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07:58, 16 अप्रैल 2011 का अवतरण

  • नाल प्राक् सैन्धव स्थल तथा एक सांस्कृतिक परम्परा के रूप में जाना जाने वाला यह नगर दक्षिणी बलूचिस्तान में स्थित है।
  • यहाँ से प्राप्त मृद्भाण्ड परम्परागत पाण्डु रंग के हैं किंतु उनमें सफ़ेद पट्टी मिलती है।
  • नाल में आवास निर्माण के लिए अनगढ़ पत्थर तथा मिट्टी की ईंटों का प्रयोग किया गया है।
  • शवाधान मकानों के अन्दर ही निर्मित किए जाते थे तथा शवाधानों के साथ अनेक दैनिक जीवन की वस्तुएँ, यथा-मृद्भाण्ड, छैनी, ताँबे की कुल्हाड़ी आदि रख दी जाती थी, जो सम्भवत पारलौकिक जीवन में विश्वास का प्रतीक है।
  • नाल के विशिष्ट पुरावशेषों में सेलखड़ी की मुहर,ताँबे की मुहर, छिद्रित प्रस्तर बाट,ताँबे के विभिन्न उपकरण तथा अर्द्ध बहुमूल्य पत्थरों के मनके उल्लेखनीय हैं।
  • नाल महत्व इस बात में है कि यहाँ से मिलते-जुलते मृद्भाण्ड आभरी (सिन्ध) तथा मुण्डीगाक (अफगानिस्तान) से भी प्राप्त हुए हैं, जो इस बात का साक्ष्य है कि विभिन्न स्थानीय संस्कृतियाँ एक दूसरे को प्रभावित कर रही थी और यह लम्बे समय से चले आ रहे सम्पर्कों के कारण ही सम्भव था।
  • यहाँ मिट्टी के बर्तनों पर कूबड़दार बैल एवं पीपल के चिह्नों का प्रयोग किया गया है,जो विकसित हड़प्पा काल में भी जारी रहा।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ