प्लेग

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प्लेग का परिचय

प्लेग (Pleague) रोग - एक बहुत ही खतरनाक और एक महामारी का रोग है। यह एक प्रकार का संक्रामक रोग है। अगर संक्रमण की शुरुआत में ही इलाज नहीं किया जाए तो ये बीमारी घातक भी साबित हो सकती है, इस रोग को और भी कई नामों से जाना जाता हैं जैसे - ताऊन, गोटी वाला ज्वर। इसको अग्निरोहिणी तथा संस्कृत में औपसर्गिक सन्निपात के नाम से भी जाना जाता है। प्लेग की वजह से 14 वीं सदी में यूरोप की एक तिहाई आबादी मारी गई थी. सदियों बाद आज भी विश्व में प्रतिवर्ष प्लेग की लगभग 2000 वारदातें सामने आती है. भारत में 1994 में न्यूमॉनिक प्लेग फैल गया था

कारण

यह एक बैक्टिरिया रोग है । यह येरसिनिया पेस्टिस / बेसीलुस पेस्टिस (पूर्व नाम - पेस्टूरेला पेस्टिस) नामक बैक्टिरिया के संक्रमण से होती है। ब्यूबोनिक प्लेग इसका प्रचलित प्रकार है। ये कीटाणु सीलन वाले स्थानों, कूड़ा - करकट तथा सड़ी-गली चीजों में पनपता है। ये रोग उन पदार्थों में भी फैलता है जिनमें से गंदी बदबू आती है तथा भाप निकलती हैं। इन कीटाणुओं का हमला पहले-पहले चूहों के पिस्सुओं पर होता है और फिर यह बीमारी चूहों के द्वारा मनुष्यों को भी हो जाती है। जिन व्यक्तियों के शरीर में पहले से ही दूषित द्रव्य जमा रहता है उन व्यक्तियों को यह रोग जल्दी हो जाता है। जिन व्यक्तियों के शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति कम होती है, उन व्यक्तियों को भी यह रोग हो जाता है। जिन व्यक्तियों के शरीर में दूषित द्रव्य नहीं होता है उन व्यक्तियों का ये कीटाणु कुछ भी नहीं बिगाड़ पाते हैं।

प्लेग की बीमारी मे चमड़ी मे इन्फेक्शन प्रवेश करके लिंफेटिक तक जाता है । जैसा कि प्रायः कीट पतंगों के इन्फेक्शन में होता है, ब्यबोनिक प्लेग मे लिंफेटिक संस्थान का इन्फेक्शन होता है । प्रायः संक्रमित मक्खी के काटने से होता है । ये मक्खियॉं चूहों जैसे कृन्तको पर पाई जाती है और इनका मेजबान कृन्तक मरने पर दूसरे को शिकार बनाती हैं । एक बार जमने पर बैक्टिरिया लिम्फ नोड पर आक्रमण करके बढ़ने लगते हैं । वरसिनिया पेस्टिस फैगोसाइटोसिस से बचते हैं और फैगोसाईट के अन्दर जननकर उसे समाप्त भी कर देते हैं और जैसे जैसे रोग बढ़ता है लिम्फकोड से रक्त का रिसाव होता है इसका पूरा परिगलन हो जाता है ।

फैलाव

प्लेग की बीमारी अनेक कारणों से फैलती है। पृथ्वी पर पर्यावरण प्रदूषण जैसे पानी व हवा अधिक दूषित हो जाती है जिससे वातावरण में विषैले जीवाणु फैल जाते हैं। विषैले जीवाणु जब कीट बनकर वातावरण में फैलते हैं तो यह महामारी का रूप ले लेते हैं जो प्लेग की बीमारी के रूप में अन्य जीवों व मनुष्यों में फैल जाते हैं। जब घरों में चूहे मर जाते हैं और मरने के बाद अगर वह कई दिनों तक घर में पड़े रहते है तो उसमें से निकलने वाली विषैली बदबू प्लेग का कारण बन जाती है।

चूहों के शरीर पर पलने वाले कीटाणुओं की वजह से भी प्लेग की बीमारी फैलती है और ये अत्यंत संक्रामक होती है. प्लेग के मरीज़ की सांस और थूक के ज़रिए उनके संपर्क में आने वाले लोगों में भी प्लेग के बैक्टीरिया का संक्रमण हो सकता है. इसलिए प्लेग के मरीज़ों का इलाज करते समय या उनके संपर्क में रहते समय एहतियात बरतने की आवश्यकता होती है.

लक्षण

प्लेग की बीमारी के जीवाणु सबसे पहले खून को प्रभावित करते हैं जिसके कारण रोगी को तेज बुखार जकड़ लेता है। इस प्रकार की बीमारी होने पर कुछ समय में ही बुखार बहुत ही विशाल रूप ले लेता है और रोगी के हाथ - पांव में अकड़न होने लगती है। इस रोग के होने पर रोगी के सिर में तेज दर्द, पसलियों का दर्द, उल्टियां एवं दस्त होते रहते हैं। इसके साथ-साथ रोगी की आंखे लाल हो जाती है और कफ व पेशाब के साथ खून निकलने लगता है। इस रोग के होने पर रोगी को बेचैनी बढ़ जाती है। प्लेग की बीमारी पनपने में एक से सात दिन लग सकते हैं.

प्रकार

प्लेग 4 प्रकार का होता है - 1. ब्यूबोनिक 2. न्यूब्योनिक 3. सेप्टिसम 4. इंटेसटिनल।

  • ब्यूबोनिक - जब प्लेग के रोग में रोगी को गिल्टी निकल आती है तो उसे बेबक्यूनिंग कहते हैं।
  • न्यूब्योनिक - प्लेग रोग होने पर रोगी के फेफड़ों में जलन उत्पन्न होने लगता है तो उसे न्यूब्योनिक कहते हैं।
  • सेप्टिसम - प्लेग रोग से ग्रस्त रोगी का जब खून दूषित होकर खराब हो जाता है तो सेप्टिसम कहते हैं।
  • इंटेसटिनल - जब प्लेग रोग से ग्रस्त रोगी की अन्तड़ियों में विकार उत्पन्न होने लगता है तो इंटेसटिनल कहते हैं।
ब्यूबोनिक प्लेग (गिल्टी वाले प्लेग) -

जब किसी व्यक्ति को प्लेग रोग हो जाता है तो उसकी जांघ, गर्दन आदि अंगों की ग्रन्थियों में दर्द के साथ सूजन हो जाती है, इस रोग से पीड़ित रोगी की गिल्टी एक के बाद दूसरी फिर तीसरी सूजती है और फिर फूटती है। कभी-कभी एक साथ कई गिल्टियां निकल आती है और दर्द करने लगती है। जिसे ब्यूबोज कहते हैं और बुख़ार आता है । यदि गिल्टियां 4-5 दिनों में फूट जाती है और बुखार उतर जाता है तो उसे अच्छा समझना चाहिए नहीं तो इस रोग का परिणाम और भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है। लेकिन कुछ समय में ये 7-10 दिनों के बाद फूटती है। इस प्रकार का प्लेग रोग अधिक होता है। ब्यूबॉनिक प्लेग मुख्यतया चूहों के शरीर पर पलने वाले पिस्सुओं के काटने की वजह से फैलती है. ये बीमारी केवल मरीज़ के संपर्क में आने से तो नहीं लगती लेकिन मरीज़ की ग्रंथियों से निकले द्रव्यों के सीधे संपर्क में आने से ब्यूबॉनिक प्लेग हो सकता है.

न्यूमोनिक प्लेग -

न्यूमॉनिक प्लेग की वारदातें अपेक्षाकृत कम होती हैं, न्यूमोनिक प्लेग रोग जब किसी व्यक्ति को हो जाता है तो इसका आक्रमण सबसे पहले फेफड़ों पर होता है जो फेफड़ों का इन्फेक्शन होता है । इसके परिणाम स्वरूप निमोनिया पनपकर तेजी से फैलता है और रोगी व्यक्ति को कई प्रकार के रोग हो जाते हैं जैसे- खांसी, सांस लेने में कष्ट, सॉंस का भारीपन, छाती में दर्द, दम फूलना, शरीर में ठंड लगकर सिर में दर्द होना, नाड़ी में तेज दर्द, कलेजे में दर्द, प्रलाप, पीठ में दर्द तथा फेफड़ों से रक्त का स्राव होना आदि और चिकित्सा न किये जाने पर तीव्र श्वसन फेलयर हो जाता है । न्यूमोनिक प्लेग रोग गिल्टी वाले प्लेग रोग से बहुत अधिक घातक होता है तथा रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक परेशान करता है। आमतौर पर यह कम घातक होता है किन्तु यह खतरनाक और चिकित्सा न करने पर घातक होता है । न्यूमॉनिक प्लेग ज़्यादा संक्रामक है. ये बीमारी रोगी के सीध संपर्क में आने से उसकी सांसों या खांसी से निकले बैक्टीरिया के संक्रमण से हो सकता है.

सेप्टीसिमिक प्लेग (शरीर में सड़न पैदा करने वाला प्लेग) -

जब यह प्लेग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो रोगी के शरीर के कई अंग सिकुड़ कर सड़ने लगते हैं और रोगी के शरीर का खून जहरीला हो जाता है। रोगी की शारीरिक क्रियाएं बंद हो जाती हैं। इस रोग के होने के कारण रोगी को बहुत अधिक परेशानी होती है। जब यह प्लेग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो वह व्यक्ति 2-3 दिनों से अधिक जीवित नहीं रह पाता है।

इंटेस्टिनल प्लेग (आंत्रिक प्लेग) -

इस रोग का प्रकोप रोगी व्यक्ति की आंतो पर होता है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति का पेट फूलने लग जाता है और उसके पेट और कमर में दर्द होने लगता है तथा उसे दस्त भी होने लगते हैं। जब रोगी व्यक्ति को यह रोग होने वाला होता है तो उसकी तबियत गिरी-गिरी सी रहने लगती है तथा उसके शरीर में सुस्ती और कमजोरी बढ़ जाती है। रोगी की यह अवस्था 1 घण्टे से लेकर 7 दिनों तक रह सकती है। फिर इसके बाद रोग का प्रकोप और भी तेज हो जाता है। जब रोगी की अवस्था ज्यादा गम्भीर हो जाती है तो उसे ठंड लगने लगती है तथा तेज बुखार हो जाता है, रोगी के सिर में दर्द होता है, रोगी के हाथ-पैर ऐठने लगते हैं। रोगी व्यक्ति के शरीर में दर्द होता है तथा उसे बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है। रोगी व्यक्ति के गालों का रंग पीला पड़ जाना, आंखों के आगे गड्ढें हो जाना, नाड़ी और श्वास में तीव्रता, भूख कम हो जाना, आवाज धीमा हो जाना, चैतना शून्य, प्रलाप, पेशाब का कम बनना या बिल्कुल न बनना, मुंह तथा जननेन्द्रियों से रक्तस्राव होना, अनिंद्रा तथा जीभ का लाल हो जाना तथा सूजन हो जाना आदि लक्षण रोगी में दिखने लगता है।

उपाय

प्लेग रोग चूहे के द्वारा ही एक से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचता है। ऐसे में प्लेग रोग से ग्रस्त चूहे मरने लगते हैं। प्लेग रोग से बचने का सबसे अच्छा उपाय है, जिस घर में प्लेग रोग के जीवाणु फैल गये हो उस घर को छोड़ दें। यदि उस घर को छोड़ नहीं सकते तो घर को अच्छी तरह साफ व स्वच्छ रखें। चूहों को अपने घर से दूर रखना चाहिए तथा नालियों, बाथरूम आदि को फिनायल से धुलवा लेना चाहिए। घर को स्वच्छ रखने के लिए हवन करना चाहिए और कभी-कभी नीम की सूखी पत्तियों को जलाकर घर के कोने-कोने में धुंआ लगाना चाहिए। यदि चूहा मर जाए तो उसे दूर फेंकवा देना चाहिए या मिट्टी में गड्ढ़ा खोदकर गढ़वा देना चाहिए।

प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा उपाय

इन सभी प्लेग रोगों से बचने के लिए कुछ प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा उपाय:-

  • प्लेग रोग से बचने के लिए व्यक्तियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जैसे ही घर में चूहें मर जाएं उसे घर से बाहर छोड़ देना चाहिए तथा जहां पर रह रहे हो उस जगह पर साफ-सफाई का ध्यान देना चाहिए।
  • व्यक्तियों को सादा तथा जल्दी पचने वाले भोजन करना चाहिए तथा पेट में कब्ज नहीं होने देना चाहिए।
  • एनिमा क्रिया के द्वारा पेट को साफ करते रहना चाहिए।
  • बाजार की चीजें, मिठाइयां, दूषित दूध, सड़ी-गली भोज्य पदार्थ आदि नहीं खाने चाहिए।
  • यदि शरीर में विजातीय द्रव्य (दूषित द्रव) जमा हो गया है तो उसे जल्दी ही शरीर से बाहर निकालने के उपाय करना चाहिए। शरीर से दूषित द्रव को बाहर निकालने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए। वह व्यक्ति जिसके शरीर में दूषित द्रव नहीं होता उसके शरीर में चाहें कितने ही ताऊन कीड़े चले जाऐ, उस व्यक्ति को यह रोग नहीं हो सकता है।
  • जिन घरों के आस-पास के व्यक्तियों को यदि प्लेग का रोग हो गया हो तो स्वस्थ्य लोगों को कपूर का एक टुकड़ा सदैव अपने पास रखना चाहिए और भोजन के साथ प्याज अवश्य खाना चाहिए।
  • सुबह के समय में उठते ही एक गिलास पानी में नींबू के रस को मिलाकर पीना चाहिए इससे प्लेग रोग नहीं होता है।
  • शौच करने के बाद रोगी व्यक्ति को अपने हाथ-पैर को अच्छी तरह से धोकर खुले स्थान में वायु का सेवन करने के लिए निकल जाना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन कम से कम 20 मिनट तक धूप से अपने शरीर की सिकाई करनी चाहिए और फिर स्नान करना चाहिए।
  • व्यक्तियों को प्रतिदिन गहरी सांस लेने वाले व्यायाम करना चाहिए।

उपचार

लिंफ ग्रन्थि और रक्त के नमूनों में बैक्टिरिया देखे जाते हैं । रोग का निदान लाक्षणिक ब्यूबोज के प्रकट होने से हो जाता है ।

एलोपैथिक इलाज
  • एंटीबायोटिक का उपयोग ही इसकी चिकित्सा है । ये एंटीबायोटिक हैं - एमानोग्लाइकोसाईड, स्ट्रेप्टोमाइसिन और जेन्टामाइसिन, टेट्रासाइक्लिन, डॉक्सिसाइक्लिन और फ्लूरोक्यूनिलोन समूह के सिप्रोफ्लोक्सिन । इन दवाइयों से प्लेग का प्रभावी ढंग से इलाज किया जा सकता है.
  • लेकिन अगर इलाज ना किया जाए तो बीमारी से पीड़ित लोगों की मृत्यु दर 90 प्रतिशत तक हो सकती है.
  • प्लेग से बचने के लिए टीका विकसित करने के लिए शोधकार्य जारी हैं लेकिन अभी तक कोई टीका उपलब्ध नहीं है.
  • भारत में 1994 में पश्चिमी क्षेत्रों में 50 से ज़्यादा लोगों की ब्यूबॉनिक प्लेग से मौत हो गई थी.
प्राकृतिक चिकित्सा

इन सभी प्लेग रोगों को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

  • जैसे ही व्यक्ति को प्लेग रोग होने का लक्षण दिखाई दें, चाहे सूजन हो या न अथवा बुखार हो या न, तुरंत ही पेट को साफ करने के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए। फिर इसके बाद पूरे शरीर पर एक बार स्टीमबाथ कम से कम आधे घण्टे तक करना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति को तुरन्त मुंह में भाप देना चाहिए तथा इसके साथ-साथ रोगी व्यक्ति को चार-चार घण्टे बाद स्टीमबाथ करना चाहिए। फिर इसके बाद मेहनस्नान और उदरस्नान करना चाहिए। पहला स्नान तो स्टीमबाथ के बाद लेना चाहिए तथा दूसरा स्नान तीन से चार घण्टे के अंतराल पर लेना चाहिए। यदि पहले दिन के स्टीमबाथ से पर्याप्त पसीना आए तो दूसरे दिन एक और स्टीमबाथ सावधानी के साथ लेना चाहिए। यदि पसीना न निकले तो पेडू पर गीली पट्टी लगानी चाहिए। यदि गिल्टी निकल आई हो तो उस पर दो-दो घण्टे के बाद 15 मिनट तक भाप देकर बाकी समय उस पर मिट्टी की गीली पट्टी, बर्फ का जल या खूब ठंडे जल से भीगे कपडे की उष्णकर पट्टी या ठंडी पट्टी ही बांधनी चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति को आसमानी रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 25 ग्राम की मात्रा में प्रत्येक 5 मिनट के अंतराल पर रोगी व्यक्ति को पिलाना चाहिए।
  • प्लेग रोग से पीड़ित रोगी का जब तक रोग ठीक न हो जाए तब तक रोगी को उपवास रखना चाहिए। यदि रोगी की अवस्था बहुत अधिक गम्भीर हो गई है तो शरीर पर गीले कपड़े की पट्टी एक घण्टा तक बांधना चाहिए। फिर इसके बाद स्पंजबाथ करना चाहिए इससे रोगी को बहुत लाभ मिलता है।
  • यदि रोगी न्यूमोनिया प्लेग से पीड़ित है तो उसकी छाती पर मिट्टी की गीली पट्टी दिन में दो से तीन बार बांधनी चाहिए। रोगी के सिर में दर्द हो रहा हो तो उसके सिर पर भी मिट्टी की गीली पट्टी या फिर कपड़े की ठंडी पट्टी बांधनी चाहिए और इन पटि्टयों को थोड़े-थोड़े समय पर बदलते रहना चाहिए।
  • इस प्रकार से रोगी व्यक्ति का उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से करें तो उसका प्लेग रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जायेगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ