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*नंजनगूड प्राचीन तीर्थनगर [[कर्नाटक]] में [[कावेरी नदी|कावेरी]] की सहायक [[काबिनी नदी]] के तट पर [[मैसूर]] से 26 किमी. दक्षिण में स्थित है।
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[[चित्र:Nanjangud-Temple-Mysore.jpg|thumb|200px|[[नंजनगुड मंदिर मैसूर|नंजनगुड मंदिर]], नंजनगुड]]
*नंजनगूड को ननजनगढ़ के नाम से भी जाना जाता है।
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'''नंजनगुड''' प्राचीन तीर्थनगर [[कर्नाटक]] में [[कावेरी नदी|कावेरी]] की सहायक काबिनी नदी के [[तट]] पर [[मैसूर]] से 26 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है।
*यह नगर 10वीं और 11वीं शताब्दी में [[गंग वंश|गंग]] [[चोल वंश]] के समय से ही विख्यात रहा है।  
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*नंजनगुड को ननजनगढ़ के नाम से भी जाना जाता है।
*इस नगर में [[श्रीकांतेश्वर नंजुनदेश्वर]] ([[शिव]]) को समर्पित एक प्रसिद्ध मन्दिर है।  
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*'''दक्षिण काशी''' कही जाने वाली इस जगह पर स्थापित लिंग के बार में माना जाता है कि इसकी स्थापना [[गौतम ऋषि]] ने की थी।
*सम्भवतः यह कर्नाटक का सबसे बड़ा मन्दिर है।
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*यह नगर 10वीं और 11वीं शताब्दी में [[गंग वंश|गंग]] तथा [[चोल वंश]] के समय से ही विख्यात रहा है, जहां प्रतिवर्ष हजारों तीर्थयात्री आते हैं।
*[[द्रविड़ शैली]] में यहाँ उत्तुंग गोपुरम वाला यह मन्दिर '''385x160''' वर्गफीट क्षेत्रफल में फैला हुआ है और यह '''147''' स्तम्भों पर खड़ा है।  
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*संभवत: यह कर्नाटक का सबसे बड़ा मंदिर है।  
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*मैसूर के वाडयार राजाओं और [[टीपू सुल्तान]] ने इन्हें [[स्वर्ण]]-[[आभूषण]] और दान स्वरूप भूमि देकर संरक्षण प्रदान किया।
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*इस नगर में श्रीकांतेश्वर नंजुनदेश्वर ([[शिव]]) को समर्पित एक प्रसिद्ध मन्दिर है।  
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*द्रविड़ शैली में यहाँ उत्तुंग गोपुरम वाला यह मन्दिर '''385x160''' वर्गफीट क्षेत्रफल में फैला हुआ है और यह '''147''' स्तम्भों पर खड़ा है।  
 
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*मैसूर के वाडयार राजाओं और [[टीपू सुल्तान]] ने इन्हें स्वर्ण-आभूषण और [[दान]] स्वरूप भूमि देकर संरक्षण प्रदान किया।  
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*यहां के औद्योगिक विकास के फलस्वरूप नदी में रासायनिक प्रदूषण बढा है। कई लोग मैसूर और आसपास के क्षेत्रों से रासायनिक प्रदूषण बढ़ा है। कई लोग मैसूर और आसपास के क्षेत्रों से नंजनगूड आते-आते रहते हैं। 
 
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10:38, 29 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

नंजनगुड प्राचीन तीर्थनगर कर्नाटक में कावेरी की सहायक काबिनी नदी के तट पर मैसूर से 26 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है।

  • नंजनगुड को ननजनगढ़ के नाम से भी जाना जाता है।
  • दक्षिण काशी कही जाने वाली इस जगह पर स्थापित लिंग के बार में माना जाता है कि इसकी स्थापना गौतम ऋषि ने की थी।
  • यह नगर 10वीं और 11वीं शताब्दी में गंग तथा चोल वंश के समय से ही विख्यात रहा है, जहां प्रतिवर्ष हजारों तीर्थयात्री आते हैं।
  • संभवत: यह कर्नाटक का सबसे बड़ा मंदिर है।
  • मैसूर के वाडयार राजाओं और टीपू सुल्तान ने इन्हें स्वर्ण-आभूषण और दान स्वरूप भूमि देकर संरक्षण प्रदान किया।
  • इस नगर में श्रीकांतेश्वर नंजुनदेश्वर (शिव) को समर्पित एक प्रसिद्ध मन्दिर है।
  • द्रविड़ शैली में यहाँ उत्तुंग गोपुरम वाला यह मन्दिर 385x160 वर्गफीट क्षेत्रफल में फैला हुआ है और यह 147 स्तम्भों पर खड़ा है।
  • यह समूचा नगर विभिन्न देवताओं के मन्दिरों से भरा हुआ है।
  • बाद के दिनों में मैसूर के वाडयार राजाओं और टीपू सुल्तान ने इन्हें स्वर्ण आभूषण और दान स्वरूप भूमि देकर संरक्षण प्रदान किया।
  • इस नगर के चारों और का क्षेत्र ऊपर स्थित नुगू बांध से सिंचाई के लिये जल प्राप्त करता है। हाल के वर्षों में यह नगर मैसूर का उपनगर बन गया है।
  • यहां नदी तट या उससे कुछ दूर वस्त्र, खाद्य प्रसंस्करण, ऐल्कोहल और औषधि निर्माण जैसे कई उद्योग स्थित है।
  • यहां के औद्योगिक विकास के फलस्वरूप नदी में रासायनिक प्रदूषण बढा है। कई लोग मैसूर और आसपास के क्षेत्रों से रासायनिक प्रदूषण बढ़ा है। कई लोग मैसूर और आसपास के क्षेत्रों से नंजनगूड आते-आते रहते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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