फलोदी

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फलोदी जोधपुर ज़िला, राजस्थान में स्थित एक शहर, तहसील तथा उपखण्ड है। यह राजस्थान का सबसे अधिक शुष्क क्षेत्र है। पोकरण, पीलवा, देचू, सांवरीज इत्यादि इसके पड़ौसी गाँव है। इसका सबसे प्राचीन नाम विजयनगर था। फलोदी में ही एक गाँव लोर्डियाँ है, जिसे 'न्यू अमेरिका' के नाम से जाना जाता है। यहाँ की ऐतिहासिक इमारतों में विशेष प्रकार की जालीदार और झरोखा वाली राजपुताना शैली दिखाई देती है। 300 साल पुराना फलोदी का किला प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है।

परिचय

राजस्थान के जोधपुर जिले में स्थित पर्यटक केन्द्र फलोदी 'सॉल्ट सिटी' के नाम से मशहूर है। यह स्थान महान थार मरुस्थल के 'गोल्डेन सिटी' जैसलमेर और 'सन सिटी' जोधपुर के बीच स्थित है। यह काफिलों का पुराना केन्द्र है, जहाँ अभी भी मरुस्थल के जहाज, ऊँट पर नमक का व्यापार होता है। फलोदी की सीमायें बीकानेर, नागौर, जैसलमेर और जोधपुर जैसे शहरों से मिलती हैं। यह जिले का दूसरा सबसे बड़ा कस्बा है।

इतिहास

फलोदी का इतिहास 15वीं सदी का है और तब इस शहर को 'फलवरिधिका' के नाम से जाना जाता था। 1547 ई. में राव मालदेव राठौर यहाँ के शासक थे, किन्तु 1578 ई. में यह बीकानेर के राजा के अधीन आ गया। 1615 ई. में राव सूर सिंह के सत्ता में आने पर यह जोधपुर का भाग बन गया।

संस्कृति

संस्कृति, रंग एवं जातीयता, शानदार डिज़ाइन की प्रसिद्ध जूतियाँ, रंग-बिरंगी चूड़ियाँ, चटकीले परिधान पहने महिलायें और मोती तथा चाँदी के गहने इस जगह की विशेष पहचान हैं। क्षेत्र में हिन्दी तथा राजस्थानी भाषायें बोली जाती हैं।

ऐतिहासिक इमारतें

समृद्ध संस्कृति के अलावा फलोदी अपने किलों, शाही हवेलियों, बाज़ारों और प्राचीन हिन्दू तथा जैन मन्दिरों के कारण एक पर्यटक आकर्षण है। फलोदी की ऐतिहासिक इमारतों में विशेष प्रकार की जालीदार और झरोखा वाली राजपूताना शैली दिखाई देती है। 300 साल पुराना फलोदी का किला प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है। किले की शानदार वास्तुकला शैली दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करती है। फलोदी आने वाले पर्यटक 1750 ई. में लाल रेतीले पत्थरों से निर्मित लाल निवास को भी देख सकते हैं। पुरानी वस्तुओं और काँच के दीपों से सजाकर इस सुन्दर इमारत को अब प्रमुख ऐतिहासिक होटल में बदल दिया गया है। इस जगह के अन्य उल्लेखनीय आकर्षण 'सचिया माता मन्दिर', 'महावीर मन्दिर', 'रामदेवरा मन्दिर' और 'सूर्य मन्दिर' हैं।

प्रवासी पक्षियों का स्थान

किलों, ऐतिहासिक इमारतों और प्राचीन मन्दिरों के अलावा फलोदी पक्षियों को देखने की लालसा रखने वाले लोगों के लिये एक स्वर्ग है। क्षेत्र के खीकन गाँव में पर्यटक भारी संख्या में प्रवासी पक्षियों को देख सकते हैं। यह फलोदी से 5 कि.मी. की दूरी पर है और डेमॉइसिले सारसों, जिन्हें स्थानीय लोग कुर्जा कहते हैं, का अस्थाई वासस्थान है। अगस्त से मार्च के बीच का समय इस अद्वितीय पक्षी प्रजाति को देखने का आदर्श समय है जो दक्षिण-पश्चिम यूरोप, यूक्रेन, पोलैण्ड जैसे स्थानों से लम्बी दूरी तय करके खीकन गाँव में थोड़े समय के लिये रुकते हैं। इन पक्षियों के अस्थाई वासस्थान होने की अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता के कारण इस गाँव को 'डेमॉइसिले सारसों का गाँव' के रूप में जाना जाता है।

कैसे पहुँचें

फलोदी वायु, रेल एवं सड़क मार्गों से आसानी से सुगम है। फलोदी से 135 कि.मी. की दूरी पर स्थित जोधपुर हवाईअड्डा यहाँ के लिये निकटतम हवाई बेस है। विदेशी पर्यटक दिल्ली के इन्दिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे से यहाँ तक पहुँच सकते हैं। यह अन्तर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, गुवाहाटी और बेंगलुरु जैसे प्रमुख भारतीय शहरों से नियमित उड़ानों के द्वारा जुड़ा हुआ है। पर्यटक बीकानेर, जैसलमेर, लालगढ़, पुरानी दिल्ली और जोधपुर से गाड़ियों द्वारा भी यहाँ तक पहुँच सकते हैं।

फलोदी के लिये हवाईअड्डे और रेलवे स्टेशन दोनों जगहों से टैक्सियाँ आसानी से उपलब्ध रहती हैं। आरामदायक और सुविधाजनक बस सेवाओं के द्वारा भी यहाँ तक पहुँचा जा सकता है। जोधपुर, अजमेर, जयपुर, बेवर, आगरा, इलाहाबाद और कानपुर जैसे प्रमुख पर्यटक गन्तव्यों से यात्री निजी अथवा सरकारी बस सेवाओं का लाभ ले सकते हैं।

फलोदी क्षेत्र में साल भर ऊष्णकटिबन्धीय जलवायु का अनुभव होता है। गर्मियाँ 45 डिग्री सेल्सियस के अधिकतम तापमान के साथ बेहद गर्म होती हैं और सर्दियाँ 5 डिग्री सेल्सियस के न्यूनतम तापमान के साथ कँप-कपा देने वाली होती हैं। फलोदी में छुट्टियाँ बिताने का सर्वश्रेष्ठ समय सर्दियों का मौसम होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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