"प्रयोग:कविता सा.-2" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
कविता भाटिया (चर्चा | योगदान) |
कविता भाटिया (चर्चा | योगदान) |
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<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
− | {एक | + | {सामान्य अखबार में एक कॉलम का चौड़ाई- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-165,प्रश्न-58 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | + | + | -1.5 सेमी. |
− | + | +4.5 सेमी. | |
− | - | + | -5.4 सेमी. |
− | - | + | -5.6 सेमी. |
− | ||एक | + | ||सामान्यतया अखबार में एक कॉलम की चौड़ाई लगभग 4 सेमी. होती है। यदि दोनों कॉलमों के अंतर को जोड़ दिया जाए तो चौड़ाई लगभग 4.5 सेमी. हो जाएगी। ध्यातव्य है कि 'Heckry's Bengal Gazette' [[भारत]] का प्रथम प्रमुख समाचार-पत्र था, जो वष 1780 में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ। |
− | { | + | {निम्न में से मोम का प्रयोग कर किस विधि में चित्रण कार्य किया जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-173,प्रश्न-55 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | - | + | -कोलॉज चित्रण |
− | - | + | -भित्ति चित्रण |
− | - | + | +बाटिक चित्रण |
− | + | -फैब्रिक चित्रण | |
− | || | + | ||मोम का प्रयोग कर बाटिक विधि से चित्रण कार्य किया जाता है। बाटिक चित्रण एक प्राचीन कला है। इस चित्रण में पहले कपड़े पर पिघले मोम से आकृति बनाई जाती है। शेष हिस्सों को लाख के रंगों से रंजित करने के बाद मोम द्वारा हटाया जाता है। इसे 'बंधक' कहा जाता है। |
− | { | + | {चित्रों में घटक रंगों का प्रयोग किसने किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-87,प्रश्न-73 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | + | +[[जामिनी राय]] | |
− | -[[ | + | -[[अमृता शेरगिल]] |
− | + | -के.के. हेब्बर | |
− | + | -[[नंदलाल बोस]] | |
− | || | + | ||जामिनी राय ने बंगाल की अल्पना, खिलौनों तथा पटुआ व कालीघाट चित्रण से प्रेरणा लेकर चित्रण किया। |
− | { | + | {'बिंदु चित्रण-पद्धति' आरंभ करने वाले कलाकार का नाम बताएं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-121,प्रश्न-46 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | - | + | -डेंगा |
− | + | -रेंवार | |
− | - | + | -वान गॉग |
− | + | +सोरा | |
− | + | ||नवप्रभाववाद के प्रेणेता सोरा का जन्म [[1859]] ई. में [[पेरिस]] में हुआ। उन्होंने कला का अध्ययन वहां के 'एकोल द बोजार' में प्राप्त किया। सन् 1884 में उन्होंने अपने विख्यात चित्र 'ग्रांद जात्त द्वीप में रविवासरीय अपराह्व' को आरंभ किया तथा [[1886]] ई. में उसे पूर्ण करके 'सलों द अंदेपांदा' में प्रदर्शित किया। सोरा की रंगांकन पद्धति को 'बिंदुवादी पद्धति' भी कहा जाता है। | |
− | {[[ | + | {[[चित्रकला]] में किसका महत्त्व अधिक है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-163,प्रश्न-41 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | - | + | -प्रकृति |
− | +[[ | + | -रेखा |
− | - | + | +[[रंग]] |
− | + | -परिप्रेक्ष्य | |
− | + | ||[[चित्रकला]] में रंग का सर्वाधिक महत्त्व है, [[रंग]] से ही रूप चित्रित किया जाता है। चित्र में भाव की अभिव्यक्ति के साथ सादृश्य उपस्थित करने के लिए भी रंग का पूर्ण ज्ञान और उचित प्रयोग अति आवश्यक है। | |
− | {[[ | + | {राज्य [[ललित कला अकादमी]], [[उत्तर प्रदेश]] की 21वीं कला प्रदर्शनी में '[[ललित कला अकादमी पुरस्कार|अकादमी पुरस्कार]]' प्राप्त हुआ है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-198,प्रश्न-99 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | - | + | -राम शब्द सिंह -सहारनपुर को |
− | - | + | -रोशन-गोरखपुर |
− | - | + | -एस. प्रणम सिंह-वारणसी को |
− | + | + | +अभय द्विवेदी-कानपुर को |
− | || | + | ||राज्य [[ललित कला अकादमी]], उत्तर प्रदेशी की 21 वीं कला प्रदर्शनी में चित्रकारी के लिए रोशन ([[गोरखपुर]]) को 'अकादमी' पुरस्कार' मिला था। अभी हाल ही में आयोजित वर्ष 2011-12 में 30वीं कला प्रदर्शनी में यह पुरस्कार इन व्यक्तियों को प्राप्त हुआ है- मैनाज बानो (लखनऊ), सुनील कुमार ([[आगरा]]), वेदप्रकाश पौआल (आगरा), ईश्वरचंद्र ([[लखनऊ]]) भूपेंद्र कुमार अस्थाना (आजमगढ़), संजीव किशोर गौतम (वाराणसी), पंकज वर्मा (बाराबंकी), राजीव प्रताप सिंह (लखनऊ), सत्येंद्र कुमार (वाराणसी) तथा गणेश शंकर मिश्रा (लखनऊ)। |
− | {' | + | {'स्वर्णिम विभाजन सिद्धांत' का प्रतिपादन किन कलाकारों ने की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-175,प्रश्न-65 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | - | + | -भारतीय |
− | + | -यूरोपियन | |
− | - | + | -अमेरिकन |
− | + | +यूनानी | |
− | ||' | + | ||'स्वर्णिम विभाजन सिद्धांत' का प्रतिपादन यूनानी कलाकारों ने किया। 'स्वर्णिम विभाजन का सिद्धांत' सुंदरता की व्याख्या करने का एक अलग सूत्र था। जिसे अलग-अलग नामों के द्वारा जाना जाता है। जैसे डिवाइन प्रपोर्शन, गोल्डेन नंबर, गोल्डेन मीन, गोल्डेन सेक्शन आदि। |
− | { | + | {मोनोक्रोम है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-163,प्रश्न-47 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | - | + | -रंगो की विभिन्न तान |
− | - | + | +एक ही रंग की विभिन्न तान |
− | + | -दो रंगों का मिश्रण | |
− | - | + | -रंगों का गाढ़ापन |
− | || | + | ||मोनोक्रोम एक रंग की पेंटिंग, ड्राइंग, डिजाइन या एक रंग में तस्वीरों अथवा रंगों का वर्णन है। यानि मोनोक्रोम में एक ही रंग की विभिन्न तानों का प्रस्तुतीकरण होता है। |
− | { | + | {लियोनार्दो के गुरु थे- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-109,प्रश्न-44 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | + | + | +वेराशियो |
− | - | + | -आंद्रे मांतेग्ना |
− | - | + | -बर्नार्डो रोजेलिनो |
− | - | + | -सांद्रो बोत्तिचेल्लो |
− | || | + | ||आंद्रिया देल वेराशियोएक इटैलियन चित्रकार, मूर्तिकार तथा स्वर्णकार थे। इनके तीन प्रमुख शिष्य थे- लियोनार्डो द विंसी, पेट्रो पेरूगीनो तथा लारेन्जों डी. क्रेडी। |
+ | |||
+ | {'सन फ्लावर' प्रसिद्ध चित्र किसने निर्मित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-122,प्रश्न-57 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -रूबेन्स | ||
+ | -रेम्ब्रां | ||
+ | +वान गॉग | ||
+ | -रेन्वार | ||
+ | ||'सूरजमुखी के फूल' का चित्र विन्सेंट वान गॉग द्वारा चित्रित एक प्रसिद्ध चित्र है। वर्तमान में यह चित्र नेशनल गैलरी (लंदन) में रहा हुआ है। | ||
+ | |||
+ | {निम्नलिखित में से कौन लिथोग्राफिक पोस्टरों के लिए विख्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-176,प्रश्न-77 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -एडवर्ड माने | ||
+ | +जुल्स चर्ट | ||
+ | -एडगर देगा | ||
+ | -पियरे अॅगुस्त रेन्वार | ||
+ | ||जुल्स चर्ट लिथोग्राफिक पोस्टरों के लिए विख्यात हैं। जुल्स चर्ट को 'रंग लिथोग्राफ का पिता' तथा 'पोस्टर कला' के लिए जाना जाता है। इन्हें आधुनिक विज्ञापन के लिए 'मास्टर' कहा जाता है। उनकी पेंटिंग्स व्यावसायिक कला के दायरे से बाहर थी। वे अपने साथी कलाकारों देगा तथा माने की कला से प्रभावित थे। लीथोग्राफी, ग्राफिक कला की एक विधा है। | ||
+ | |||
+ | {'ताश के खिलाड़ी' चित्र किसने चित्रित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-124,प्रश्न-69 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +सेजां | ||
+ | -पिकासो | ||
+ | -मोने | ||
+ | -मेंच | ||
+ | ||पॉल सेजां का जन्म 1839ई. में एजा प्रिवांस में हुआ था। बीसवीं सदी की कला पर सेजां का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा, इसलिए इन्हें 'आधुनिक कला का जन्मदाता' कहा जाता है। चित्रकार सोरा, वान गॉग एवं गॉगिन, सेजां आदि थे जिन्हें उत्तर प्रभाववादी के नाम से विश्लेषित किया गया। ये सभी कलाकार प्रभाववाद से असंतुष्ट थे। सेजां ने अपने अधिकांश विख्यात चित्र 1870 ई. से 1900 ई. के मध्य बनाए। | ||
+ | |||
+ | {कोलॉज चित्र का माध्यम क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-168,प्रश्न-17 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -भूसा | ||
+ | -गोबर | ||
+ | -बुरादा | ||
+ | +कागज की कतरन | ||
+ | |||
+ | {सुमित्रानन्दन पंत क्या था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-183,प्रश्न-17 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -चित्रकार | ||
+ | -मूर्तिकार | ||
+ | +कवि | ||
+ | -संग़ीतकार | ||
+ | ||सुमित्रानन्दन पंत कवि थे। वे हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक थे। इनका जन्म 20 मई, 1900 में कौसानी (वर्तमान उत्तराखंड) में तथा 28 दिसंबर, 1977 में इलाकाबाद में निधन हो गया। | ||
+ | |||
+ | {सी.वी. रमन को नोवेल पुरस्कार किस लिए दिया गया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-190,प्रश्न-48 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +रमन प्रभाव | ||
+ | -रमन विज्ञान | ||
+ | -रमन रसायन | ||
+ | -इनमें से कोई नहीं | ||
+ | ||चंद्रशेखर वेंकट रमन (सी.वी. रमन) को 28 फरवरी, 1928 ई. को 'रमन प्रभाव' की खोज के लिए वर्ष 1930 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। इनका जन्म तिरुचिरापल्ली में 7 नवंबर 1888 ई. को हुआ। वर्ष 1926 में उन्होंने 'इंडियन जर्नल ऑफ़ फिजिक्स' की स्थापना की थी। | ||
+ | |||
+ | {गांधार शैली मिश्रण है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-218,प्रश्न-239 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -भारतीय-ईरानी | ||
+ | +ग्रेको-रोमन | ||
+ | -भारतीय-चीनी | ||
+ | -ग्रीको-ईरानी | ||
+ | ||भारतीय और यूनानी आकृति की सम्मिश्रण शैली गांधार शैली है। इस मूर्तिकला शैली के प्रमुख संरक्षक शक एवं कुषाण थे। गांधार कला शैली कुषाणों के समय पनपी थी। गांधार कला पाकिस्तान एवं पूर्वी अफगानिस्तान के बीच विकसित हुई। भारत में यह कला कुषाण वंश के दौरान फली-फूली तथा कुषाण कला का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गई। इन कला का विषय मात्र बौद्ध होने के कारण इसे 'यूनानी बौद्ध', 'इंडो-ग्रीक', या 'ग्रीको-रोमन' भी कहा जाता है। | ||
+ | |||
+ | {उत्तर प्रदेश में दृश्य कला गतिविधियों के लिए कौन-सी सर्वोच्च संस्था है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-170,प्रश्न-28 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -संगीत नाटक अकादमी | ||
+ | -ललित कला अकादमी | ||
+ | +राज्य ललित कला अकादमी | ||
+ | -राज्य संस्कृति केंद्र | ||
+ | ||राज्यललित कला अकादमी (लखनऊ), उत्तर प्रदेश में दृश्य कला गतिविधियों के लिए सर्वोच्च संस्था है। इसकी स्थापना वर्ष 1926 में की गई थी। | ||
+ | |||
+ | {'ढ़ाई दिन का झोपड़ा' कहां है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-195,प्रश्न-74 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +अजमेर | ||
+ | -अहमदाबाद | ||
+ | -उदयपुर | ||
+ | -जोधपुर | ||
+ | ||'ढाई दिन का झोपड़ा' राजस्थान के अजमेर में स्थित है। यह मूलत: एक मंदिर था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे तोड़वाकर इसके स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया जिसे ढाई दिन का झोपड़ा गया। इसकी दीवारों पर बीसलदेव द्वारा रचित हरिकेल नाटक की कुछ पंक्तियां आज भी उत्कीर्ण हैं। | ||
+ | |||
+ | {'ढोलामारू' चित्र का संबंध निम्न में से किससे है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-207,प्रश्न-166 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -किशनगढ़ | ||
+ | +मेवाड़ | ||
+ | -उदयपुर | ||
+ | -जोधपुर | ||
+ | ||ढोलामारू 11वीं शताब्दी में रचित एक लोक-भाषा काव्य है। मूलत: दोहों में रचित इस लोक काव्य को सत्रहवीं शताब्दी में कुशलराय वाचक ने कुछ चौपाइयां जोड़कर विस्तार दिया। इसमें नटवर के राजकुमार ढोला और राजकुमारी मारू की प्रेमकथा का वर्णन है। ढोलामारू का चित्र मेवाड़ क्षेत्र से संबंधित है जिस पर राजा और रानी को ऊंट पर सवार चित्रित किया गया है। | ||
+ | |||
+ | {प्रसिद्ध टीवी प्रोग्राम आर्ट-अटैल आता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-236,प्रश्न-375 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +डिज्नी पर | ||
+ | -हंगामा पर | ||
+ | -पोगो पर | ||
+ | -जेटिक्स पर | ||
+ | ||टी.वी. प्रोग्राम 'आर्ट-अटैक' ब्रिटिश बच्चों का एक टी.वी. प्रोग्राम है जो डिज्नी जूनियर चैनल पर प्रसारित होता है। | ||
+ | |||
+ | {भीमबेटका की शिला उत्कीर्ण चित्रकारी किस अवधि की है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-11 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -निओलिथिक | ||
+ | +पैलिओलिथिक | ||
+ | -चैलकोलिथिक | ||
+ | -मेसोलिथिक | ||
+ | ||भीमबेटका से प्राप्त होने वाले चित्रों की विषय-वस्तु से पूर्वपाषाण कालीन (Paleolithic) मानव-जीव के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश पड़ता है। इनमें शिकार के दृश्यों की बहुतायत है, जिनमें से कुक्च चित्रों में शिकारियों के मुख पर मुखौटा है | ||
+ | |||
+ | {आध की गुफा में कितनी गुफाएं हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-27,प्रश्न-33 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -5 | ||
+ | -8 | ||
+ | -7 | ||
+ | +9 | ||
+ | ||बाघ की कुल नौ गुफाएं हैं, जिसके प्रमुख समुख भाग की लंबाई 750 फीट है। यह समुद्र तल से 850 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पहली गुफा 'गृह' है जिसका क्षेत्रफल 23x14 फीट है। 1818 ई. में सर्वप्रथम बाध गुफाओं का परिचय तथा विवरण लेफ्टीनेंट डेंजरफील्ड ने बंबई से प्रकाशित 'साहित्यिक विनिमय संघ' की पत्रिका के द्वितीय अंल में छपवाया था। वर्ष 1907-1908 के मध्य कर्नल सी. ई. लुआर्ड ने इन गुफाओं का निरीक्षण किया और ये चित्र पुन: प्रकाश में आए। | ||
+ | |||
</quiz> | </quiz> | ||
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11:18, 14 दिसम्बर 2017 का अवतरण
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