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'''बरवै रामायण [[तुलसीदास]]''' की रचना है। इसमें बरबा [[छन्द|छन्दों]] में '''रामकथा''' कही गयी है।
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*बरवै रामायण रचना के मुद्रित पाठ में स्फुट 69 बरवै हैं, जो '[[कवितावली]]' की ही भांति सात काण्डों में विभाजित है।
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|चित्र का नाम='बरवै रामायण' का आवरण पृष्ठ
*प्रथम छ: काण्डों में रामकथा के छन्द हैं, उत्तराखण्ड में रामभक्ति के छन्द हैं। यह रचना बहुत स्फुट ढंग पर निर्मित हुई है, या यों कहना चाहिए कि इसमें बहुत स्फुट ढंग पर रचे हुए रामकथा तथा रामभक्ति सम्बन्धी बरवा छन्दों का संग्रह हुआ है।
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कहहु कृपानिधि राउर कर गुन नाथ॥"</poem>
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किंतु यहीं पर 'किष्किन्धाकाण्ड' समाप्त हो जाता है। 'लंकाकाण्ड' में राम की जलधि सदृश राम की वाहिनी का एक [[छन्द]] में वर्णन किया गया है और यही एक मात्र छन्द लंकाकाण्ड की कथा का है। उत्तराकाण्ड की कथा का एक भी छन्द नहीं है।
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किंतु 'बरवा' की ऐसी प्रतियाँ भी मिलती हैं, जिनमें कथा विस्तार के साथ कही गयी है। कुछ ऐसी प्रतिमाँ भी मिलती हैं, जिनमें रामकथा है ही नहीं, केवल रामभक्ति सम्बन्धी बरवै हैं। ऐसी दशा में इस रचना के पाठ की स्थिति अत्यंत अनिश्चित हो जाती है। इतनी अधिक अनिश्चित स्थिति [[तुलसीदास]] की रचनाओं में से किसी के पाठ का नहीं है। हो सकता है कि दस-बीस स्फुट बरवै किसी समय तुलसीदास के रचे रहे हों, जिन्हें स्वतंत्र रचना का रूप देना उन्होंने आवश्यक न समझा हो। उनके देहांत के बाद उन्हीं इने-गिने बरवै में नवकल्पित बरवै मिलाकर भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने भिन्न-भिन्न बरवा-संग्रह तैयार कर लिये।
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इन परिस्थितियों में रचना का काल निर्धारण असम्भव है। यह रचना विभिन्न प्रतियों में जितने भी रूपों में प्राप्त है, उनमें से कोई भी रूप कवि के समय का कदाचित नहीं है। उसके देहावसान के बाद ही संभवत: इस रचना के समस्त रूप निर्मित हुए, अधिक से अधिक यही कहा जा सकता है।
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'''बरवै रामायण''' [[गोस्वामी तुलसीदास]] की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है। इसमें '[[बरवै (छन्द)|बरवै]]' छन्दों में भगवान [[श्रीराम]] की कथा कही गयी है।
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==छन्दों का संग्रह==
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'बरवै रामायण' रचना के मुद्रित पाठ में स्फुट 69 [[बरवै (छन्द)|बरवै]] हैं, जो '[[कवितावली -तुलसीदास|कवितावली]]' की ही भांति सात काण्डों में विभाजित है। प्रथम छ: काण्डों में रामकथा के [[छन्द]] हैं, उत्तरखण्ड में रामभक्ति के छन्द हैं। यह रचना बहुत स्फुट ढंग पर निर्मित हुई है, या यों कहना चाहिए कि इसमें बहुत स्फुट ढंग पर रचे हुए रामकथा तथा रामभक्ति सम्बन्धी बरवा छन्दों का संग्रह हुआ है।
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'[[किष्किन्धा काण्ड वा. रा.|किष्किन्धाकाण्ड]]' में [[सुग्रीव]] का [[राम]] से प्रश्न है,
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कहहु कृपानिधि राउर कर गुन नाथ॥"</poem></blockquote>
  
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किंतु यहीं पर 'किष्किन्धाकाण्ड' समाप्त हो जाता है। 'लंकाकाण्ड' में राम की जलधि सदृश राम की वाहिनी का एक [[छन्द]] में वर्णन किया गया है और यही एक मात्र छन्द लंकाकाण्ड की कथा का है। उत्तराकाण्ड की कथा का एक भी छन्द नहीं है।
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==क्षेपक और खिल भाग==
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'बरवा' की ऐसी प्रतियाँ भी इसमें मिलती हैं, जिनमें कथा विस्तार के साथ कही गयी है। कुछ ऐसी प्रतियाँ भी मिलती हैं, जिनमें रामकथा है ही नहीं, केवल रामभक्ति सम्बन्धी बरवै हैं। ऐसी दशा में इस रचना के पाठ की स्थिति अत्यंत अनिश्चित हो जाती है। इतनी अधिक अनिश्चित स्थिति [[तुलसीदास]] की रचनाओं में से किसी के पाठ का नहीं है। हो सकता है कि दस-बीस स्फुट बरवै किसी समय तुलसीदास के रचे रहे हों, जिन्हें स्वतंत्र रचना का रूप देना उन्होंने आवश्यक न समझा हो। उनके देहांत के बाद उन्हीं इने-गिने बरवै में नवकल्पित बरवै मिलाकर भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने भिन्न-भिन्न बरवा-संग्रह तैयार कर लिये।
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====काल निर्धारण====
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इन परिस्थितियों में रचना का काल निर्धारण असम्भव है। यह रचना विभिन्न प्रतियों में जितने भी रूपों में प्राप्त है, उनमें से कोई भी रूप [[कवि]] के समय का कदाचित नहीं है। उसके देहावसान के बाद ही संभवत: इस रचना के समस्त रूप निर्मित हुए, अधिक से अधिक यही कहा जा सकता है।
  
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13:34, 18 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण

बरवै रामायण
'बरवै रामायण' का आवरण पृष्ठ
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक 'बरवै रामायण'
मुख्य पात्र श्रीराम
देश भारत
भाषा अवधी
शैली बरबा छन्द
विषय श्रीराम की जीवन कथा।
टिप्पणी 'बरवै रामायण' रचना के मुद्रित पाठ में स्फुट 69 बरवै हैं, जो 'कवितावली' की ही भांति सात काण्डों में विभाजित है।

बरवै रामायण गोस्वामी तुलसीदास की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है। इसमें 'बरवै' छन्दों में भगवान श्रीराम की कथा कही गयी है।

छन्दों का संग्रह

'बरवै रामायण' रचना के मुद्रित पाठ में स्फुट 69 बरवै हैं, जो 'कवितावली' की ही भांति सात काण्डों में विभाजित है। प्रथम छ: काण्डों में रामकथा के छन्द हैं, उत्तरखण्ड में रामभक्ति के छन्द हैं। यह रचना बहुत स्फुट ढंग पर निर्मित हुई है, या यों कहना चाहिए कि इसमें बहुत स्फुट ढंग पर रचे हुए रामकथा तथा रामभक्ति सम्बन्धी बरवा छन्दों का संग्रह हुआ है।

वर्णन

'किष्किन्धाकाण्ड' में सुग्रीव का राम से प्रश्न है,

"कुजन पाल गुन वर्जित अकुल अनाथ,
कहहु कृपानिधि राउर कर गुन नाथ॥"

किंतु यहीं पर 'किष्किन्धाकाण्ड' समाप्त हो जाता है। 'लंकाकाण्ड' में राम की जलधि सदृश राम की वाहिनी का एक छन्द में वर्णन किया गया है और यही एक मात्र छन्द लंकाकाण्ड की कथा का है। उत्तराकाण्ड की कथा का एक भी छन्द नहीं है।

क्षेपक और खिल भाग

'बरवा' की ऐसी प्रतियाँ भी इसमें मिलती हैं, जिनमें कथा विस्तार के साथ कही गयी है। कुछ ऐसी प्रतियाँ भी मिलती हैं, जिनमें रामकथा है ही नहीं, केवल रामभक्ति सम्बन्धी बरवै हैं। ऐसी दशा में इस रचना के पाठ की स्थिति अत्यंत अनिश्चित हो जाती है। इतनी अधिक अनिश्चित स्थिति तुलसीदास की रचनाओं में से किसी के पाठ का नहीं है। हो सकता है कि दस-बीस स्फुट बरवै किसी समय तुलसीदास के रचे रहे हों, जिन्हें स्वतंत्र रचना का रूप देना उन्होंने आवश्यक न समझा हो। उनके देहांत के बाद उन्हीं इने-गिने बरवै में नवकल्पित बरवै मिलाकर भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने भिन्न-भिन्न बरवा-संग्रह तैयार कर लिये।

काल निर्धारण

इन परिस्थितियों में रचना का काल निर्धारण असम्भव है। यह रचना विभिन्न प्रतियों में जितने भी रूपों में प्राप्त है, उनमें से कोई भी रूप कवि के समय का कदाचित नहीं है। उसके देहावसान के बाद ही संभवत: इस रचना के समस्त रूप निर्मित हुए, अधिक से अधिक यही कहा जा सकता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 370।

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