प्लेटो

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प्लेटो
प्लेटो
पूरा नाम प्लेटो
अन्य नाम अफ़लातून
जन्म 428 ई. पू.
जन्म भूमि एथेंस
मृत्यु 347 ई. पू.
मृत्यु स्थान एथेंस
अभिभावक पिता 'अरिस्टोन' तथा माता 'पेरिक्टोन'
गुरु सुकरात
कर्म भूमि यूनान
कर्म-क्षेत्र पाश्चात्य दर्शन
मुख्य रचनाएँ 'द रिपब्लिक', 'द स्टैट्समैन', 'द लाग', 'इयोन', 'सिम्पोजियम'
प्रसिद्धि दार्शनिक
नागरिकता ग्रीक
संबंधित लेख सुकरात, अरस्तु
अन्य जानकारी 404 ई. पू. में प्लेटो सुकरात का शिष्य बना तथा सुकरात के जीवन के अंतिम क्षणों तक उनका शिष्य बना रहा। सुकरात की मृत्यु के बाद प्रजातंत्र के प्रति प्लेटो को घृणा हो गई। उसने मिस्र, इटली, सिसली आदि देशों की यात्रा की तथा अन्त में एथेन्स लौट कर अकादमी की स्थापना की।

प्लेटो (अंग्रेज़ी: Plato; जन्म- 428 ई. पू., एथेंस; मृत्यु- 347 ई. पू., एथेंस) यूनान का प्रसिद्ध दार्शनिक था, जो बाद में एक मौलिक चिंतक के रूप में विख्यात हुआ। उसे 'अफ़लातून' नाम से भी जाना जाता है। वह यूनान के सुप्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात का शिष्य तथा अरस्तु का गुरु था। प्लेटो होमर का समकालीन था। सुकरात का परम मेधावी शिष्य प्लेटो ग्रीक का ही नहीं, वरन् विश्व की विभूति माना जाता है। पाश्चात्य जगत् में सर्वप्रथम सुव्यवस्थित धर्म को जन्म देने वाला प्लेटो ही माना जाता है। उसने अपने पूर्ववर्ती सभी दार्शनिकों के विचार का अध्ययन कर सभी में से उत्तम विचारों का पर्याप्त संचय किया था।

परिचय

प्लेटो का जन्म एथेंस के समीपवर्ती ईजिना नामक द्वीप में हुआ था। उसका परिवार सामन्त वर्ग से था। उसके पिता 'अरिस्टोन' तथा माता 'पेरिक्टोन' इतिहास प्रसिद्ध कुलीन नागरिक थे। 404 ई. पू. में प्लेटो सुकरात का शिष्य बना तथा सुकरात के जीवन के अंतिम क्षणों तक उनका शिष्य बना रहा। सुकरात की मृत्यु के बाद प्रजातंत्र के प्रति प्लेटो को घृणा हो गई। उसने मेगोरा, मिस्र, साएरीन, इटली और सिसली आदि देशों की यात्रा की तथा अन्त में एथेन्स लौट कर अकादमी की स्थापना की। प्लेटो इस अकादमी का अन्त तक प्रधान आचार्य बना रहा।[1]

सुव्यवस्थित धर्म की स्थापना

पाश्चात्य जगत् में सर्वप्रथम सुव्यवस्थित धर्म को जन्म देने वाला प्लेटो ही है। प्लेटो ने अपने पूर्ववर्ती सभी दार्शनिकों के विचार का अध्ययन कर सभी में से उत्तम विचारों का पर्याप्त संचय किया, उदाहरणार्थ- 'माइलेशियन का द्रव्य', 'पाइथागोरस का स्वरूप', 'हेरेक्लाइटस का परिणाम', 'पार्मेनाइडीज का परम सत्य', 'जेनो का द्वन्द्वात्मक तर्क' तथा 'सुकरात के प्रत्ययवाद' आदि उसके दर्शन के प्रमुख स्रोत थे।

प्लेटो का मत

प्‍लेटो के समय में कवि को समाज में आदरणीय स्‍थान प्राप्‍त था। उसके समय में कवि को उपदेशक, मार्गदर्शक तथा संस्कृति का रक्षक माना जाता था। प्‍लेटो के शिष्‍य का नाम अरस्तू था। प्‍लेटो का जीवनकाल 428 ई.पू. से 347 ई.पू. माना जाता है। उसका मत था कि "कविता जगत् की अनुकृति है, जगत् स्वयं अनुकृति है; अतः कविता सत्य से दोगुनी दूर है। वह भावों को उद्वेलित कर व्यक्ति को कुमार्गगामी बनाती है। अत: कविता अनुपयोगी है एवं कवि का महत्त्व एक मोची से भी कम है।"

रचनाएँ

प्लेटो की प्रमुख कृतियों में उसके संवाद का नाम विशेष उल्लेखनीय है। प्लेटो ने 35 संवादों की रचना की है। उसके संवादों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. सुकरात कालीन संवाद - इसमें सुकरात की मृत्यु से लेकर मेगारा पहुंचने तक की रचनाएं हैं। इनमें प्रमुख हैं- हिप्पीयस माइनर, ऐपोलॉजी, क्रीटो, प्रोटागोरस आदि।
  2. यात्रीकालीन संवाद - इन संवादों पर सुकरात के साथ-साथ 'इलियाई मत' का भी कुछ प्रभाव है। इस काल के संवाद हैं- क्लाइसिस, क्रेटिलस, जॉजियस इत्यादि।
  3. प्रौढ़कालीन संवाद - इस काल के संवादों में विज्ञानवाद की स्थापना मुख्य विषय है। इस काल के संवाद हैं- सिम्पेासियान, फिलेबु्रस, ट्रिमेर्यास, रिपब्लिक और फीडो आदि।[1]

प्‍लेटो की रचनाओं में 'द रिपब्लिक', 'द स्टैट्समैन', 'द लाग', 'इयोन', 'सिम्पोजियम' आदि प्रमुख हैं।

काव्य के महत्त्व की स्वीकार्यता

प्लेटो काव्य के महत्व को उसी सीमा तक स्वीकार करता है, जहां तक वह गणराज्य के नागरिकों में सत्य, सदाचार की भावना को प्रतिष्ठित करने में सहायक हो। प्लेटो के अनुसार "मानव के व्यक्तित्व के तीन आंतरिक तत्त्व होते हैं-

  1. बौद्धिक
  2. ऊर्जस्वी
  3. सतृष्ण

काव्य विरोधी होने के बावजूद प्लेटो ने वीर पुरुषों के गुणों को उभारकर प्रस्तुत किए जाने वाले तथा देवताओं के स्तोत्र वाले काव्य को महत्त्वपूर्ण एवं उचित माना है।[1]

प्लेटो के काव्य विचार

  1. प्लेटो काव्य का महत्त्व उसी सीमा तक स्वीकार करता है, जहां तक वह गणराज्य के नागरिकों में सत्य, सदाचार की भावना को प्रतिष्ठित करने में सहायक हो।
  2. कला और साहित्य की कसौटी प्लेटो के लिए ‘आनंद एवं सौंदर्य’ न होकर उपयोगितावाद थी।
  3. वह कहता है- "चमचमाती हुई स्वर्ण से जड़ित अनुपयोगी ढाल से गोबर की उपायोगी टोकरी अधिक सुंदर है।
  4. उसके विचार से कवि या चित्रकार का महत्त्व मोची या बढ़ई से भी कम है, क्योंकि वह अनुेृति मात्र प्रस्तुत करता है। सत्य रूप तो केवल विचार रूप में अलौकिक जगत् में ही है। काव्य मिथ्या जगत् की मिथ्या अनुकृति है। इस प्रकार वह सत्य से दोगुना दूर है। कविता अनुकृति और सर्वथा अनुपयोगी है, इसलिए वह प्रशंसनीय नहीं अपितु दंडनीय है।
  5. प्लेटो कवि की तुलना में एक चिकित्सक, सैनिक या प्रशासक का महत्त्व अधिक मानता है। वह कहता है कि "कवि अपनी रचना से लोगों की भावनाओं और वासनाओं को उद्वेलित कर समाज में दुर्बलता और अनाचार के पोषण को भी अपराध करता है। कवि अपनी कविता से आनंद प्रदान करता है, परंतु दुराचार एवं कुमार्ग की ओर प्रेरित करता है; इसलिए राज्य में सुव्यवस्था हेतु उसे राज्य से निष्कासित कर देना चाहिए।
  6. प्लेटो का मानना था कि किसी समाज में सत्य, न्याय और सदाचार की प्रतिष्ठा तभी संभव है, जब उस राज्य के निवासी वासनाओं और भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए विवेक एवं नीति के अनुसार आचरण करें।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 प्लेटो एवं उसके दार्शनिक विचार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 01 मई, 2014।
  2. प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 01 मई, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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