 'गोलमाल' ([[1979]]), 'अंगूर' ([[1982]]) तथा 'रंग बिरंगी' ([[1983]])। बासु चटर्जी, [[ऋषिकेश मुखर्जी]], [[गुलज़ार]] जैसे संवेदनशील निर्देशकों की फ़िल्मों में काम करने से देवेन को पुरस्कार भी मिले और प्रतिष्ठा भी। शेक्सपीयर के मशहूर [[नाटक]] 'कॉमेडी ऑफ़ एरर्स' पर [[भारत]] में कई फ़िल्में बनी हैं, जिनमें गुलज़ार निर्देशित 'अंगूर' सर्वोत्तम मानी जाती है। इन फ़िल्मों के अलावा भी देवेन वर्मा ने कई फ़िल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाईं और दर्शकों को तनाव मुक्त किया। उन्होंने कॉमेडी करने के लिए अश्लीलता का कभी सहारा नहीं लिया और हमेशा अपने संवाद बोलने के अंदाज और बॉडी लैंग्वेज के जरिये दर्शकों को हंसाया। उनके परदे पर आते ही दर्शक हंसने के लिए तैयार हो जाते थे।<ref name="aa"/>
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==प्रमुख फ़िल्में==
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देवेन वर्मा की कुछ प्रमुख फ़िल्में निम्नलिखित हैं-
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|लोक परलोक
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|[[1979]]
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देवेन वर्मा बड़े पर्दे पर आखिरी बार 'कलकत्ता मेल' फ़िल्म में नजर आए थे। मशहूर कॉमेडी फ़िल्म 'अंदाज अपना अपना' में उन्होंने आज के सुपर स्टार आमिर ख़ान के [[पिता]] की भूमिका निभाई थी।<ref>{{cite web |url= http://aajtak.intoday.in/story/veteran-comedian-deven-verma-passes-away-in-pune-due-to-cardiac-arrest-and-kidney-failure-1-789777.html|title= नहीं रहे मशहूर कॉमेडियन देवेन वर्मा|accessmonthday= 02 दिसम्बर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=मूवी मसाला, आज तक|language= हिन्दी}}</ref>
 
देवेन वर्मा बड़े पर्दे पर आखिरी बार 'कलकत्ता मेल' फ़िल्म में नजर आए थे। मशहूर कॉमेडी फ़िल्म 'अंदाज अपना अपना' में उन्होंने आज के सुपर स्टार आमिर ख़ान के [[पिता]] की भूमिका निभाई थी।<ref>{{cite web |url= http://aajtak.intoday.in/story/veteran-comedian-deven-verma-passes-away-in-pune-due-to-cardiac-arrest-and-kidney-failure-1-789777.html|title= नहीं रहे मशहूर कॉमेडियन देवेन वर्मा|accessmonthday= 02 दिसम्बर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=मूवी मसाला, आज तक|language= हिन्दी}}</ref>

07:12, 2 दिसम्बर 2014 का अवतरण

देवेन वर्मा (अंग्रेज़ी: Deven Verma ; जन्म- 23 अक्टूबर, 1937; मृत्यु- 2 दिसम्बर, 2014, पुणे, महाराष्ट्र) भारतीय सिनेमा में हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध हास्य अभिनेता थे। उन्होंने हिन्दी फ़िल्मों में अपने शानदार हास्य अभिनय से सभी का दिल जीत लिया था। देवेन वर्मा ने लगभग 149 फ़िल्मों में काम किया। 'गोलमाल', 'अंगूर', 'खट्टा मीठा', 'नास्तिक', 'रंग बिरंगी' आदि उनके कॅरियर की बड़ी फ़िल्मों में से एक रही थीं। 'बेशर्म' सहित कुछ फ़िल्मों का निर्माण और निर्देशन भी उन्होंने किया था। 'चोरी मेरा काम', 'चौर के घर चोर' तथा 'अंगूर' फ़िल्मों के लिए उन्हें बेस्ट कॉमेडियन के फ़िल्मफेयर अवॉर्ड से भी नवाजा़ गया था।

जन्म तथा शिक्षा

देवेन वर्मा का जन्म 23 अक्टूबर, 1937 को हुआ था। उनका पालन-पोषण पुणे में हुआ। उन्होंने यहीं से राजनीति विज्ञान तथा समाजशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। देवेन वर्मा अपने समय के प्रसिद्ध अभिनेता और 'दादा मुनि' के नाम से मशहूर अशोक कुमार के दामाद थे। अशोक कुमार की सबसे छोटी पुत्री रूपा गांगुली से उनका विवाह हुआ था।

फ़िल्मों में प्रवेश

वर्ष 1959 में पढ़ाई समाप्त कर देवेन वर्मा मुम्बई आ गए। फ़िल्मी कॅरियर आरंभ करने में उन्हें ज्यादा परेशान नहीं हुई। 'दादा मुनि' अशोक कुमार के वे दामाद थे। 'बीआर फ़िल्म्स' और 'यशराज फ़िल्म्स' में लगातार उन्हें काम मिला, क्योंकि इस बैनर से दादा मुनि के अंतरंग सम्बन्ध थे। देवेन वर्मा की फिल्मों में प्रवेश 1961 में बी. आर. चोपड़ा के बैनर तले फिल्म 'धर्मपुत्र' से हुआ। इसका निर्देशन यश चोपड़ा ने किया था। इस फिल्म में उनका छोटा-सा रोल था, जिस पर किसी ने अधिक ध्यान नहीं गया। 1964 में आई फिल्म 'सुहागन' में उनके अभिनय पर निर्माताओं की नजरें इनायत हुईं। 'देवर' फिल्म में उनका निगेटिव रोल था, तो दूसरी फिल्म 'मोहब्बत जिंदगी है' में उन्होंने हास्य भूमिका निभाई। दोनों फ़िल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता पाई।

यह समय देवेन वर्मा के लिए निर्णायक था। उन्हें कॉमेडी या खलनायकी में से किसी एक को चुनना था। उन्होंने कॉमेडी की ओर अपनी दिलचस्पी दिखाई। देवेन वर्मा के अभिनय की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि वे बड़ी आसानी से किरदार को अपने अंदर उतार लेते थे। वह फ़िल्मी जीवन में सिर्फ अभिनय करने ही नहीं आए थे। उन्हें निर्माता-निर्देशक बनकर अपनी अतिरिक्ति ऊर्जा को भी दर्शाना था।[1]

यादगार भूमिकाएँ

फिल्म 'चोरी मेरा काम' (1975) में देवेन वर्मा परवीन भाई पब्लिशर के रूप में परदे पर आते हैं। एक किताब के प्रकाशित होते ही सबका ध्यान उनकी ओर आकर्षित होता है। इसी रोल को कुछ साल बाद 'चोर के घर चोर' (1978) फिल्म में और आगे ले जाया गया, जैसा इन दिनों सीक्वेल फ़िल्मों में किया जा रहा है। उनके कॅरियर की यादगार फ़िल्में थीं- 'गोलमाल' (1979), 'अंगूर' (1982) तथा 'रंग बिरंगी' (1983)। बासु चटर्जी, ऋषिकेश मुखर्जी, गुलज़ार जैसे संवेदनशील निर्देशकों की फ़िल्मों में काम करने से देवेन को पुरस्कार भी मिले और प्रतिष्ठा भी। शेक्सपीयर के मशहूर नाटक 'कॉमेडी ऑफ़ एरर्स' पर भारत में कई फ़िल्में बनी हैं, जिनमें गुलज़ार निर्देशित 'अंगूर' सर्वोत्तम मानी जाती है। इन फ़िल्मों के अलावा भी देवेन वर्मा ने कई फ़िल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाईं और दर्शकों को तनाव मुक्त किया। उन्होंने कॉमेडी करने के लिए अश्लीलता का कभी सहारा नहीं लिया और हमेशा अपने संवाद बोलने के अंदाज और बॉडी लैंग्वेज के जरिये दर्शकों को हंसाया। उनके परदे पर आते ही दर्शक हंसने के लिए तैयार हो जाते थे।[1]

प्रमुख फ़िल्में

देवेन वर्मा की कुछ प्रमुख फ़िल्में निम्नलिखित हैं-

देवेन वर्मा की प्रमुख फ़िल्में
फ़िल्म वर्ष फ़िल्म वर्ष
अनुपमा 1966 खामोशी 1970
गुड्डी 1971 बुड्ढा मिल गया 1971
मेरे अपने 1971 अन्नदाता 1972
धुंध 1973 कोरा कागज 1974
चोरी मेरा काम 1975 कभी कभी 1976
चोर के घर चोर 1978 गोलमाल 1979
लोक परलोक 1979 सौ दिन सास के 1980
जुदाई 1980 कुदरत 1981
ले‍डिस टेलर 1981 सिलसिला 1981
अंगूर 1982 रंग बिरंग 1983
झूठी 1986 चमत्कार 1992
क्या कहना 2000

देवेन वर्मा बड़े पर्दे पर आखिरी बार 'कलकत्ता मेल' फ़िल्म में नजर आए थे। मशहूर कॉमेडी फ़िल्म 'अंदाज अपना अपना' में उन्होंने आज के सुपर स्टार आमिर ख़ान के पिता की भूमिका निभाई थी।[2]

निधन

देवेन वर्मा का निधन 77 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से 2 दिसम्बर, 2014 को हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 देवेन वर्मा के खट्टे-मीठे अंगूर (हिन्दी) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 02 दिसम्बर, 2014।
  2. नहीं रहे मशहूर कॉमेडियन देवेन वर्मा (हिन्दी) मूवी मसाला, आज तक। अभिगमन तिथि: 02 दिसम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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