दोनों रहिमन एक से -रहीम

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दोनों ‘रहिमन’ एक से, जौ लों बोलत नाहिं ।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु बसंत के माहिं ॥

अर्थ

रूप दोनों का एक सा ही है, धोखा खा जाते हैं पहचानने में कि कौन तो कौआ है और कौन कोयल। दोनों की पहचान करा देती है, वसन्त ऋतु, जबकि कोयल की कूक सुनने में मीठी लगती है और कौवे का काँव-काँव कानों को फाड़ देता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रूप एक-सा सुन्दर हुआ, तो क्या हुआ ! दुर्जन और सज्जन की पहचान कडुवी और मीठी वाणी स्वयं करा देती है।

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