पंचशील समझौता

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पंचशील समझौता (अंग्रेज़ी: Panchsheel Treaty or Panchsheel Agreement) 29 अप्रैल, 1954 को भारत और चीन के बीच हुआ था। आजादी के बाद से ही चीन, भारत की विदेश नीति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना जाता रहा है। भारत और चीन के बीच लगभग 3,500 कि।मी। की सीमा रेखा है। सीमा को लेकर दोनों देशों के बीच कई मतभेद हैं, जिसके चलते बीच-बीच में दोनों देशों में तनाव पैदा हो जाता है। भारत-चीन के बीच जब भी तनाव पैदा होता तो पंचशील सिद्धांत की बात जरूर आती है।

इतिहास

भारत 1947 में आजाद हुआ और उसके ठीक दो साल बाद चीन 'पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना' के नाम से एक साम्यवादी देश बना। दोनों देशों का मौजूदा सफ़र एक साथ ही शुरू हुआ। चीन ने 1950 में एक बड़ी घटना को अंजाम दिया। चीन ने भारत और उसके बीच अलग आजाद मुल्क तिब्बत पर हमला कर दिया और देखते-ही-देखते उस पर कब्ज़ा कर लिया। चीन ने तिब्बत को अपना एक राज्य घोषित कर दिया। तिब्बत के भारत और चीन में होने के कारण दोनों देशों में हमेशा फासला रहा था। चीन के इस कब्जे ने उस फासले को हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया और अब तक जो शरहद सिर्फ कश्मीर के एक छोटे से हिस्से तक ही सीमित थी, वह बढ़कर आज के उत्तराखंड से लेकर भारत के उत्तर-पूर्व तक फ़ैल गई थी।

साफ़ था कि तिब्बत पर चीन के कब्जे का असर सबसे ज्यादा भारत पर पड़ने वाला था। तिब्बत पर चीन के कब्जे ने भारत के सुरक्षा के लिए नए सवाल खड़े कर दिए। जवाहरलाल नेहरू ने इस पर बयान दिया कि चीन के साथ हमें अपनी दोस्ती में ही सुरक्षा ढूँढनी चाहिए। प्रधानमंत्री नेहरू तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद भी सीमा का मामला उठाने के लिए तैयार नहीं थे। प्रधानमंत्री की यह सोच थी कि जब तक चीन अपनी तरफ से सीमा का मामला नहीं उठाता, इसके बारे में किसी भी स्तर पर बातचीत की जरुरत नहीं है। गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल ने चीन के मामले पर 1950 में एक चिट्ठी प्रधानमंत्री नेहरू जी को लिखी थी। उन्होंने लिखा था कि- "चीन ने हमारे देश के साथ धोखा और विश्वासघात किया है। चीन असम के कुछ हिस्सों पर भी नज़र गड़ाए हुए है। समस्या का तत्काल समाधान करें।"

सीमा रेखा

तब के नेफा (NEFA- North-East Frontier Agency) और आज के अरुणाचल प्रदेश की सीमा जो चीन से लगती है, उसे मैकमोहन रेखा कहते हैं, जिसे शिमला में ब्रिटिश इंडिया, तिब्बत और चीन ने 1914 में मिलकर तय किया था। चीन की सरकार इसे जबरन तैयार की गई सीमा रेखा मानती थी। भारत के स्वतंत्रता के बाद इस सीमा को लेकर चीन ने चुप्पी साधी हुई थी। 1952 में भारत और चीन के बीच इस मामले को लेकर मीटिंग हुई, जिसमें भारत जानना चाहता था कि आखिर चीन के मन में चल क्या रहा है? भारत ने चीन की चुप्पी को चीन की सहमति समझा। भारत समझने लगा कि मैकमोहन रेखा के विषय में चीन को कोई दिक्कत नहीं है। पर बात यहीं नहीं रुकी।

समझौता

29 अप्रैल, 1954 को भारत ने उस संधि पर दस्तखत कर दिया, जिसे पंचशील समझौता कहा जाता है। इसमें शान्ति के साथ-साथ रहने और दोस्ताना सम्बन्ध की बात कही गई थी। पंचशील शब्द ऐतिहासिक बौद्ध अभिलेखों से लिया गया है। बौद्ध अभिलेखों में भिक्षुओं के व्यवहार को निर्धारित करने के लिए पंचशील नियम मिलते हैं। बौद्ध अभिलेखों से ही भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने पंचशील शब्द को चुना था। 31 दिसंबर, 1953 और 29 अप्रॅल, 1954 को हुई बैठक के बाद भारत-चीन ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौते के प्रस्तावना में इन पाँच बातों का उल्लेख किया गया था-

  1. एक दूसरे की अखंडता और संप्रुभता का सम्मान
  2. एक दूसरे पर आक्रमण न करना
  3. एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना
  4. सामान और परस्पर लाभकारी सम्बन्ध
  5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व

इस समझौते के तहत भारत ने तिब्बत को चीन का एक क्षेत्र स्वीकार कर लिया। इस तरह उस समय इस संधि ने भारत और चीन के संबंधों के तनाव को काफ़ी हद तक दूर कर दिया था। भारत को 1904 की ऐंग्लो तिबतन संधि के तहत तिब्बत के संबंध में जो अधिकार मिले थे, भारत ने वे सारे इस संधि के बाद छोड़ दिए, हालाँकि बाद में ये भी सवाल उठे कि इसके एवज में भारत ने सीमा संबंधी सारे विवाद निपटा क्यों नहीं लिए। मगर इसके पीछे भी भारत की मित्रता की भावना मानी जाती है कि उसने चीन के शांति और मित्रता के वायदे को मान लिया और निश्चिंत हो गया।

पंडित नेहरू ने अप्रैल 1954 में संसद में इस संधि का बचाव करते हुए कहा था, "ये वहाँ के मौजूदा हालात को सिर्फ़ एक पहचान देने जैसा है। ऐतिहासिक और व्यावहारिक कारणों से ये क़दम उठाया गया।" उन्होंने क्षेत्र में शांति को सबसे ज़्यादा अहमियत दी और चीन में एक विश्वसनीय दोस्त देखा। इसके बाद भी जब भारत और चीन संबंधों की बात होती है, तब इस सिद्धांत का उल्लेख ज़रूर होता है। इस संधि को भले ही 1962 में ज़बरदस्त चोट पहुँची हो, लेकिन अंतरराष्ट्रीय संबंधों में इसका अमर दिशानिर्देशक सिद्धांत हमेशा जगमगाता रहेगा।

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