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*पवित्र घोष अथवा [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] (प्र+णु स्तवने+अप्) इसका प्रतीक रहस्यवादी पवित्र अक्षर 'ऊँ' है और इसका पूर्ण विस्तार 'ओ३म्' रूप में होता है।  
 
*पवित्र घोष अथवा [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] (प्र+णु स्तवने+अप्) इसका प्रतीक रहस्यवादी पवित्र अक्षर 'ऊँ' है और इसका पूर्ण विस्तार 'ओ३म्' रूप में होता है।  
 
*यह शब्द [[ब्रह्म]] का बोधक है; जिससे यह विश्व उत्पन्न होता है, जिसमें स्थित रहता है और जिसमें इसका लय हो जाता है।  
 
*यह शब्द [[ब्रह्म]] का बोधक है; जिससे यह विश्व उत्पन्न होता है, जिसमें स्थित रहता है और जिसमें इसका लय हो जाता है।  
*यह विश्व नाम-रूपात्मक है, उसमें जितने पदार्थ हैं, इनकी अभिव्यक्ति वर्णों अथवा अक्षरों से होती है। जितने भी वर्ण हैं वे अ (कण्ठ्य [[स्वर (व्याकरण)|स्वर]]) और म् (ओष्ठ्य [[व्यजंन (व्याकरण)|व्यजंन) के बीच उच्चारित होते हैं।
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*यह विश्व नाम-रूपात्मक है, उसमें जितने पदार्थ हैं, इनकी अभिव्यक्ति वर्णों अथवा अक्षरों से होती है। जितने भी वर्ण हैं वे अ (कण्ठ्य [[स्वर (व्याकरण)|स्वर]]) और म् (ओष्ठ्य [[व्यजंन (व्याकरण)|व्यजंन]]) के बीच उच्चारित होते हैं।
 
*इस प्रकार 'ओम्' सम्पूर्ण विश्व की अभिव्यक्ति, स्थिति और प्रलय का द्योतक है।  
 
*इस प्रकार 'ओम्' सम्पूर्ण विश्व की अभिव्यक्ति, स्थिति और प्रलय का द्योतक है।  
 
*यह पवित्र और मांगलिक माना जाता है, इसलिए कार्यारम्भ और कार्यान्त में यह उच्चारित अथवा अंकित होता है।  
 
*यह पवित्र और मांगलिक माना जाता है, इसलिए कार्यारम्भ और कार्यान्त में यह उच्चारित अथवा अंकित होता है।  

12:31, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण

  • पवित्र घोष अथवा शब्द (प्र+णु स्तवने+अप्) इसका प्रतीक रहस्यवादी पवित्र अक्षर 'ऊँ' है और इसका पूर्ण विस्तार 'ओ३म्' रूप में होता है।
  • यह शब्द ब्रह्म का बोधक है; जिससे यह विश्व उत्पन्न होता है, जिसमें स्थित रहता है और जिसमें इसका लय हो जाता है।
  • यह विश्व नाम-रूपात्मक है, उसमें जितने पदार्थ हैं, इनकी अभिव्यक्ति वर्णों अथवा अक्षरों से होती है। जितने भी वर्ण हैं वे अ (कण्ठ्य स्वर) और म् (ओष्ठ्य व्यजंन) के बीच उच्चारित होते हैं।
  • इस प्रकार 'ओम्' सम्पूर्ण विश्व की अभिव्यक्ति, स्थिति और प्रलय का द्योतक है।
  • यह पवित्र और मांगलिक माना जाता है, इसलिए कार्यारम्भ और कार्यान्त में यह उच्चारित अथवा अंकित होता है।
  • वाजसनेयी संहिता, तैत्तिरीय संहिता, मुंण्डकोपनिषद तथा रामतापनीय उपनिषद में 'ओम्' के अर्थ और महत्व का विशद विवेचन पाया जाता है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ