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'''नगाड़ा''' प्राचीन समय से ही प्रमुख [[वाद्य यंत्र]] रहा है। इसे लोक उत्सवों के अवसर पर बजाया जाता है। [[होली]] के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों में इसका विशेष प्रयोग होता है। नगाड़ों में जोड़े अलग-अलग होते हैं, जिसमें एक की आवाज़ पतली तथा दूसरे की आवाज़ मोटी होती है। इसे बजाने के लिए लकड़ी की डंडियों से पीटकर ध्वनि निकाली जाती है। निचली सतह पर नगाड़ा पकी हुई [[मिट्टी]] का बना होता है। यह [[भारत]] का बहुत ही लोकप्रिय वाद्य है।
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'''नगाड़ा''' या 'नक्कारा' प्राचीन समय से ही प्रमुख [[वाद्य यंत्र]] रहा है। इसे लोक उत्सवों के अवसर पर बजाया जाता है। [[होली]] के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों में इसका विशेष प्रयोग होता है। नगाड़े में जोड़े अलग-अलग होते हैं, जिसमें एक की आवाज़ पतली तथा दूसरे की आवाज़ मोटी होती है। इसे बजाने के लिए लकड़ी की डंडियों से पीटकर ध्वनि निकाली जाती है। निचली सतह पर नगाड़ा पकी हुई [[मिट्टी]] का बना होता है। यह [[भारत]] का बहुत ही लोकप्रिय वाद्य है।
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==शब्द का अर्थ==
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'नगाड़ा' शब्द [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] और [[उर्दू]] के साथ [[हिन्दी]] में शामिल हुआ। हिन्दी में इसका एक रूप 'नगारा' भी है। इस शब्द का शुद्ध रूप है- "नक्कारः", जिसका उर्दू में उच्चारण 'नक्कारा' है। इस प्रकार इसका हिन्दी रूप 'नगाड़ा' या 'नगारा' है। नक्कारः मूल रूप से अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है- धौसा, भेरी, दुंदुभि आदि। भारतीय भाषाओं में यह शब्द इस्लामी समय में आया। अरबी में एक धातु है 'नक्र', जिसका अर्थ है- 'किसी चीज को पीटना' या 'ठोकना' आदि। नगाड़ा एक ऐसा वाद्य है, जो चमड़े के पर्दे से ढका रहता है और इस चमड़े के पर्दे पर लकड़ी की दो छोटी छड़ों से प्रहार किया जाता है, जिससे जोरदार [[ध्वनि]] पैदा होती है।<ref name="ab">{{cite web |url=http://shabdavali.blogspot.in/2008/02/blog-post_18.html|title=नगाड़ा|accessmonthday=22 जनवरी|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
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====ऐतिहासिक तथ्य====
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वास्तव में नक्कारा या नगाड़ा संदेश प्रणाली से जुड़ा हुआ शब्द है। दरअसल शासन की महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ आम जनता तक पहुँचाने के लिए नक्कारची<ref>नगाड़ा बजाने वाला व्यक्ति</ref> होता था, जो सरे बाज़ार नगाड़ा पीटते हुए किसी सरकारी फरमान की घोषणा करता था। इसी तरह सेनाएँ जब कूच करती थीं तो भी नगाड़े बजाए जाते थे, ताकि सबको खबर हो जाये। [[मुग़ल|मुग़लों]] के दरबार में एक नक्कारखाना होता था, जिसमें अहम सरकारी फैसले सुनाए जाते थे। फैसलों की तरफ़ ध्यान आकर्षित करने के लिए ज़ोर-ज़ोर से नक्कारे बजाए जाते थे, जिससे सबका ध्यान उस ओर लग जाए। ऐसी मुनादियों में लोगों को सजाएँ देने से लेकर घर की कुर्की कराने जैसी बातें भी होती थीं।
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==अन्य नाम==
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इस [[वाद्य यंत्र]] का एक अन्य नाम 'दमामा' भी है। विशाल नक्कारे या धौंसा को ही 'दमामः' कहा जाता है, जिसे [[उर्दू]]-[[हिन्दी]] में 'दमामा' कहा गया। यह [[फ़ारसी भाषा]] के 'दमाँ' से बना है, जिसका अर्थ होता है- 'क्रोध में चिंघाड़ना', 'दहाड़ना' या 'तेज आवाज़ करना' आदि। बाढ़ और तीव्र प्रवाह वाली ध्वनियों के लिए भी यह शब्द प्रयोग में लाया जाता है। [[संस्कृत]] की डम् धातु से दमाँ की समानता है, जिसका अर्थ भी ध्वनि करना है। 'दमादम' भी इसी मूल का शब्द है, जिसका अर्थ 'लगातार' अथवा 'मुसलसल' है। [[सिक्ख|सिक्खों]] का पवित्रतम स्थान 'दमदमी टकसाल' भी इससे ही जुड़ा है। [[कबीर]] ने भी कई जगह ब्रह्मनाद के लिए अनहद बाजा या गगन दमामा शब्द का प्रयोग किया है। भगवान [[शिव]] का प्रिय वाद्य [[डमरू]] इससे ही बना है। डमरू के आकार को यदि ध्यान से देखा जाए तो इसमें दो बेहद छोटे नक्कारे एक दूसरे की पीठ से जुडे हुए नज़र आते हैं। लकड़ी की शलाकाओं की जगह चमड़े पर आघात का काम सूत की गठान लगी दो लड़ियाँ करती हैं। डमरू की आवाज़ को डमडम और इस क्रिया को डुगडुगी कहते हैं। किसी बात के प्रचार या घोषणा के लिए 'डुगडुगी पीटना' मुहावरा भी संदेश प्रणाली से जुड़ा रहा है।<ref name="ab"/>
  
गाड़ा शब्द दरअसल फारसी-उर्दू के रास्ते हिन्दी में दाखिल हुआ। हिन्दी में इसका एक रूप नगारा भी है। इस शब्द का शुद्ध रूप है नक्कारः जिसका उर्दू में उच्चारण नक्कारा हुआ और हिन्दी रूप हो गया नगाड़ा या नगारा। नक्कारः मूल रूप से अरबी भाषा का शब्द है जिसका मतलब है धौसा , भेरी, दुंदुभि आदि। भारतीय भाषाओं में यह शब्द इस्लामी दौर में दाखिल हुआ । अरबी में एक धातु है नक्र जिसके मायने है किसी चीज को पीटना,ठोकना आदि। नगाड़ा या ढोल एक ऐसा वाद्य है जो चमड़े के पर्दे से ढका रहता है और इस चमड़े के पर्दे पर लकड़ी की दो छोटी छड़ों से प्रहार किया जाता है जिससे भीषण ध्वनि पैदा होती है। इस तरह नक्र से बने नक्कारः का नाम सार्थक हो रहा है।
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नगाड़े के लिए एक विशेष देशी शब्द भी है, जिसे [[ढोल]] कहते हैं। यह मूल रूप से संस्कृत से निकला है। ढोल के छोटे रूप को [[ढोलक]] कहते हैं। इसी के छोटे रूप का नाम ढोलकी होता है। नगाड़ा जहाँ सांगीतिक वाद्य नज़र नहीं आता, वहीं ढोलक अपने आप में परिपूर्ण ताल वाद्य है। ढोल शब्द से भी कई मुहावरे निकले हैं, जैसे- 'ढोल की पोल', 'दूर के ढोल सुहावने' आदि। [[विवाह]] आदि में ढोल बजाना मांगलिक माना जाता है।
 
 
नक्कारा दरअसल संदेश प्रणाली से जुड़ा हुआ शब्द है। दरअसल शासन की महत्वपूर्ण घोषणाएं आम जनता तक पहुंच सके इसके लिए नक्कारची जैसा एक कारिंदा होता था जो सरे बाजार नगाड़ा पीटते हुए किसी सरकारी फरमान की मुनादी करता था। इसी तरह सेनाएं जब कूच करती तो भी नगाड़े बजाए जाते थे ताकि सबको खबर हो सके। मुग़लो के दरबार में एक नक्कारखाना होता था जिसमें अहम सरकारी फैसले सुनाए जाते थे । फैसलों की तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए ज़ोर ज़ोर से नक्कारे बजाए जाते ताकि सबका ध्यान उस ओर लग जाए। ऐसी मुनादियों में लोगों को सजाएं देने से लेकर घर की कुर्की कराने जैसी बातें भी आम होती थीं।
 
 
 
नगाड़े का एक अन्य नाम है दमामा। दरअसल विशाल नक्कारा या धौंसा को ही दमामः कहते हैं जिसे उर्दू हिन्दी में दमामा कहा जाता है। यह बना है फारसी के दमाँ से जिसका मतलब होता है क्रोध में चिंघाड़ना, दहाड़ना, तेज आवाज़ करना आदि। बाढ़ और तीव्र प्रवाह वाली ध्वनियों के लिए भी यह शब्द प्रयोग में लाया जाता है। संस्कृत की डम् धातु से दमाँ की समानता गौरतलब है जिसका मतलब भी ध्वनि करना ही है। दमादम भी इसी मूल का शब्द है जिसका मतलब लगातार ,मुसलसल है। `दमादम मस्त कलंदर ` से तो सभी परिचित हैं। सिखों का पवित्रतम स्थान दमदमी टकसाल भी इससे ही जुड़ा है। कबीर ने भी कई जगह ब्रह्मनाद के लिए अनहद बाजा या गगन दमामा शब्द का प्रयोग किया है। शिवजी का प्रिय वाद्य डमरू इससे ही बना है।
 
डमरू के आकार को अगर देखें तो इसमें दो बेहद छोटे नक्कारे एक दूसरे की पीठ से जुडे नज़र आते हैं और लकड़ी की शलाकाओं की जगह चमड़े पर आघात का काम सूत की गठान लगी दो लड़ियां करती हैं। डमरू की आवाज़ को डमडम और इस क्रिया को डुगडुगी कहते हैं। किसी बात के प्रचार या घोषणा के लिए डुगडुगी पीटना मुहावरा भी संदेश प्रणाली से जुड़ रहा है।
 
 
 
नगाड़े के लिए एक खास देशी शब्द भी है जिसे ढोल कहते हैं। यह मूल रूप से संस्कृत से निकला है जहां इसका रूप है ढौलः जिसका मतलब होता है मृदंगम्, ढपली आदि। ढोल के छोटे रूप को ढोलक कहते हैं । और छोटे रूप का नाम हो जाता है ढोलकी। नगाड़ा जहां सांगीतिक वाद्य नज़र नहीं आता वहीं ढोलक अपने आप में परिपूर्ण ताल वाद्य है। इस ढोल से भी मुहावरे निकले हैं मसलन ढोल की पोल, दूर के ढोल सुहावने वगैरह। शादी ब्याह में ढोल बजाना मांगलिक माना जाता है। ढोल बजानेवालों को ढोली कहा जाता है।
 
  
 
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08:01, 1 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

नगाड़ा

नगाड़ा या 'नक्कारा' प्राचीन समय से ही प्रमुख वाद्य यंत्र रहा है। इसे लोक उत्सवों के अवसर पर बजाया जाता है। होली के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों में इसका विशेष प्रयोग होता है। नगाड़े में जोड़े अलग-अलग होते हैं, जिसमें एक की आवाज़ पतली तथा दूसरे की आवाज़ मोटी होती है। इसे बजाने के लिए लकड़ी की डंडियों से पीटकर ध्वनि निकाली जाती है। निचली सतह पर नगाड़ा पकी हुई मिट्टी का बना होता है। यह भारत का बहुत ही लोकप्रिय वाद्य है।

शब्द का अर्थ

'नगाड़ा' शब्द फ़ारसी और उर्दू के साथ हिन्दी में शामिल हुआ। हिन्दी में इसका एक रूप 'नगारा' भी है। इस शब्द का शुद्ध रूप है- "नक्कारः", जिसका उर्दू में उच्चारण 'नक्कारा' है। इस प्रकार इसका हिन्दी रूप 'नगाड़ा' या 'नगारा' है। नक्कारः मूल रूप से अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है- धौसा, भेरी, दुंदुभि आदि। भारतीय भाषाओं में यह शब्द इस्लामी समय में आया। अरबी में एक धातु है 'नक्र', जिसका अर्थ है- 'किसी चीज को पीटना' या 'ठोकना' आदि। नगाड़ा एक ऐसा वाद्य है, जो चमड़े के पर्दे से ढका रहता है और इस चमड़े के पर्दे पर लकड़ी की दो छोटी छड़ों से प्रहार किया जाता है, जिससे जोरदार ध्वनि पैदा होती है।[1]

ऐतिहासिक तथ्य

वास्तव में नक्कारा या नगाड़ा संदेश प्रणाली से जुड़ा हुआ शब्द है। दरअसल शासन की महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ आम जनता तक पहुँचाने के लिए नक्कारची[2] होता था, जो सरे बाज़ार नगाड़ा पीटते हुए किसी सरकारी फरमान की घोषणा करता था। इसी तरह सेनाएँ जब कूच करती थीं तो भी नगाड़े बजाए जाते थे, ताकि सबको खबर हो जाये। मुग़लों के दरबार में एक नक्कारखाना होता था, जिसमें अहम सरकारी फैसले सुनाए जाते थे। फैसलों की तरफ़ ध्यान आकर्षित करने के लिए ज़ोर-ज़ोर से नक्कारे बजाए जाते थे, जिससे सबका ध्यान उस ओर लग जाए। ऐसी मुनादियों में लोगों को सजाएँ देने से लेकर घर की कुर्की कराने जैसी बातें भी होती थीं।

अन्य नाम

इस वाद्य यंत्र का एक अन्य नाम 'दमामा' भी है। विशाल नक्कारे या धौंसा को ही 'दमामः' कहा जाता है, जिसे उर्दू-हिन्दी में 'दमामा' कहा गया। यह फ़ारसी भाषा के 'दमाँ' से बना है, जिसका अर्थ होता है- 'क्रोध में चिंघाड़ना', 'दहाड़ना' या 'तेज आवाज़ करना' आदि। बाढ़ और तीव्र प्रवाह वाली ध्वनियों के लिए भी यह शब्द प्रयोग में लाया जाता है। संस्कृत की डम् धातु से दमाँ की समानता है, जिसका अर्थ भी ध्वनि करना है। 'दमादम' भी इसी मूल का शब्द है, जिसका अर्थ 'लगातार' अथवा 'मुसलसल' है। सिक्खों का पवित्रतम स्थान 'दमदमी टकसाल' भी इससे ही जुड़ा है। कबीर ने भी कई जगह ब्रह्मनाद के लिए अनहद बाजा या गगन दमामा शब्द का प्रयोग किया है। भगवान शिव का प्रिय वाद्य डमरू इससे ही बना है। डमरू के आकार को यदि ध्यान से देखा जाए तो इसमें दो बेहद छोटे नक्कारे एक दूसरे की पीठ से जुडे हुए नज़र आते हैं। लकड़ी की शलाकाओं की जगह चमड़े पर आघात का काम सूत की गठान लगी दो लड़ियाँ करती हैं। डमरू की आवाज़ को डमडम और इस क्रिया को डुगडुगी कहते हैं। किसी बात के प्रचार या घोषणा के लिए 'डुगडुगी पीटना' मुहावरा भी संदेश प्रणाली से जुड़ा रहा है।[1]

नगाड़े के लिए एक विशेष देशी शब्द भी है, जिसे ढोल कहते हैं। यह मूल रूप से संस्कृत से निकला है। ढोल के छोटे रूप को ढोलक कहते हैं। इसी के छोटे रूप का नाम ढोलकी होता है। नगाड़ा जहाँ सांगीतिक वाद्य नज़र नहीं आता, वहीं ढोलक अपने आप में परिपूर्ण ताल वाद्य है। ढोल शब्द से भी कई मुहावरे निकले हैं, जैसे- 'ढोल की पोल', 'दूर के ढोल सुहावने' आदि। विवाह आदि में ढोल बजाना मांगलिक माना जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 नगाड़ा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 22 जनवरी, 2013।
  2. नगाड़ा बजाने वाला व्यक्ति

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