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'''पारिजात''' या 'हारसिंगार' उन प्रमुख वृक्षों में से एक है, जिसके [[फूल]] ईश्वर की आराधना में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। [[हिन्दू धर्म]] में इस वृक्ष को बहुत ही ख़ास स्थान प्राप्त है। पारिजात का वृक्ष बड़ा ही सुन्दर होता है, जिस पर आकर्षक व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग विविध प्रकार की औषधि आदि के रूप में भी किया जाता है। यह सारे [[भारत]] में पैदा होता है।
 
'''पारिजात''' या 'हारसिंगार' उन प्रमुख वृक्षों में से एक है, जिसके [[फूल]] ईश्वर की आराधना में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। [[हिन्दू धर्म]] में इस वृक्ष को बहुत ही ख़ास स्थान प्राप्त है। पारिजात का वृक्ष बड़ा ही सुन्दर होता है, जिस पर आकर्षक व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग विविध प्रकार की औषधि आदि के रूप में भी किया जाता है। यह सारे [[भारत]] में पैदा होता है।
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पारिजात का वृक्ष दस से पन्द्रह फीट ऊँचा होता है। किसी-किसी स्थान पर इसकी ऊँचाई पच्चीस से तीस फीट तक भी होती है। यह वृक्ष सम्पूर्ण [[भारत]] में उगता है। विशेष रूप से पारिजात बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है। इसके फूल बड़े ही आकर्ष्क होते हैं। इस वृक्ष की यह विशेषता भी है कि इसमें फूल बहुत बड़ी मात्रा में लगते हैं। चाहे फूल प्रतिदिन तोड़े जाएँ, किंतु फिर भी अगले दिन फूल बड़ी मात्रा में लगते हैं। यह वृक्ष मध्य भारत और [[हिमालय]] की नीची तराइयों में अधिक पैदा होता है।
  
 
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11:06, 3 अप्रैल 2013 का अवतरण

पारिजात या 'हारसिंगार' उन प्रमुख वृक्षों में से एक है, जिसके फूल ईश्वर की आराधना में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। हिन्दू धर्म में इस वृक्ष को बहुत ही ख़ास स्थान प्राप्त है। पारिजात का वृक्ष बड़ा ही सुन्दर होता है, जिस पर आकर्षक व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग विविध प्रकार की औषधि आदि के रूप में भी किया जाता है। यह सारे भारत में पैदा होता है।

परिचय

पारिजात का वृक्ष दस से पन्द्रह फीट ऊँचा होता है। किसी-किसी स्थान पर इसकी ऊँचाई पच्चीस से तीस फीट तक भी होती है। यह वृक्ष सम्पूर्ण भारत में उगता है। विशेष रूप से पारिजात बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है। इसके फूल बड़े ही आकर्ष्क होते हैं। इस वृक्ष की यह विशेषता भी है कि इसमें फूल बहुत बड़ी मात्रा में लगते हैं। चाहे फूल प्रतिदिन तोड़े जाएँ, किंतु फिर भी अगले दिन फूल बड़ी मात्रा में लगते हैं। यह वृक्ष मध्य भारत और हिमालय की नीची तराइयों में अधिक पैदा होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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