नीचगिरि

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:45, 23 जून 2017 का अवतरण (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

नीचगिरि का उल्लेख कालीदास के 'मेघदूत'[1] में हुआ है, जिसके अनुसार इसे एक पहाड़ी बताया गया है-

'नीचैराख्यं गिरिमधिवसेस्तत्र विश्रामहेतोस्त्वत् संपर्कात् पुलकितमिवप्रौढ़ पुष्पै: कदंवै:, य: पण्यस्त्री रतिपरिमलोद्गारिभिर्नागराणामुद्दामानि प्रथयति शिलावेश्मभियौवनानि'

  • कालिदास ने नीचगिरि का उल्लेख विदिशा के पश्चात् किया है और सर जॉन मार्शल का अनुमान है कि शायद कालिदास ने वर्तमान सांची के स्तूप की पहाड़ी को ही नीचगिरि माना है।[2]
  • विदिशा के उत्कर्ष काल में सांची की पहाड़ी पर अवश्य ही इस विलासवती नगरी का क्रीडाद्यान रहा होगा। सांची, विदिशा से चार-पांच मील दूर है।
  • महावंश[3] में जिस पहाड़ी को दक्षिणगिरि कहा है वह नीचगिरि ही जान पड़ती है।
  • 'नीच' और दक्षिण शब्द समानार्थक भी हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 504 |

  1. (पूर्वमेघ 27)
  2. ए गाइड टू सांची
  3. आनंद कौसल्यायन की टीका, पष्ठ 68

संबंधित लेख